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Wednesday, 16 October 2013

पत्थर का शहर



तुम्हें याद है न..

कभी तुम्हारे अंदर एक गाँव बसा करता था

लहलहाते खेतों की ताज़गी लिए

भोला भाला,सीधा साधा सा गाँव

और उसी गाँव में मेरा भी घर हुआ करता था

मिट्टी से लिपा हुआ भीनी भीनी खुशबू लिए

सुखद अहसासों से भरा,चन्द सपने बटोरे

एक छोटा सा प्यारा घर

पर तुम ने ये क्या किया

प्यार के इस लहलहाते खेत को

पकने से पहले ही उजाड़ दिया

और वहाँ एक शहर बसा लिया

अब तो मेरा घर भी घर न रहा

पत्थर का मकान बन गया

मुट्ठी भर सपने और वो सुखद अहसास

उसी पत्थर के नीचे कही दब कर सो गए

और मैं बेघर हो ,भटक रही हूँ

तुम्हारे इस पत्थर के शहर में..


****************


महेश्वरी कनेरी

37 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .कंक्रीट के घने जंगलों में मिट्टी की भीनी खुशबू खो गई है .

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  2. आभार आप का राजीव जी..

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  3. गाँव से पत्थर के शहर तक ......हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति .....!!

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  5. गाँव उजाड़कर बढ़ते कंक्रीट के जंगल पर सुन्दर अभिव्यक्ति |
    latest post महिषासुर बध (भाग २ )

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  6. बहुत सटीक और भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर...

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  7. गगन चुम्बी अट्टालिकाओं और चप्पे चप्पे पर कंक्रीट के जंगल ,बहुत खूब

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  8. गाँव से पत्थर के शहर तक ......हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति दीदी
    सादर

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  9. सच बयां करती अभिव्यक्ति....

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  10. समय की तेज़ी ने संवेदनाएं खत्म कर दी हैं ... सभी कुछ पत्थर का हो गया है ...
    दिल को छूती है रचना ...

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  11. सच है आज गाँव को पहचानना मुश्किल हो गया है..हर कहीं शहर ने अपने पांव पसार लिये हैं..

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  12. नगर के कृत्रिम आकार

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  13. कल 18/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  14. अत्यंत ही भावपूर्ण . मर्म उभर आया है.

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  15. प्यार के इस लहलहाते खेत को

    पकने से पहले ही उजाड़ दिया

    और वहाँ एक शहर बसा लिया

    अब तो मेरा घर भी घर न रहा

    पत्थर का मकान बन गया

    सुन्दर भाव व्यंजना।

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  16. सुन्दर बिम्ब से सजी रचना |

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  17. सच! खुद को ही याद दिलाना पड़ता है कि हम मशीन नहीं हैं..

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  18. अत्यंत भावपूर्ण एवँ भीगी-भीगी सी कोमल रचना ! प्राकृतिक हरियाली से सुसज्जित मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू से गमकते गाँवों की जगह पथरीले शहरों ने ले ली है जो सचमुच बहुत ही कष्टप्रद है ! बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति !

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  19. bahuton ke dil ke dard ko roop de diya ......aapne ......

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  20. शहर लीलते जा रहे हैं गावों और कसबों को और साथ ही शहरों की मशीनी जिंदगी हावी हो रही है कोमल भावनाओं पर। सुंदर लगी ये प्रस्तुति।

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  21. सचमुच … पत्थर की दुनिया में सब पथरा गया है … मार्मिक रचना

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  22. प्यार के इस लहलहाते खेत को
    पकने से पहले ही उजाड़ दिया
    और वहाँ एक शहर बसा लिया------------

    गाँव का सच,भोगे हुए प्रेम का सच, जमीन का सच जहां खेती नहीं
    बाजार बन रहें हैं-----

    आदरणीया वर्तमान का मार्मिक सच लिखा है आपने
    उत्कृष्ट

    सादर

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  23. गांव से पत्थर के शहर तक की सफ़रकी खुबसूरत अभिव्यक्ति .....

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  24. सुन्दरता व सादगी से सजा आपका लेख हमें आकर्षित करता है अपने पुराने बीते की तरफ
    नयी पोस्ट = हिंदी टाइपिंग साफ्टवेयर डाउनलोड करें

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  25. sundar bhav se bhari rachna .....

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  26. गांवों में फैलता शहर
    वैसा ही जैसे शाम की खूबसूरती पर धीरे धीरे अँधेरा पर्दा दाल रहा हो

    सादर !

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  27. संवेदन शील मन कि भाषा अक्सर लोग कहाँ समझ पाते हैं ..
    मंगलकामनाएं !

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  28. वाह...उत्तम लेखन ...दीपावली की शुभकामनाएं.....

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  29. सुंदर अभिव्यक्ति !
    दीपावली की शुभकामनाएं !

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  30. बहुत सुन्दर.. आप को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  31. भावपूर्ण कोमल रचना ..........दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  32. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (11) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  33. बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
    शुभकामनाएं.

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  34. गाँवों के शहरीकरण का मर्मस्पर्शी चित्रण

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  35. आजकल के इस शहरीकरण युग में गावों पीछे ही छूटे जा रहे है

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