बिलखता बचपन
धूल मिट्टी में सने
ये धरती के लाल
आँखो में है उदासी
उलझे-उलझे से बाल
पेट है खाली-खाली
मन में भरा जज्बात
हाथों की आड़ी तिरछी लकीरे
भाग्य को देते हैं मात
खाने खेलने की उम्र में
मेहनत करते दिन रात
मेहनत की कमाई
जब गिनने बैठते
छीन कर ले जाता
उनका शराबी बाप
रोते बिलखते….
फिर…अगली सुबह
चल पड़ते………….बचपन तलाशते
सड़कों में, चौराहों में
न जाने कहाँ-कहाँ
बिखरे हुए हैं
ये मासूम से सौगात
कह दो ,कह दो कोई
देश के इन ठेकेदारों से
जो करते ,विकास की बात
बचपन जहाँ बिलख रहा हो
वहाँ
कैसे पनप सकता है, विकास
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बिलकुल सही कहा आपने। बच्चे देश का भविष्य होते हैं और जब उनकी ही स्थिति अच्छी नहीं होगी तो भविष्य की कल्पना ही की जा सकती है। वक़्त सामी रहते चेत जाने का है।
ReplyDelete------------
कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
त्रुटि सुधार-
ReplyDeleteऊपर की टिप्पणी मे कृपया सामी को समय पढ़ें।
सही बताया है आपने।
ReplyDeleteसही लिखा है .....ऐसे विकास करना सही अर्थों विकास में विकास तो है ही नहीं
ReplyDeleteमार्मिक परिस्थितियाँ।
ReplyDeleteसच कहा आपने...
ReplyDeletegahan chintan karwati rachna...
ReplyDeleteसचमुच, बाल मजदूरी एक अभिशाप है...... सुन्दर व मार्मिक चित्रण..... आभार!!
ReplyDeleteबचपन जहाँ बिलख रहा हो
ReplyDeleteवहाँ
कैसे पनप सकता है, विकास... asambhaw hai vikaas , sahi drishtikon diya
बचपन जहाँ बिलख रहा हो
ReplyDeleteवहाँ
कैसे पनप सकता है, विकास
...बहुत सच कहा है..जिस विकास का फायदा सभी तक न पहुंचे, ऐसे विकास के क्या मायने. बहुत मर्मस्पर्शी रचना.
कटु सत्य ||
ReplyDeleteहाथों की आड़ी तिरछी लकीरे
ReplyDeleteभाग्य को देते हैं मात
खाने खेलने की उम्र में
मेहनत करते दिन रात
मर्मस्पर्शी रचना
सुन्दर व मार्मिक चित्रण....
ReplyDeletedesh ke thekedaro ke aas paas hi sabse jyada ye bachpan bilakh raha hota hai jis par inka dhyan kabhi nahi jata.
ReplyDeletemarmik prastuti.
ओह,पढ़ने की उम्र में इतनी मेहनत.मर्मस्पर्शी.
ReplyDeletesach me dukh hota hai dekh-dekh kar ....
ReplyDeletebahut satik likha hai ...
बहुत सुंदर ...सशक्त रचना
ReplyDeleteसत्य को कहती मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteसशक्त पर मार्मिक रचना,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बाल मजदूरी एक अभिशाप है..सशक्त मार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeletebahut marmik kuch shochne par vivash karti hui rachna.
ReplyDeleteआज के हालात का सटीक चित्रण किया है।
ReplyDeleteजब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने...
ReplyDeleteबहुत सार्थक और मर्म स्पर्शी रचना...बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteनीरज
Bilkul sahi baat hai ji. . . .
ReplyDeleteबहुत ही गहन भाव लिये हुये सार्थक व सटीक लेखन ... ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत अच्छी रचना , मार्मिक ,कटु जिसे बदलना चाहिए.
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है बाल समस्या पर कम लोग ही ध्यान देते हैं |
ReplyDeleteआशा
मार्मिक चित्रण और चित्र...
ReplyDeleteसादर...
यही हमारा तथाकथित विकास है |यह मजदूर इस लिए है क्योंकि मजबूर है | सार्थक रचना ,आभार
ReplyDeleteमेरे ख्याल से इस महंगाई और भ्रष्टाचार ने देश का बचपन बर्बाद कर दिया है.. और खासकर देश का बचपन..
ReplyDeleteजो बचपन अच्छी बातें देखकर देश-निर्माण करता, वही अपने चारों ओर भ्रष्टाचार देखकर देश को आगे चलकर गौण करेगा..
अनछुए पहलू को आपने उठाया है..
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
बालमन या बच्चों की सम्वेदना से जुडी उत्कृष्ट कविता |आभार
ReplyDeleteदेश का दर्द संजोये है यह रचना .विकास का खोखलापन नौनिहालों की ज़बानी कह गई है यह रचना .
ReplyDeleteये मासूम से सौगात
ReplyDeleteकह दो ,कह दो कोई
देश के इन ठेकेदारों से
जो करते ,विकास की बात
बचपन जहाँ बिलख रहा हो
वहाँ कैसे पनप सकता है, विकास
बहुत सही लिखा है आपने .आपका आभार…
बहुत ही भाव पूर्ण अभिव्यक्ति मजबूर बचपन मजदूर बचपन
ReplyDeleteविकास की ये कैसी दशा है एक और पञ्च सितारा सभ्यता का समृद्ध संसार वहीँ दूसरी ओर विवशता और अभावों का बिलखता संसार......
सभी रचनाओं की अलग अलग क्या तारीफ करू सभी बहुत ही उम्दा है
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