पगडंडी
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पगडंडी |
दबी हुई ,कुचली हुई
बेबस लाचार
उदास सी एक पगडंडी
राहगीरों को पनघट
तक ले जाती
उनकी प्यास बुझाती
खुद प्यासी रह जाती
रोज़ टूटती ,रोज़ बिखरती
सोच-सोच रह जाती
मेरा भी घर होता
चाहने वाला होता
फिर यूँ मैं ,इस तरह
न रौंदी न कुचली जाती ….
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पगडंडी की व्यथा को बहुत अच्छे से शब्दों मे उभारा है आपने।
ReplyDeleteसादर
पगदण्डी के माध्यम से आपने तो बहुत ही संनेदनशील रचना रची है!
ReplyDeleteबधाई!
एक भावमय प्रस्तुति, ओजपूर्ण कविता. .....आभार ! किन्तु फोटो कविता से match नहीं करते.
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ३-०९-११ को नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आयें और अपने विचार दें......
ReplyDeletegahri soch ki gahri abhivyakti
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteराह की व्यथा,
ReplyDeleteआह, है कथा।
जिस प्रतीक के रूप में आपने पगडंडी को चित्रितित किया है वह बड़ा ही अनुपम प्रयोग है।
ReplyDeleteकितनों को राह दिखा मंज़िल तक पहुंचाने वाली पगडंडी की अवस्था सच में मार्मिक ही है।
बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसभी मित्र बंधुओ को बहुत-बहुत धन्यवाद.. आशा है आगे भी आपके उत्साह बढ़ानेवाले सन्देश मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /
ReplyDeletebahut sunder achhi lagi rachna ........
ReplyDeleteMarmik.... Behtreen Bimb chunkar rachna likhi aapne....
ReplyDeleteएकदम अनूठी व नूतन कल्पना से व्यथा कही गई है.
ReplyDeletebahut hi sunder upma di hai aapne pagdandi ki.......
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना.आभार.
ReplyDeleteपगडण्डी की व्यथा का बखूबी चित्रण किया है ...मर्मस्पर्शी रचना ...!!
ReplyDeleteभाव मई ..पगडण्डी का मानवीकरण ..उसकी ब्यथा का मार्मिक सजीव चित्रण !! बधाई एवं शुभकामनायें !!! सादर !!!
ReplyDeletekhoobsurati se pagdandi ki vyatha kahi hai aapne
ReplyDeleteकभी -कभी हम भी पगडण्डी हो जाते हैं...प्रभावी रचना |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
पगडंडी को प्रतीक बनाकर बहुत गहरी बात कह दी आपने।
ReplyDeleteबढ़िया कविता।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
वाह !क्या बात हें .. काली कोलतार की सड़क के पास भी दिल होता हें ? जज्बात होते हैं .. मान गए दोस्त !!!!.
ReplyDeleteजो भी दूसरों को मार्ग दिखाते हैं वे स्वयं ही महान बन जाते हैं।
ReplyDeleteहाशिए पर पड़े नर नारियों की व्यथा कह दी आपने .एक व्यापक कैनवास की रचना "पगडण्डी "वंचिता ,शोषिता का प्रतीक बन उभरी है "पगडण्डी "में .
ReplyDeleteपगडंडी
दबी हुई ,कुचली हुई
बेबस लाचार
उदास सी एक पगडंडी
राहगीरों को पनघट
तक ले जाती
उनकी प्यास बुझाती
खुद प्यासी रह जाती
शुक्रवार, २ सितम्बर २०११
शरद यादव ने जो कहा है वह विशेषाधिकार हनन नहीं है ?
"उम्र अब्दुल्ला उवाच :"
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सधे शब्दों में पगडंडी की व्यथा का बयान कर दिया है |बधाई
ReplyDeleteआशा
वाह ...बहुत बढि़या लिखा है ।
ReplyDeleteअभिनव प्रतीक के रूप में पगडंडी का प्रयोग करती सुंदर रचना !
ReplyDeleteमेरा भी घर होता
ReplyDeleteचाहने वाला होता
फिर यूँ मैं ,इस तरह
न रौंदी न कुचली जाती ….
bhav purn abhivyakti
rachana
एक आह को पगडण्डी का सहारा लेकर खूबसूरती से प्रस्तुत करती एक खूबसूरत रचना |
ReplyDeleteमाहेश्वरी जी अभिवादन .. जय श्री कृष्ण .. पगडण्डी को सामने रख नारी और अन्य बहुत की व्यथा कथा कह डाली आप ने -सुन्दर चित्रण ..काश ये पीड़ा जाए ...धन्यवाद
ReplyDeleteभ्रमर ५
पगडण्डी की व्यथा कभी सोची भी न थी मैंने...बहुत खूब...
ReplyDeleteशिक्षक दिवस पर आपको सादर अभिवादन
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteप्रभावशाली प्रस्तुति ...
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की शुभकामनाएं
पगडंडी के माध्यम से आपने तो बहुत ही संनेदनशील रचना रची है
ReplyDeleteबधाई......!!
पगडण्डी की व्यथा का बहुत संवेदनशील चित्रण .......
ReplyDeleteपगडंडी का बिम्ब ले एकाकी जीवन की विवशता का मार्मिक चित्रण.
ReplyDeleteवाह...बेजोड़ रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
aadarniy mam
ReplyDeletekitana gahra yatharth chhupa hua hai aapki is post .oh!bahut hi sahjta gahan baat kahi hai aapne
bahut bahut hi behtreen ----
hardik abhinandan ke saath
poonam
एक बिम्ब बन कर उभरी पगडंडी......गुजर गई दिल से हो कर....बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteहर कोई इस्तेमाल तो करता है पर उसका दर्द नहीं समझता ... बहुत अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteपगडंडी का प्रयोग करती सुंदर रचना.
ReplyDeleteमेरा भी घर होता
ReplyDeleteचाहने वाला होता
फिर यूँ मैं ,इस तरह
न रौंदी न कुचली जाती ….मार्मिक !पगडण्डी का मानवीकरण कर दिया आपने .
बृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
ग़ज़ल
सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,
लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।
एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।
हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह
ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।
हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,
चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,
शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़
'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।
विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
दी तस्वीरें और आपकी रचना - अप्रतिम - आभार
ReplyDeleteदूसरों के काम आ कर तृप्ति मिलती है ..बस कुचले न जाएँ ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteपगडण्डी का बखूबी चित्रण किया है ....बहुत अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने।
कम ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं।
कुछ शय होते हैं अक्सर सज जाने के वास्ते,
ReplyDeleteकुछ रह जाते हैं पगडण्डी की तरह कुचलने के वास्ते .
बहुत उम्दा व् गहरी सोंच ......
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteबहुत गहरी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteपगडंडी के बिम्ब पर मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteपगडंडी का घर.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने.
पगडण्डी का मानवीकरण कर आपने मन के एकाकीपन को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है आपका आभार
ReplyDeleteमन को झकझोर दिया आपने। हार्दिक बधाई।
ReplyDelete------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।