abhivainjana


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Friday, 25 November 2011

मैं चलती रही, बस चलती रही



जीवन में कई बसंत सी खिली मैं
कई पतझड़ सी झरी मैं
कई बार गिरी 
गिर कर उठी
मन में हौसला लिए
जीवन पथ पर बढ़ी
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।

कभी मोम बन पिघलती रही
कभी बाती बन जलती रही
मन में अनंत अहसास संजोए
मैं बढ़ती रही, चलती रही ।

कई बार फूलों की चाह में
काँटों को भी गले लगाया मैंने
और ,कई बार तो
 फूलों ने ही उलझाया मुझको
लेकिन..
हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
मैं बढ़ती रही,चलती रही  ।

पीछे मुड़ कर देखने का वक्त कहाँ..
वक्त  बदलता गया
मान्यताए बदलती रही
अपनी ही अनुभव की गठरी संभाले
मैं बढ़ती रही, चलती रही

कब तक और चलना है ? कौन जाने
शायद चलना ही जीवन है
इसीलिए…
 मैं चलती रही, बस चलती रही  ……..
************************

44 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुति उलझना सुलझना

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  2. कई बार फूलों की चाह में
    काँटों को भी गले लगाया मैंने
    और ,कई बार तो
    फूलों ने ही उलझाया मुझको
    लेकिन..
    हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको...kyonki chalna hai, yahi jivan hai

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  3. जी हाँ चलना ही जीवन है इसीलिए…
    बस चलते रहिये मंजिल खुद बखुद मिल जाएगी... सुन्दर रचना

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  4. महेश्वरी जी,
    शायद जीवन इसी का नाम है
    चलना ही जिंदगी,
    रुकना है मौत तेरी,
    पोस्ट बहुत अच्छी लगी,
    मेरे नये पोस्ट पर आइये,

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  5. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
    ************************जीवन तो बस चलना है..... भावपूर्ण रचना....

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  6. चलना ही जिन्दगी का नाम है ....बहुत सुंदर रचना

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  7. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही

    चलाना ही तो जीवन है ...

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  8. जीवन में यूँ चलते रहना इसे गतिमान रखता है.....बेहतरीन रचना ....

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  9. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है

    ...सच कहा है...यूँ ही चलते चलते मंज़िल मिल जाये यही आशा जीवन है...सुंदर प्रस्तुति...

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  10. वो अदृश्य हाथ हमेशा हमें सँभालने तो तत्पर हैं!
    सुन्दर रचना!

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  11. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..

    बहुत खूब आंटी जी !

    आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

    सादर

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  12. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
    बहुत बढि़या लिखा है आपने .. आभार ।

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  13. आपको जन्मदिन की हार्दिक मंगलकामनाएं।

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  14. बहुत सुन्दर कविता महेश्वरी जी....और ऊपर के कमेन्ट से पता लगा आपका जन्मदिवस है...मेरी शुभकामनाएं भी कबूल करें...स्नेह बनाये रखिये.

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  15. सुन्दर रचनाओं में से एक ||

    आभार ||

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  16. जीवंत कविता |बहुत सुन्दर |

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  17. बेमिसाल शब्द और लाजवाब भाव...उत्कृष्ट रचना

    नीरज

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  18. चलना ही जिन्दगी है, वाह, सुन्दर कविता।

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  19. chalna yahi to jindgi hai,
    har mod par de jaati
    kuch khushiyan to kuch gam

    ReplyDelete
  20. जीवन का कटु सत्य समेटे अद्भुत रचना.

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  21. जन्मदिन की शुभकामनाएँ!

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  22. अदृष्य हाथों पर भरोसा है तो चलते रहने में ही जीवन है. सुंदर कविता.

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  23. जीवन चलने का नाम चलते रही सुबह शाम ...कि रास्ता थक जाएगा मित्रा .......बेहद सुन्दर भावपूर्ण रचना....

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  24. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना है...
    प्रत्येक पंक्ति एक गहरे अहसास लिए उभरती है...

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  25. चलते रहना ही जीवन है बहाव के साथ ही बहना पडता है…………आपको जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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  26. हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
    मैं बढ़ती रही,चलती रही ।
    बहुत सुंदर कविता है ....
    देर से ही सही पर जन्म दिन की बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी तरफ से भी ...!!

