abhivainjana


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Monday, 29 July 2013

बहुत याद आते हैं…


मिट्टी से लिपा चुल्हा

चुल्हे में सुलगती लकड़ियाँ

उसकी आँच में सिकी हुई

माँ के हाथों की

 गरम रोटियाँ

बहुत याद आते हैं..वो दिन

हाँड़ी में पकती हुई दाल

सिलबट्टे में पीसे ताजे

मसालों की खुशबू

बेसब्री से करते

खाने का इंतजार

बहुत याद आते हैं.. वो दिन

गर्मियों में

खुले आसमान के नीचे

छत पर सोना

किस्से कहानियों का दौर

चाँद तारों को देखते देखते

मीठे सपनों में खोजाना

बहुत याद आते हैं.. वो दिन

बेफिक्र, मन मौजी से

अपनी ही दुनिया में रहना

कभी जिद्द कभी मनमानी करना

देर रात तक

छुप-छुप नावेल पढ़ना

बहुत याद आते हैं.. वो दिन

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महेश्वरी कनेरी

Friday, 26 July 2013

बातें सावन की....हाइगा में

                  








आज कल ब्लांग मे हाइकु और हाइगा की बरसात सी लगी हुई है..मैंने भी सोचा मैं भी ट्राई करलूँ .इ्सी लिए मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है...आशा है शायद पसंद आजाएं.\
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महेश्वरी कनेरी

Tuesday, 23 July 2013

अहसास...

अहसास


माँ

ह्रदय में वात्सल्य का सागर

होठों में दुलार की मुस्कान

आँखों में ममता के आँसू

यही तो है माँ की पहचान


रंग

रंगों का संसार निराला है

हर रंग में खुद को ढ़ाला है

कुछ रंग से खुशी चुराई

कुछ रंग में दर्द को पाला है


धुँआ

कहीं कोई चिंगारी नहीं

हर सांस पर जुल्म का पहरा

सब तरफ धूँआ ही धुँआ

जितना उभरते उतना ही गहरा


बागवान

मन के धरातल में

जब भी हसरतों के फूल खिलते हैं

अपना ही बागवान नोंच कर बिखेर देता है


जुल्म

हादसों की इस ज़मीन पर

हर रोज़ जुल्म उगा करते हैं

जुल्म के इन पौधे से

दर्द और आँसू ही बहा करते हैं


जलती लौ

पिघलते मोम की जलती लौ हूँ

कब पिघल कर ढल जाऊँ

जब तक सांस है तन पर


तब तक जलती ही जाऊँ


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महेश्वरी कनेरी
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Wednesday, 17 July 2013

कदम धरती पर ,मन में आसमान हो.

स्वाति

बेटी स्वाति को उसके जन्म दिन पर शुभकामनाएं

फूल सी महको.काँटों से भी प्यार करो

अँधेरी रात में दीया बन जलती रहो

राह भी तुम हो, मंजिल भी तुम बनो

पंछी सा उडान भरो,हौसला बुलंद करो 

मन में धीरज धरो, कर्मवीर बनो

लक्ष साधो, अर्जुन का तीर बनो

थाम लो वक्त को, फिर आगे बढ़ो

बन कर चुनौती नया कुछ ऐसा करो

कदम धरती पर ,मन में आसमान हो

मुश्किल कुछ नही ,गर दिल में तूफान हो

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    महेश्वरी कनेरी

Friday, 12 July 2013

बोलते चित्र

बादल


नदी


पहाड़




लाशें


आसमान
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  महेश्वरी कनेरी

Wednesday, 10 July 2013

ये कैसा सावन..

ये कैसा सावन..
नील गगन
धरती मगन
बरसता सावन
अति मनभावन
हर्षित मन हुआ चन्दन
नाचे तन मन
भीगा आँगन
खिला मन-उपवन
बहे निर्मल पवन
टूटा यादों का बंधन
मन हुआ क्रंदन
लाख किया जतन
माने वियोगी मन

ये कैसा सावन..?
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महेश्वरी कनेरी

Tuesday, 2 July 2013

त्रासदी की वो रात…

केदारनाथ

त्रासदी की वो रात

भयानक खौफनाक मंज़र

विनाश का अद्भूद सैलाब

देखते ही देखते सब तबाह होगया

क्रूर काल के हाथों सब स्वाह होगया

चीखते चिल्लाते हजारों जिन्दगी जलमग्न हुई

ले डूबा हजारों ख्वाहिशें, हजारों ख्वाब

गाँव के गाँव बह गए

दुकान, मकान,घर,बस्तियाँ

सब मलवे का ढेर बन कर रह गए

दम तोड़ गई कितनी की चाहते,

कितनों के सपने….

जहाँ चारों पहर भक्तों की भीड़,

मुखरित होता शंख नाद ,

घंटियों की टनटनाहट

जय-जयकार का मधुर स्वर गूँजता

आज वहाँ मातम ही मातम

अब तो उम्मीद भी लाशों की ढेर पर बैठी

आँसू बहा रही है..

किसकी नज़र लग गई ,

मेरे उत्तराखंड़ को

जो खण्ड-खण्ड हो गया

डरे हुए हर मन के भीतर

आज कई अनबुझ से प्रश्न

उलझ कर रह गए..

ऐसा क्यों हुआ..?????


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महेश्वरी कनेरी