जाड़े की सर्द रात
बरसती बरसात
बाद्ल की गड़गड़ाहट
बिजली की चमचमाहट
जर्जर झोपड़ी में
टूटी छ्त के नीचे……
एक मां..
भूखे बीमार बच्चे को
छाती से चिपकाए
ठिठुरती अकुलाती
भाग्य को कोसती
रात बिताती ।
वो सवेरा कब होगा, जब
भर पेट भोजन होगा
तन पर कपडा होगा
सोने को बिछौना होगा
यही सोचती रात बिताती
एक दिन. ऎसी सुबह आई
जिसे , देख भी न पाई ।
उसकी बेबसी और लाचारी
सूर्खियां बन गई थीं ,
अखबारों की ।
खबर छ्पी थी …….
“एक झोपड़ी में मां और बेटा
दोनों मरे हुए पाए गए ।
कहा जाता है…
कडा़के की ठंड ने
उनकी जान ले ली “ ।
विधि का भी क्या विधान है
यहां जीना मुश्किल
तो, मरना आसान है
जीते जी कोई खबर न ले
मरे तो, खबर बन जाए ।
खबर तो बस खबर है,
अगले ही पल बासी हो जाती हैं ।
शायद इस बदलते, बिगड्ते
परिवेश का यही तकाजा है
खबरों को बासी जान भूल जाना
फिर …
अगले की इंतजार में दिन बिताना ।
इन खबरों की यही नियति है
हर रोज
कचरे की ढेर में इकट्ठा होना ,
फिर वही दफन हो जाना .
विधि का भी क्या विधान है
ReplyDeleteयहां जीना मुश्किल
तो, मरना आसान है
जीते जी कोई खबर न ले
मरे तो, खबर बन जाए ।
मार्मिक....... पर आज के दौर के सत्य को सहेजे भाव उकेरे हैं आपने .....बहुत बढ़िया
बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteकृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
बहुत मार्मिक प्रस्तुती ........
ReplyDeleteपहली बार ई हूँ आपके ब्लॉग पर ...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ..
"विधि का भी क्या विधान है
यहां जीना मुश्किल
तो, मरना आसान है
जीते जी कोई खबर न ले
मरे तो, खबर बन जाए ।"
मर्मस्पर्शी लेखन है आपका ..!
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
जीवन की कटु सच्चाईयों से रूबरू कराती, मर्म स्पर्शी सुंदर रचना.
ReplyDeleteआभार.
सादर,
डोरोथी.
बेहद मर्मस्पर्शी ......
ReplyDeleteसम सामयिक एवं मार्मिक रचना.
ReplyDeleteबेहतरीन और दिल को छूने वाली कविता।
ReplyDeleteसादर