ठिठुरती काँपती उँगलियाँ
तैयार नहीं छूने को कलम
कैसे लिखूँ कविता मैं
सर्दी ने ढाया सितम
शब्द मेरे ठिठुरे पड़े हैं
भाव सभी शुन्य हुए हैं
कंठ से स्वर निकलते नहीं
लगता सब जाम हुए हैं
धूप भी किसी भिखारिन सी
थकी हारी
आती है
कभी कोहरे की चादर ओढे
गुमसुम सो जाती है
गरम चाय, नरम रजाई
अब यही सुखद सपने हैं
कैसे छोड़ूँ इनको अब मैं
लगते यही बस अपने है
घर से बाहर निकले कैसे
दाँत टनाटन बजते है
मौसम की मनमानी देखो
कैसे षड़यंत्र ये रचते हैं
******************
महेश्वरी कनेरी
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (10.01.2014) को " चली लांघने सप्त सिन्धु मैं (चर्चा -1488)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,नव वर्ष की मंगलकामनाएँ,धन्यबाद।
ReplyDeleteaabhar aap ka...
Deleteठंड के मौसम से सजी ठंडी ठंडी सी सुंदर भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार दीदी-
बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : सांझी : मिथकीय परंपरा
बहुत सुन्दर रचना दीदी ......
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कहीं ठंड आप से घुटना न टिकवा दे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार.. राजेन्द्र जी
Deleteगरम चाय, नरम रजाई
ReplyDeleteअब यही सुखद सपने हैं
कैसे छोड़ूँ इनको अब मैं
लगते यही बस अपने है
..बहुत सही मौसम का तकाजा है..
सच मे काफी ठंड है ... बिलकुल सटीक विवरण दिया है आपने :)
ReplyDeleteसर्दी के मौसम का भी अपना अलग आनंद है :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना
सादर!
सच कहा ठण्ड ने ढाया सितम है ! सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
ठिठुरते शब्द
ReplyDeleteकलम की आग … लिख लिया न
आपके शब्द अहसास करवा रहे हैं ठंडक का .....
ReplyDeleteकल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
चन्यवाद यशवंत..
Deletebahut hi sundar rachana badhai
ReplyDeleteसच में दीदी देहरादून में इस बार गज़ब की ठण्ड हैं .सुन्दर रचना
ReplyDeleteसर्दी के सितम का बड़ा सटीक सजीव चित्र खींचा है माहेश्वरी जी ! वाकई ठण्ड ने हालत खराब कर दी है ! नर्म रजाई और गरम चाय का प्याला छोडने का मन ही नहीं होता ! बहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteसच में बहुत ठंड है जी
ReplyDeleteमौसम की मनमानी देखो
ReplyDeleteकैसे षड़यंत्र ये रचते हैं
इस ठंड के भी अपने ही नये अंदाज हैं जो विस्मृत करते रहते हैं .... सच कहा आपने
सर्दी के मौसम का बहुत सुन्दर और जीवंत चित्रण...
ReplyDeletebadiya
ReplyDeleteअब यही सुखद सपने हैं
ReplyDeleteकैसे छोड़ूँ इनको अब मैं
लगते यही बस अपने है
.............................बहुत सही मौसम
सर्दी का यथार्थ वर्णन। पर कलम तो आपने उठा ही ली, शायद इसीने दी गरमाहट।
ReplyDeleteमौसम चाहे कितना ही सितम ढाये हम कलम उठा ही लेते है !
ReplyDeleteआजकल हमारे शहर में भी यही हाल है :)
सर्दी का सुन्दर चित्रण किया है, आभार आपका !
सर्दी पर काँपती ठिठुरती गर्म गर्म कविता... बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....
ReplyDelete