जीवन में कई बसंत सी खिली मैं
कई पतझड़ सी झरी मैं
कई बार गिरी
गिर कर उठी
मन में हौसला लिए
जीवन पथ पर बढ़ी
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।
कभी मोम बन पिघलती रही
कभी बाती बन जलती रही
मन में अनंत अहसास संजोए
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।
कई बार फूलों की चाह में
काँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
मैं बढ़ती रही,चलती रही ।
पीछे मुड़ कर देखने का वक्त कहाँ..
वक्त बदलता गया
मान्यताए बदलती रही
अपनी ही अनुभव की गठरी संभाले
मैं बढ़ती रही, चलती रही
कब तक और चलना है ? कौन जाने
शायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
************************
अच्छी प्रस्तुति उलझना सुलझना
ReplyDeleteकई बार फूलों की चाह में
ReplyDeleteकाँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको...kyonki chalna hai, yahi jivan hai
जी हाँ चलना ही जीवन है इसीलिए…
ReplyDeleteबस चलते रहिये मंजिल खुद बखुद मिल जाएगी... सुन्दर रचना
महेश्वरी जी,
ReplyDeleteशायद जीवन इसी का नाम है
चलना ही जिंदगी,
रुकना है मौत तेरी,
पोस्ट बहुत अच्छी लगी,
मेरे नये पोस्ट पर आइये,
कब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
************************जीवन तो बस चलना है..... भावपूर्ण रचना....
चलना ही जिन्दगी का नाम है ....बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही
चलाना ही तो जीवन है ...
जीवन में यूँ चलते रहना इसे गतिमान रखता है.....बेहतरीन रचना ....
ReplyDeleteकब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
...सच कहा है...यूँ ही चलते चलते मंज़िल मिल जाये यही आशा जीवन है...सुंदर प्रस्तुति...
वो अदृश्य हाथ हमेशा हमें सँभालने तो तत्पर हैं!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
कब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
बहुत खूब आंटी जी !
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
सादर
कब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
बहुत बढि़या लिखा है आपने .. आभार ।
आपको जन्मदिन की हार्दिक मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता महेश्वरी जी....और ऊपर के कमेन्ट से पता लगा आपका जन्मदिवस है...मेरी शुभकामनाएं भी कबूल करें...स्नेह बनाये रखिये.
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं में से एक ||
ReplyDeleteआभार ||
जीवंत कविता |बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबेमिसाल शब्द और लाजवाब भाव...उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteनीरज
चलना ही जिन्दगी है, वाह, सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव रचना!
ReplyDeletechalna yahi to jindgi hai,
ReplyDeletehar mod par de jaati
kuch khushiyan to kuch gam
जीवन का कटु सत्य समेटे अद्भुत रचना.
ReplyDeleteजन्मदिन की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteअदृष्य हाथों पर भरोसा है तो चलते रहने में ही जीवन है. सुंदर कविता.
ReplyDeleteजीवन चलने का नाम चलते रही सुबह शाम ...कि रास्ता थक जाएगा मित्रा .......बेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना है...
ReplyDeleteप्रत्येक पंक्ति एक गहरे अहसास लिए उभरती है...
चलते रहना ही जीवन है बहाव के साथ ही बहना पडता है…………आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteहर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
ReplyDeleteमैं बढ़ती रही,चलती रही ।
बहुत सुंदर कविता है ....
देर से ही सही पर जन्म दिन की बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी तरफ से भी ...!!
कभी मोम बन पिघलती रही
ReplyDeleteकभी बाती बन जलती रही
मन में अनंत अहसास संजोए
मैं बढ़ती रही, चलती रही । भावपूर्ण रचना.
कई बार फूलों की चाह में
ReplyDeleteकाँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
फूलों ने ही उलझाया मुझको.... !
उलझनें सुलझाने में बीत गई जिन्दगी.... !!
आपके शब्द हारे को जीता दे ,
उसकी बना दे जिन्दगी...
जब चलने और चलने का मन बना लें, तो हर बाधा से पार पाने का हौसला बन जाता है।
ReplyDeleteकब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
आपकी पोस्ट बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायक है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
चलते जाने का नाम ही जिन्दगी है....बेहतरीन रचना..
ReplyDeleteचलना ही जिंदगी है...
ReplyDeleteजीवन के यथार्थ की सुंदर अभिव्यक्ति।
कई बार फूलों की चाह में
ReplyDeleteकाँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
मैं बढ़ती रही,चलती रही ।
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती
कभी मोम बन पिघलती रही
ReplyDeleteकभी बाती बन जलती रही
मन में अनंत अहसास संजोए
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।
बहुत ही खूबसूरत रचना, तारीफ़ के लिए क्या शब्द चुनु समझ में नहीं आ रहा !
कब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
bahut umda .....
सुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वगत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।
ReplyDeleteकब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
सुन्दर भाव रचना मानसिक जगत को साकार करती .सच यह भी है जो चला गया वो चला गया उसे भूल जा वो चला गया .
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
ReplyDeleteमैं बढ़ती रही,चलती रही ।
...........बहुत सुंदर कविता !
प्रेरक हैं .
ReplyDeleteप्रेरक रचना समझाती -चलना माने आगे बढना ,चलना जीवन ,रुकना मृत्यु ,चलना- याने जड़ता का नाश यानी गत्यात्मकता .गति और सारी सृष्टि सारी कायनात में इस गति का ही तो शाशन है ,परमाणु में तारों के beech के antraal में ,grahon का nartan और paribhraman ,nihaarikaaon भी ...shaashvat है anthak है ....
प्रेरक बढ़िया पोस्ट,...
ReplyDeleteनए पोस्ट"प्रतिस्पर्धा"में इंतजार है,...
पीछे मुड़ कर देखने का वक्त कहाँ..
ReplyDeleteवक्त बदलता गया
मान्यताए बदलती रही
अपनी ही अनुभव की गठरी संभाले
मैं बढ़ती रही, चलती रही...
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! जीवन का यही दस्तूर है! चाहे कितनी भी बाधा और विपत्ति क्यूँ न आए पर हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए! भावपूर्ण और प्रेरक रचना!
कई बार फूलों की चाह में
ReplyDeleteकाँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
मैं बढ़ती रही,चलती रही ।
वास्तव में कोई है जो संभाले हुए है हमें...
सुन्दर....!!
कब तक और चलना है ? कौन जाने
ReplyDeleteशायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
.....
सुंदर चिंतन माहेश्वरी दी,...
ये अनंत की यात्रा है अनंत में समाहित होने तक जारी रहेगी दी .. बस चलते ही रहना है हमको ...और करना भी क्या क्या यत्र का धर्म ही है बस आगे बढते जाना !