मन में उठने वाले हर भाव हर अह्सास को शब्दों में बाँध, उन्हें सार्थक अर्थों में पिरोकर एक नया आयाम देना चाह्ती हूँ । भावनाओ के इस सफर में मुझे कदम-कदम पर सहयोगी मित्रों की आवश्यकता होगी.. आपके हर सुझाव मेरा मार्ग दर्शन करेंगे...
वाकई में प्रकृति ने यहाँ ऐसा रूप धरा की शब्द ही नही निकल रहे बया करने को जुबा से.. मन अभी भी इतना डरा हैं कि काले बदलो को देख चीखने को तैयार।।। आपकी अंतिम शब्द चित्र ने सम्मोहित कर दिया। वो आसमान आजकल वाकई में इतना शांत एवं निर्दोष बन बैठा है कि यकीन ही नही होता की जो कहर बरपा उसकी शुरुआत वही से हुई..
चित्र भी बोलते हैं------ मन को टटोलती और मर्म को समझाती छोटी-छोटी लेकिन गहरे भाव लिये केदारनाथ के कहर की मार्मिक अनुभूति व्यक्त की है सुंदर चित्र संयोजन और कविता के भाव सादर
प्रकृति का क्रोध ..... कविता और तस्वीर दोनों में
ReplyDeleteसादर !
सुंदर चित्रों के भावपूर्ण सृजन ,
ReplyDeleteRECENT POST ....: नीयत बदल गई.
नाराज़ प्रकृति का प्रहार ...
ReplyDeleteआसमां आपदा का साक्षी..
ReplyDeleteसटीक.
कुपित प्रकृति के रूप और मनुष्य के लिये चेतावनी !
ReplyDeleteउन सबको कुछ तो है कहना,
ReplyDeleteमान नहीं रख पाये जिनका।
सचित्र प्रकृति का चित्रण -अनुपम !
ReplyDeletelatest post केदारनाथ में प्रलय (२)
प्रकृति का रोद्र रूप, खता हमारी , सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_909.html
सचमुच बोलते चित्र....
ReplyDeleteया कहूँ रोते सिसकते चित्र
और शब्द भी.. ...
सादर
अनु
प्रकृति का कहर चित्र और शब्द दोनों में समाया हुआ है
ReplyDeleteमार्मिक शब्द चित्र
ReplyDeleteGahan Vedanaa .........
ReplyDeleteबेहद ही सटी पर मार्मिक चित्रण.
ReplyDeleteरामराम.
चित्रों और शब्दों का संयोजन पोस्ट को बेहद प्रभावशाली बना रहा है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कल 14/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
धन्यवाद!यश्वंत...
DeleteBeautifully expressed !
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteआपने पञ्च तत्वों का बहुत सुन्दर वर्णन किया चित्रों ने इन्हें जीवंत कर दिया
ReplyDeleteवाकई में प्रकृति ने यहाँ ऐसा रूप धरा की शब्द ही नही निकल रहे बया करने को जुबा से..
ReplyDeleteमन अभी भी इतना डरा हैं कि काले बदलो को देख चीखने को तैयार।।।
आपकी अंतिम शब्द चित्र ने सम्मोहित कर दिया।
वो आसमान आजकल वाकई में इतना शांत एवं निर्दोष बन बैठा है कि यकीन ही नही होता की जो कहर बरपा उसकी शुरुआत वही से हुई..
चित्रों पर तबाही की दास्तां लिख दी ... बहुत खूब
ReplyDeleteufff.....ek jevant sa chitr prastut kiya hai aapne
ReplyDeleteचित्र भी बोलते हैं------
ReplyDeleteमन को टटोलती और मर्म को समझाती छोटी-छोटी लेकिन गहरे भाव लिये
केदारनाथ के कहर की मार्मिक अनुभूति व्यक्त की है
सुंदर चित्र संयोजन और कविता के भाव
सादर
सुंदर , शुभकामनाये ,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे ,
हसरते नादानी में
http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html