वो जीना चाहता है
सफर के इस संध्या में
चलते-चलते, लगता है
.थक गई हूँ
कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं
साँस थमने लगती है
सोचती हूँ .. बस
यहीं रुक जाऊँ ,सुस्ताऊँ
तभी मेरी नन्हीं सी पोती
मेरा हाथ थामे
मेरे कानों में कुछ कहती है
और मैं ,मंत्रमुग्ध सी
फिर चलने लगती हूँ
बिना रुके बिना थके…
बस यही एक अनुभूति,
प्यार की ,स्पर्श की
जो डूबते मन में
आस- विश्वास भर देता है
और
जीने की चाह जगा देता है
शायद ……
आने वाला कल
बीते हुए कल का सपना है
उसे हमेशा पुष्पित और
पल्ल्वित होते देखना चाहता है
इसी लिए
अतीत बन कर ही सही
पर वो जीना चाहता है
वो जीना चाहता है………….
*********
बहुत बढि़या ...।
ReplyDeleteसकारात्मक दृष्टिकोण को उजागर करती हुई रचना .....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
एक अनुभूति,
ReplyDeleteप्यार की ,स्पर्श की
जो डूबते मन में
आस- विश्वास भर देता है
और
जीने की चाह जगा देता है
koi shak nahi ... bahut hi gahri vyakhya , badi komalta se
वाह बहुत खूब .....रिश्तो में जीने की इच्छा ...और प्यार यूँ ही बना रहे ....हर एहसास जीने की इच्छा को यूँ ही बढाता रहे .......आभार
ReplyDeleteअतीत बन कर ही सही
ReplyDeleteपर वो जीना चाहता है
वो जीना चाहता है
क्या लिखा है आपने.... बहुत ही असुंदर.....दिल को छू गया...
Maheshwari jee namaskaar aapne mera hamesha utsaahwardhan kiya hai mere blag me aakar mai saadar aabhar deta hu aapko mere anya blag ki bhi shobha badhaye aakar आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
ReplyDeleteआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
क्या बात है महेश्वरी जी,
ReplyDeleteबचपन बुढ़ापे का अनोखा अहसास
नया जीवन जीने की प्रेरणा देता हुआ,
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
नई पोस्ट जारी की है,
प्रेम को पुकारती-सी, ज़िन्दगी को आवाज़ लगाती-सी एक सुंदर रचना !
ReplyDeleteवस्तुतः सोचने का विषय है..एक छोटी-सी भंगिमा 'स्पर्श' जीवन की संध्या-बेला में भी जीवन की स्फूर्ति जगा देती है..!!! बहुत सुंदर..!!!
ReplyDeleteसभी मित्र बंधुओ को बहुत-बहुत धन्यवाद..मेरी भावनाओ को सहारा देने के लिए.. आशा है आगे भी आपके उत्साह बढ़ानेवाले सन्देश मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..सकारात्मक सोच की प्रभावी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबढती उम्र में ऊर्जा का संचार कराती एक बेहतरीन कविता. आभार !
ReplyDeleteतभी मेरी नन्हीं सी पोती
ReplyDeleteमेरा हाथ थामे
मेरे कानों में कुछ कहती है
और मैं ,मंत्रमुग्ध सी
फिर चलने लगती हूँ
सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
देत बधाई प्रेम से, हो प्रस्तुति-अविराम ||
बहुत ही सार्थक और बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteजिन्दगी को जी भर के जीने के लिए प्रेरित करती रचना....
ReplyDeleteजीवन की आस मौलिक है, जीना आलौकिक है।
ReplyDeleteवो जीना चाहता है
ReplyDeleteसफर के इस संध्या में
चलते-चलते, लगता है
.थक गई हूँ
कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं
साँस थमने लगती है
सोचती हूँ .. बस
यहीं रुक जाऊँ ,सुस्ताऊँ
तभी मेरी नन्हीं सी पोती
मेरा हाथ थामे
मेरे कानों में कुछ कहती है
और मैं ,मंत्रमुग्ध सी
फिर चलने लगती हूँ
बिना रुके बिना थके…आगे की और ही तो है जीवन भले दोहराव है अतीत का व्यतीत का ,दे -जावू है ..बहुर सुन्दर रचना मन को स्पर्श करती सी .बधाई !
