abhivainjana


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Tuesday, 5 April 2011

ऋतुराज बसन्त




लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ,

सजधज धरती पर छाये.

हर्षित धरती पुलकित उपवन

सुगंध बिखेरे पवन इठलाए

शाखों ने फ़िर ओढ़ी चुनरी

झूम-झूम वे राग सुनाए

लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ---

कोंपल खिले फूल मुस्काये

हुआ नवजीवन दर्शन

पीली-पीली चादर ओढ़े

खेत सरसों के लहराये

लो ऋतुराज बसन्त फिर आये

  हुआ श्रृंगार अब धरती का

भोर ने भी किरण बरसाई

स्वागत-स्वागत बसंत तुम्हारा

डाल- डाल पर पंछी गाए

लो ऋतुराज बसन्त फिर आये ,

सजधज कर धरती पर छाये.         

8 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता. आभार सहित.
    आजकल अच्छी हिंदी पढ़ने को कम ही मिलती है.

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  2. धन्यवाद निशान्त

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  3. आदरणीया माहेश्वरी कानेरी जी
    सादर अभिवादन !

    बहुत सुंदर मनभावन रचना है 'ॠतुराज बसंत'
    हर्षित धरती पुलकित उपवन
    सुगंध बिखेरे पवन इठलाए
    शाखों ने फ़िर ओढ़ी चुनरी
    झूम-झूम वे राग सुनाए

    लो ऋतुराज बसन्त फिर आए …

    आपके यहां पहुंच कर सचमुच हार्दिक प्रसन्नता है …

    अब आते रहना आवश्यक लग रहा है … ऐसी सुंदर रचनाओं के लिए

    साथ ही… आपसे मेरे लिखे बासंती छंदों पर प्रतिक्रिया के लिए भी अनुरोध है । यह रहा लिंक -

    *प्यारो न्यारो ये बसंत है !*


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    कल 23/05/2012 को आपके ब्‍लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... ... तू हो गई है कितनी पराई ... ...

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  5. बहुत ही बढ़िया आंटी!


    सादर

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  6. अति सुन्दर रचना..
    बेहतरीन प्रस्तुति....

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