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Tuesday 8 October 2013

विदा कर दिया मैंने


विदा कर दिया मैंने

कल मैंने,

सजा कर, सँवार कर

पूरे रीति रिवाजों के संग

अपनी कवितासरस अनुभूतिको

लोकार्पित कर दिया….

ताकि बाहर की दुनिया को

वो जान सके, समझ सके

और अपनी पहचान बना सके

बड़े नाजों से पाला था 

नेक संस्कारों में भी ढाला था

और कब तक सहेजती मैं

एक दिन तो जाना ही था उसे

समाज के प्रति उठे मनोभाव को

समाज को ही समर्पित कर दिया

पर कभी सोचती हूँ ..

दुनिया की इस भीड़ में

कहीं खो जाए

इसी लिए हिम्मत देती रहती 

नाहक थपेड़ों से मत घबराना


निर्मल झरने की तरह

निरंतर बहती रहना

जितना तपोगी उतना ही निखरोगी

तुम्हें और सबल ,सरस बनना है

ताकि जन-जन के हदय में

अनवरत बह सको

यही शुभकामनाओं के साथ

विदा कर दिया मैंने

अपनी लाडलीसरस अनुभूतिको..


****************

महेश्वरी कनेरी

22 comments:

  1. आपकी सरस अनुभूति को बधाई और शुभकामनायें!

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  2. लोकार्पण की बहुत बहुत बधाई दी.....
    आपकी लाडली को बहुत स्नेह और सम्मान मिले ये कामना है......
    सादर
    अनु

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  3. लाडली “सरस अनुभूति” को हमारी ओर से बहुत बहुत शुभकामनायें ..
    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..

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  4. आपकी यह रचना कल बुधवार (09-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 141 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
    एक नजर मेरे अंगना में ...
    ''गुज़ारिश''
    सादर
    सरिता भाटिया

    ReplyDelete
  5. लोकार्पण की बहुत बहुत बधाई दीदी
    लाडली “सरस अनुभूति” को हमारी ओर से बहुत बहुत शुभकामनायें
    सादर

    ReplyDelete
  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (09-10-2013) होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी-चर्चा मंच 1393 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बहुत बहुत बधाई -
    और नवरात्रि की शुभकामनायें भी-
    आभार दीदी-

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  8. सुंदर भाव ....बहुत बहुत बधाई आपको

    ReplyDelete
  9. गुनगुनाहट लिए अप्रतिम रचना। सुन्दर मनभावन,जैसे सावन।
    विदा कर दिया मैंने


    विदा कर दिया मैंने

    कल मैंने,

    सजा कर, सँवार कर

    पूरे रीति रिवाजों के संग

    अपनी कविता “सरस अनुभूति” को

    लोकार्पित कर दिया….

    ताकि बाहर की दुनिया को

    वो जान सके, समझ सके

    और अपनी पहचान बना सके ।

    बड़े नाजों से पाला था

    नेक संस्कारों में भी ढाला था

    और कब तक सहेजती मैं

    एक दिन तो जाना ही था उसे

    समाज के प्रति उठे मनोभाव को

    समाज को ही समर्पित कर दिया

    पर कभी सोचती हूँ ..

    दुनिया की इस भीड़ में

    कहीं खो न जाए

    इसी लिए हिम्मत देती रहती

    “नाहक थपेड़ों से मत घबराना


    निर्मल झरने की तरह

    निरंतर बहती रहना

    जितना तपोगी उतना ही निखरोगी

    तुम्हें और सबल ,सरस बनना है

    ताकि जन-जन के हदय में

    अनवरत बह सको”

    यही शुभकामनाओं के साथ

    विदा कर दिया मैंने

    अपनी लाडली “सरस अनुभूति” को..


    ****************

    महेश्वरी कनेरी

    विदा कर दिया भावों को अनुभावों को सब जीवन के रागों को। बेहद सशक्त रचना

    ReplyDelete
  10. आपकी पुस्तक “सरस अनुभूति” के लोकार्पण के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाए ....!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  11. बहुत-ब‍हुत बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं
    सादर

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  12. आपको ढेरों बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  13. पहले तो बधाई स्वीकार करें । लोकार्पण पर भी इतनी बढ़िया कविता कह डाली आपने |

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  14. सरस अनुभूति के लोकार्पण पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें |
    आशा

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  15. बहुत बहुत बधाई...

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  16. मंगलकामनाओं के साथ ...बहुत बहुत बधाई

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  17. बहुत बहुत शुभकामनायें |

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  18. ढेरों शुभकामनायें और शत शत बधाइयाँ।

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  19. बहुत बहुत बधाईयां और हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  20. शुभकामनायें सरस अनुभूति को ...

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  21. बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं

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  22. सरस अनुभुति के लिए बहुत बहुत शुभकामना और बधाई !!
    सरस अनुभूति हमेशा दुनिया में जगमगते रहे

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