वो जीना चाहता है
ReplyDeleteसफर के इस संध्या में
चलते-चलते, लगता है
.थक गई हूँ
कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं
साँस थमने लगती है
सोचती हूँ .. बस
यहीं रुक जाऊँ ,सुस्ताऊँ
तभी मेरी नन्हीं सी पोती
मेरा हाथ थामे
मेरे कानों में कुछ कहती है
और मैं ,मंत्रमुग्ध सी
फिर चलने लगती हूँ
बिना रुके बिना थके…आगे की ओर ही तो है जीवन भले दोहराव है अतीत का व्यतीत का ,दे -जावू है ..बहुर सुन्दर रचना मन को स्पर्श करती सी .बधाई !
बहुत सुंदर भाव हैं इस कविता में.. जीवन आगे बढने का ही नाम है बहाना कोई भी हो....
ReplyDeleteMaheshwari ji,
ReplyDeleteapnapan aur sneh aisa bhaav hai jo hamein jivit rakhta hai aur chalte rahne ke liye prerit karta hai...
सोचती हूँ .. बस
यहीं रुक जाऊँ ,सुस्ताऊँ
तभी मेरी नन्हीं सी पोती
मेरा हाथ थामे
मेरे कानों में कुछ कहती है
और मैं ,मंत्रमुग्ध सी
फिर चलने लगती हूँ
बिना रुके बिना थके…
bahut utkrisht rachna, badhai.
khoobsorat hai ye soch aapki...
ReplyDeleteApne blog par fir se sajag hone ke prayaas me hoon:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
सबसे पहले हिंदी दिवस की शुभकामनायें /
ReplyDeleteइसी लिए
अतीत बन कर ही सही
पर वो जीना चाहता है
वो जीना चाहता है…बहुत ही सुंदर और गहन सोच को उजागर करती हुई बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट हिंदी दिवस पर लिखी पर आपका स्वागत है /
http://prernaargal.blogspot.com/2011/09/ke.html/ आभार/
प्रेम की शक्ति .. नेह का बंधन अपार होता है .... नई शक्ति का प्रवाह करता है .. सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteप्यार और स्पर्श , यही तो है सब कुछ । सबसे ज्यादा मिलता है ये मासूम , नन्हे-नन्हे हाथों के स्पर्श में। ये छोटे-छोटे सुखद अनुभव ही मन को प्रफुल्लित रखते हैं ।
ReplyDeleteसुन्दरता से अभिव्यक्त किया है , बेहतरीन रचना |
ReplyDeleteयह एक ऐसा एहसास है जो हमें और, .. और, .. और जीने का हौसला देता है।
ReplyDeleteसुंदर ...मन को छूती रचना ....
ReplyDeleteसबसे पहले हिंदी दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteवो जीना चाहता है
सफर के इस संध्या में
चलते-चलते, लगता है
.थक गई हूँ
बहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं
बहुत कोमल भाव समेटे अति सुन्दर रचना अंतर्मन में रची बसी नैसर्गिक कोंपल यूँ ही प्रस्फुटित होती है और जीवन उदासियों के गहन अन्धकार से पुनः स्नेहिल आलोक से प्रकाशमय हो जाता है अर्थ पूर्ण बन जाता है....आपको हार्दिक शुभ कामनाएं एवं सादर अभिनन्दन !!!
ReplyDeleteबहुत नाजुक...
ReplyDeleteप्यारे शब्द।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना और भाव
ReplyDeleteआने वाला कल
बीते हुए कल का सपना है
उसे हमेशा पुष्पित और
पल्ल्वित होते देखना चाहता है
इसी लिए
अतीत बन कर ही सही
पर वो जीना चाहता है
सुन्दर संवेदनशील सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteyahi to setu hain hamari jindgi ke. sunder abhivyakti.
ReplyDeleteएक अनुभूति,
ReplyDeleteप्यार की ,स्पर्श की
जो डूबते मन में
आस- विश्वास भर देता है
और
जीने की चाह जगा देता है
व्यक्ति को जीने का संबल देता है परिवार ...
सुंदर और सकारात्मक रचना.
ReplyDeleteसभी मित्र बंधुओ को बहुत-बहुत धन्यवाद..मेरी भावनाओ को सहारा देने के लिए.. आशा है आगे भी आपके उत्साह बढ़ानेवाले सन्देश मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /आभार /
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