कुछ साँस बची है जीने को
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
टूटे बिखरे सपनों को मैं
सहेज रही थी जीवन भर
आशा की इस बगिया में
दो बूँद बारिश का गिरने दो
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
जीवन सागर के इन लहरों में
उफान भरा, तूफा़न भरा था
थक कर खामोश हुए अब
इस खामोशी को सुनने दो
कुछ साँस बची है जीने को,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
मुट्ठी में भरी रेत सी
फिसल रही अब जिन्दगी
क्या खोया क्या पाया मैंने
आज इसे बस रहने दो
कुछ साँस बची है जीने को,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
पत्थर के निर्मोही जग में
प्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
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पत्थर के निर्मोही जग में
ReplyDeleteप्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो ...
बहुत खूब ... इस स्वार्थी जग की रीत को बाखूबी लिखा है आपने ...
पत्थर के निर्मोही जग में
ReplyDeleteप्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
jag ki reet darshata katu satya sunderata se bayan kiya hai ....
बहुत सुन्दर आग्रह है...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति महेश्वरी जी..
बधाई.
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteपत्थर के निर्मोही जग में
ReplyDeleteप्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो... aaj mujhe tum jeene do
ह्रदय तार के स्पंदन को
ReplyDeleteआज मुझे तुम सुनने दो,
खूबसूरत रचना सुंदर पोस्ट,.... बधाई |
क्या खोया क्या पाया मैंने
ReplyDeleteआज इसे बस रहने दो
बस अब यही तमन्ना है।
बहुत अच्छी कविता रची है आंटी।
सादर
bhaavpoorn abhivyakti.
ReplyDeleteजिन्दगी को जीने की आस ......मन को भा गई ....शब्दों से मन को छू लेने वाली कृति
ReplyDeleteजीवन को जीने के लिये पूरा आसमान मिले।
ReplyDeleteपत्थर के निर्मोही जग में
ReplyDeleteप्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
....बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...बहुत सुंदर
बहुत खूब, सुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन सागर के इन लहरों में
ReplyDeleteउफान भरा, तूफा़न भरा था
थक कर खामोश हुए अब
इस खामोशी को सुनने दो
जीवन का यतार्थ बयां करती एक मार्मिक कविता. बहुत सुन्दर.... आभार !
गहरे भावोँ को शब्द की आवाज बख्शी है,बढ़िया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteगहन भाव..... सच जीवन कितने सुख दुःख के रंग लिए होता ...ज़रा ठहर कर उन्हें देखें तो.....जियें तो ...
ReplyDeleteजीवन सागर के इन लहरों में
ReplyDeleteउफान भरा, तूफा़न भरा था
थक कर खामोश हुए अब
इस खामोशी को सुनने दो..
मन के संवेदनशील भावों को कहती अच्छी रचना
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ReplyDeleteह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो...बहुत ही सार्थक भावो से भरपूर्ण.....
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-694:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
भावपूर्ण
ReplyDeleteपत्थर के निर्मोही जग में
ReplyDeleteप्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो………………………………………………मन के भावो का बहुत भावपूर्ण चित्रण्।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteaapki ye rachna padhke, ek gana yaad aa raha hai... "ye jeevan hai, is jeevan ka yahi hai, yahi hai, yahi hai ran-roop..."
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए हुए खुबसूरत पंक्तियाँ ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteसादर बधाई...
ek ek pankti jeewan ke anubhav aur dhoop-chhav ko darsha rahi hai.
ReplyDeletesunder shabd shaili ne is abhivyakti ko anmol sunderta pradan ki hai.
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ReplyDeleteह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
बहुत सुन्दर पंक्तियों का संयोजन
शुभकामनाएं!
जीवन सागर के इन लहरों में
ReplyDeleteउफान भरा, तूफा़न भरा था
थक कर खामोश हुए अब
इस खामोशी को सुनने दो
एक एक पंक्ति जीवनानुभवों को गहरे से व्यक्त कर रही है ...आभार इस सुन्दर रचना के लिए
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबधाई.
बहुत ही भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteपत्थर के निर्मोही जग में
ReplyDeleteप्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
जग की यही रीत है, उसका निर्मोही होना ही सही है।
अच्छी कविता।
वाह, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
पत्थर के निर्मोही जग में
प्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
बहुत खूब
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ReplyDeleteह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो.
बहुत खूबसूरत रचना. संवेदनशील और मार्मिक.
मुट्ठी में भरी रेत सी
ReplyDeleteफिसल रही अब जिन्दगी
क्या खोया क्या पाया मैंने
आज इसे बस रहने दो ...
सटीक लिखा है आपने! दिल को छू गई ये पंक्तियाँ!
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना ! बधाई!
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ReplyDeleteकुछ साँस बची है जीने को,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने दो
पत्थर के निर्मोही जग में
प्यार का अहसास नहीं है
पल-पल पीया है आँसू मैंने
आज इसे तुम बहने दो
कुछ साँस बची है जीने को ,जी भर मुझ को जीने दो
ह्रदय तार के स्पंदन को ,आज मुझे तुम सुनने ....
Awesome !
Very nice creation .
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बहुत सुंदर भाव ....
ReplyDeleteमुट्ठी में भरी रेत सी
फिसल रही अब जिन्दगी
क्या खोया क्या पाया मैंने
आज इसे बस रहने दो
बस जब से जागरण हो जाये उसी समय से जीवन बदल जाता है.
टूटे बिखरे सपनों को मैं
ReplyDeleteसहेज रही थी जीवन भर
आशा की इस बगिया में
दो बूँद बारिश का गिरने दो.very nice.