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Tuesday, 21 January 2014

खोटा सिक्का





खोटा सिक्का

चले थे खुद को भुनवाने

दुनिया के इस बाजार में.

पर खोटा सिक्का मान

ठुकरा दिया ज़माने ने

सोचा ! मुझमें ही कमी थी

या, फिर वक्त का साथ था

समझ पाये ,और चुप रह गए

पर चैन आया

और चल पडे

दुनिया को जानने

देखा ! तो जाना ,

दुनिया कितनी अजीब है

झूठ,मक्कारी और खुदगर्ज़ी

के पलड़े में हर रोज

इंसान यहाँ तुल रहा

पलड़ा जितना भारी

इंसान उतना ही ऊँचा

किन्तु....

मेरे पास तुलने के लिए

कुछ था

इसलिए नकारा गया

खोटा सिक्का जान

ठुकराया गया

पर खुश हूँ मैं

दुनिया के इस झूठ

और मक्कार भरे

बाजार में

मुझे नहीं बिकना

मैं खोटा ही

ठीक हूँ ….



                                                             महेश्वरी कनेरी

16 comments:

  1. खोटेपन ने बाज़ारी खेल से तो बचाया..... बड़ी सीख लिए है रचना

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  2. वाह...बेहद सटीक....
    बहुत सुन्दर रचना..

    सादर
    अनु

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  3. बहुत सुंदर.... !
    प्रेरणात्मक कविता..!

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  4. कल 23/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  5. सटीक ... दुनिया ऐसी ही है .. जो मकार, चालबाज नहीं उसको खोता कह के ठुकराया जाता है ...

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  6. खोटे में खोटा तो अच्छा ही हुआ।

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  7. ईमानदारी की यही कीमत है आज
    सार्थक रचना, सादर !

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  8. सार्थक भाव लिए बहुत ही सुंदर रचना ....

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  9. सही कहा इस खोटी दुनिया में खोटा होना ही ठीक है |

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  10. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  11. -प्रभावशाली
    बहुत सुंदर---!!!!!

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  12. शुरू से ही सुनते आए हैं की वक़्त पड़ने पर खोटा सिक्का ही काम आता है

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  13. मैं खोटा ही ठीक हूँ ….बिलकुल..

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  14. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

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  15. सुन्दर और सटीक रचना...
    :-)

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