abhivainjana


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Sunday 30 October 2011

वक्त


   
१-        वक्त सर पर बैठा
      टुकड़े- टुकड़े कर जिन्दगी ले रहा
      कर्ज़ तो चुकानी ही है
      वक्त से जो ली है
      हमने जिन्दगी उधार में

२-       वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
      हर सांस लेते सोचते हैं
      नजाने कौन सी अंतिम लिखी  है..
                  
३-       पहाड़ो में अब बर्फ पिघलने लगा
     घाटियों में फूल खिलने लगे
     हवाओ में खुशबू फैलने  लगी
     नदियों में पानी बहने लगा
     लेकिन बीते वक्त का दर्द
      महकते फूलों  में आज भी है

                    ४-     पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
     दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती  है
     लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
      मुझे पता भी चला………..
        **********************



37 comments:

  1. वक़्त से यूं वक़्त-बेवक्त की मुलाक़ात भी खूब रही. वक़्त के चारों टुकड़े अच्छे लगे.

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  2. वक्त यूँ ही हाथ से फिसलता जाता है ... अंतिम दोनों क्षणिकाएँ बहुत पसंद आयीं

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  3. वक़्त के साथ जिन्दगी के ये छोटे छोटे पल ...बेहद खूबसूरत लगे

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  4. सभी क्षणिकायें वक़्त को सजीव करती हुई.
    http://mitanigoth2.blogspot.com/

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  5. बेहतरीन क्षणिकाएं...... सुंदर शब्द पिरोये हैं.....

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  6. समय कहाँ कब संग रहा है.......

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  7. कल 01/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  9. बहुत सुंदर रचना।
    मेरे वक्त का एक एक कतरा गिरा, लेकिन मुझे पता भी नही चला।
    गहन विचार, अच्छी प्रस्तुति

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  10. वक्त कब कैसे कितनी जल्दी निकल जाता है पता नही लगता.....
    बहुत अच्छी रचना सुंदर पोस्ट.....

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  11. वक्त के दिन और रात ...फिसलते हैं फिसलते हैं ..कोई रोक नहीं पाता

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  12. वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
    हर सांस लेते सोचते हैं
    नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..

    ...जीवन के शाश्वत सत्य की बहुत सटीक अभिव्यक्ति...सभी क्षणिकाएं बहुत ख़ूबसूरत...

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  13. सटीक अभिव्यक्ति
    हरेक पंक्ति बहुत मर्मस्पर्शी है। कविता अच्छी लगी ।

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    पर आपका स्वागत है
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  14. वाह सुन्दर क्षणिकाएं
    सादर आभार...

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  15. वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
    हर सांस लेते सोचते हैं
    नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..वाह सुन्दर क्षणिकाएं

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  16. दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
    लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
    मुझे पता भी न चला………..
    बहुत सुन्दर एवं सटीक पंक्तियाँ! वक्त कब गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता और बीता हुआ वक़्त कभी लौटकर नहीं आता ! बेहद ख़ूबसूरत रचना!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  17. वक्त की बाँहो में जकड़ी है हर सांस
    हर सांस लेते सोचते हैं
    नजाने कौन सी अंतिम लिखी है..
    दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.... :):)
    वक़्त के हर शै पर सब गुलाम
    आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे
    जाने कब बदले वक़्त का मिज़ाज

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  18. waah...
    waqt ko yun ginna, kitna suhawna hai...
    behad hi sundar rachit rachna...

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  19. वाह ! वक्त के मिजाज को परखती हुईं सुंदर पंक्तियाँ दिल को छू गयीं बहुत गहराई से उपजी पंक्तियाँ!

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  20. बहुत सुंदर ...
    शुभकामनायें आपको !

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  21. बेहतरीन क्षणिकाएं अर्थपूर्ण, अच्छी लगी ...

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  22. कर्ज़ तो चुकानी ही है
    वक्त से जो ली है
    हमने जिन्दगी उधार में.बहुत सुंदर.

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  23. ४- पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
    दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
    लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
    मुझे पता भी न चला…बेहतरीन भाव कणिकाएं .आभार .

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  24. लाजवाब ....बहुत ही सुन्दर रचना.

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  25. लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
    मुझे पता भी न चला………..
    **********************
    haan bilkul aisa hi hua......

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  26. सजीव लिखा अजहि चारों क्षणिकाओं में ... जीवन का अनुभव ...

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  27. बहुत ही खूबसूरत एवं अर्थपूर्ण क्षणिकायें हैं सभी ! वक्त कब कैसे चुपचाप बीतता चला जाता है और वर्तमान के हर पल को अतीत बनाता चला जाता है पता ही नहीं चलता ! आपके ब्लॉग पर आकर अद्भुत सुखानुभूति हुई है ! साभार !

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  28. मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है,/////

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  29. खुदा ने लिख रखे हैं 'वक्त' सबके नाम के, बस लिखा कितना किसके लिए.. यही नहीं पता. यही सच है, नहीं पता इसीलिए जिज्ञासा है..आनंद हैं.

    बहुत सुन्दर रचना आपकी..

    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है..
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com

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  30. बहुत ही खुबसुरत.रचना ...

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  31. सभी लघु कविताएं गहन भावों को अभिव्यक्त कर रही हैं।

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  32. sabhi kavitaayen bahut gahre bhaav liye hue hai, badhai.

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  33. बेहद सुन्दर क्षणिकाएं!

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  34. जीवन का सारा अनुभव उंढेल दिया इन क्षणिकाओं में. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

    बधाई.

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  35. सच ही तो है
    वक़्त को भला कौन मुट्ठी में बाँध पाया है
    वक्त की फ़ित्रत को सँवारती , सुलझाती हुई
    बहुत अच्छी रचना ... !
    अभिवादन .

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  36. पानी के बूँद के गिरने से गूँज सी उठती है
    दबे पाँव चलने से कुछ आहट तो होती है
    लेकिन मेरे वक्त का एक-एक कतरा गिरा
    मुझे पता भी न चला………... nihshabd

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  37. बेहतरीन अभिव्यक्ति .....मेरा वक़्त कतरा कतरा गिरा और मुझे पता भी न चला ..बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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