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Thursday, 9 January 2014

सर्दी ने ढाया सितम



ठिठुरती काँपती उँगलियाँ 
 
तैयार नहीं छूने को कलम

कैसे लिखूँ कविता मैं

सर्दी ने ढाया सितम

शब्द मेरे ठिठुरे पड़े हैं

भाव सभी शुन्य हुए हैं

कंठ से स्वर निकलते नहीं

लगता सब जाम हुए हैं

धूप भी किसी भिखारिन सी

 थकी हारी आती है 

कभी कोहरे की चादर ओढे

गुमसुम सो जाती है

गरम चाय, नरम रजाई

अब यही सुखद सपने हैं

कैसे छोड़ूँ इनको अब मैं

लगते यही बस अपने है

घर से बाहर निकले कैसे

दाँत टनाटन बजते है

मौसम की मनमानी देखो

कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं


******************

महेश्वरी कनेरी

30 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष की मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।

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  2. ठंड के मौसम से सजी ठंडी ठंडी सी सुंदर भाव अभिव्यक्ति...

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  3. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार दीदी-

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  4. बहुत सुन्दर रचना दीदी ......

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कहीं ठंड आप से घुटना न टिकवा दे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    Replies
    1. आभार.. राजेन्द्र जी

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  6. गरम चाय, नरम रजाई
    अब यही सुखद सपने हैं
    कैसे छोड़ूँ इनको अब मैं
    लगते यही बस अपने है
    ..बहुत सही मौसम का तकाजा है..

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  7. सच मे काफी ठंड है ... बिलकुल सटीक विवरण दिया है आपने :)

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  8. सर्दी के मौसम का भी अपना अलग आनंद है :)
    सुन्दर रचना
    सादर!

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  9. सच कहा ठण्ड ने ढाया सितम है ! सुन्दर प्रस्तुति
    नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
    नई पोस्ट लघु कथा

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  10. बहुत सुन्दर रचना...
    :-)

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  11. ठिठुरते शब्द
    कलम की आग … लिख लिया न

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  12. आपके शब्द अहसास करवा रहे हैं ठंडक का .....

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  13. कल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  14. सच में दीदी देहरादून में इस बार गज़ब की ठण्ड हैं .सुन्दर रचना

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  15. सर्दी के सितम का बड़ा सटीक सजीव चित्र खींचा है माहेश्वरी जी ! वाकई ठण्ड ने हालत खराब कर दी है ! नर्म रजाई और गरम चाय का प्याला छोडने का मन ही नहीं होता ! बहुत सुंदर रचना !

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  16. सच में बहुत ठंड है जी

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  17. मौसम की मनमानी देखो
    कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं
    इस ठंड के भी अपने ही नये अंदाज हैं जो विस्‍मृत करते रहते हैं .... सच कहा आपने

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  18. सर्दी के मौसम का बहुत सुन्दर और जीवंत चित्रण...

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  19. अब यही सुखद सपने हैं
    कैसे छोड़ूँ इनको अब मैं
    लगते यही बस अपने है
    .............................बहुत सही मौसम

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  20. सर्दी का यथार्थ वर्णन। पर कलम तो आपने उठा ही ली, शायद इसीने दी गरमाहट।

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  21. मौसम चाहे कितना ही सितम ढाये हम कलम उठा ही लेते है !
    आजकल हमारे शहर में भी यही हाल है :)
    सर्दी का सुन्दर चित्रण किया है, आभार आपका !

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  22. सर्दी पर काँपती ठिठुरती गर्म गर्म कविता... बधाई.

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  23. बहुत सुंदर ....

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