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  27. कभी मोम बन पिघलती रही
    कभी बाती बन जलती रही
    मन में अनंत अहसास संजोए
    मैं बढ़ती रही, चलती रही । भावपूर्ण रचना.

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  28. कई बार फूलों की चाह में
    काँटों को भी गले लगाया मैंने
    और ,कई बार तो
    फूलों ने ही उलझाया मुझको.... !
    उलझनें सुलझाने में बीत गई जिन्दगी.... !!
    आपके शब्द हारे को जीता दे ,
    उसकी बना दे जिन्दगी...

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  29. जब चलने और चलने का मन बना लें, तो हर बाधा से पार पाने का हौसला बन जाता है।

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  30. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..

    आपकी पोस्ट बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायक है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.

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  31. चलते जाने का नाम ही जिन्दगी है....बेहतरीन रचना..

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  32. चलना ही जिंदगी है...
    जीवन के यथार्थ की सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  33. कई बार फूलों की चाह में
    काँटों को भी गले लगाया मैंने
    और ,कई बार तो
    फूलों ने ही उलझाया मुझको
    लेकिन..
    हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
    मैं बढ़ती रही,चलती रही ।

    हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती

    ReplyDelete
  34. कभी मोम बन पिघलती रही
    कभी बाती बन जलती रही
    मन में अनंत अहसास संजोए
    मैं बढ़ती रही, चलती रही ।


    बहुत ही खूबसूरत रचना, तारीफ़ के लिए क्या शब्द चुनु समझ में नहीं आ रहा !

    ReplyDelete
  35. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
    bahut umda .....

    ReplyDelete
  36. सुन्दर प्रस्तुति |मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वगत है । कृपया निमंत्रण स्वीकार करें । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  37. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
    सुन्दर भाव रचना मानसिक जगत को साकार करती .सच यह भी है जो चला गया वो चला गया उसे भूल जा वो चला गया .

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  38. हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
    मैं बढ़ती रही,चलती रही ।
    ...........बहुत सुंदर कविता !

    ReplyDelete
  39. प्रेरक हैं .
    प्रेरक रचना समझाती -चलना माने आगे बढना ,चलना जीवन ,रुकना मृत्यु ,चलना- याने जड़ता का नाश यानी गत्यात्मकता .गति और सारी सृष्टि सारी कायनात में इस गति का ही तो शाशन है ,परमाणु में तारों के beech के antraal में ,grahon का nartan और paribhraman ,nihaarikaaon भी ...shaashvat है anthak है ....

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  40. प्रेरक बढ़िया पोस्ट,...
    नए पोस्ट"प्रतिस्पर्धा"में इंतजार है,...

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  41. पीछे मुड़ कर देखने का वक्त कहाँ..
    वक्त बदलता गया
    मान्यताए बदलती रही
    अपनी ही अनुभव की गठरी संभाले
    मैं बढ़ती रही, चलती रही...
    बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! जीवन का यही दस्तूर है! चाहे कितनी भी बाधा और विपत्ति क्यूँ न आए पर हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए! भावपूर्ण और प्रेरक रचना!

    ReplyDelete
  42. कई बार फूलों की चाह में
    काँटों को भी गले लगाया मैंने
    और ,कई बार तो
    फूलों ने ही उलझाया मुझको
    लेकिन..
    हर बार दो अदृश्य हाथों ने संभाला मुझको
    मैं बढ़ती रही,चलती रही ।

    वास्तव में कोई है जो संभाले हुए है हमें...
    सुन्दर....!!

    ReplyDelete
  43. कब तक और चलना है ? कौन जाने
    शायद चलना ही जीवन है
    इसीलिए…
    मैं चलती रही, बस चलती रही ……..
    .....
    सुंदर चिंतन माहेश्वरी दी,...
    ये अनंत की यात्रा है अनंत में समाहित होने तक जारी रहेगी दी .. बस चलते ही रहना है हमको ...और करना भी क्या क्या यत्र का धर्म ही है बस आगे बढते जाना !

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