लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ,
सजधज धरती पर छाये.
हर्षित धरती पुलकित उपवन
सुगंध बिखेरे पवन इठलाए
शाखों ने फ़िर ओढ़ी चुनरी
झूम-झूम वे राग सुनाए
लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ---
कोंपल खिले फूल मुस्काये
हुआ नवजीवन दर्शन
पीली-पीली चादर ओढ़े
खेत सरसों के लहराये
लो ऋतुराज बसन्त फिर आये
हुआ श्रृंगार अब धरती का
भोर ने भी किरण बरसाई
स्वागत-स्वागत बसंत तुम्हारा
डाल- डाल पर पंछी गाए
लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ,
सजधज कर धरती पर छाये.
बहुत सुंदर कविता. आभार सहित.
ReplyDeleteआजकल अच्छी हिंदी पढ़ने को कम ही मिलती है.
धन्यवाद निशान्त
ReplyDeletelovely :)
ReplyDeleteआदरणीया माहेश्वरी कानेरी जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
बहुत सुंदर मनभावन रचना है 'ॠतुराज बसंत'
हर्षित धरती पुलकित उपवन
सुगंध बिखेरे पवन इठलाए
शाखों ने फ़िर ओढ़ी चुनरी
झूम-झूम वे राग सुनाए
लो ऋतुराज बसन्त फिर आए …
आपके यहां पहुंच कर सचमुच हार्दिक प्रसन्नता है …
अब आते रहना आवश्यक लग रहा है … ऐसी सुंदर रचनाओं के लिए
साथ ही… आपसे मेरे लिखे बासंती छंदों पर प्रतिक्रिया के लिए भी अनुरोध है । यह रहा लिंक -
*प्यारो न्यारो ये बसंत है !*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकल 23/05/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... ... तू हो गई है कितनी पराई ... ...
basant aaaye to samay beet gaya:)
ReplyDeletebehtareen!
बहुत ही बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति....