तुम्हें याद है न..
कभी तुम्हारे अंदर एक गाँव बसा करता
था
लहलहाते खेतों की ताज़गी लिए
भोला भाला,सीधा साधा सा गाँव
और उसी गाँव में मेरा भी घर हुआ करता
था
मिट्टी से लिपा हुआ भीनी भीनी खुशबू
लिए
सुखद अहसासों से भरा,चन्द सपने बटोरे
एक छोटा सा प्यारा घर
पर तुम ने ये क्या किया
प्यार के इस लहलहाते खेत को
पकने से पहले ही उजाड़ दिया
और वहाँ एक शहर बसा लिया
अब तो मेरा घर भी घर न रहा
पत्थर का मकान बन गया
मुट्ठी भर सपने और वो सुखद अहसास
उसी पत्थर के नीचे कही दब कर सो गए
और मैं बेघर हो ,भटक रही हूँ
तुम्हारे इस पत्थर के शहर में..
****************
महेश्वरी कनेरी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .कंक्रीट के घने जंगलों में मिट्टी की भीनी खुशबू खो गई है .
ReplyDeleteआभार आप का राजीव जी..
ReplyDeleteगाँव से पत्थर के शहर तक ......हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति .....!!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteगाँव उजाड़कर बढ़ते कंक्रीट के जंगल पर सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeletelatest post महिषासुर बध (भाग २ )
बहुत सटीक और भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteगगन चुम्बी अट्टालिकाओं और चप्पे चप्पे पर कंक्रीट के जंगल ,बहुत खूब
ReplyDeleteगाँव से पत्थर के शहर तक ......हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति दीदी
ReplyDeleteसादर
सच बयां करती अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसमय की तेज़ी ने संवेदनाएं खत्म कर दी हैं ... सभी कुछ पत्थर का हो गया है ...
ReplyDeleteदिल को छूती है रचना ...
सच है आज गाँव को पहचानना मुश्किल हो गया है..हर कहीं शहर ने अपने पांव पसार लिये हैं..
ReplyDeleteनगर के कृत्रिम आकार
ReplyDeleteकल 18/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
अत्यंत ही भावपूर्ण . मर्म उभर आया है.
ReplyDeleteप्यार के इस लहलहाते खेत को
ReplyDeleteपकने से पहले ही उजाड़ दिया
और वहाँ एक शहर बसा लिया
अब तो मेरा घर भी घर न रहा
पत्थर का मकान बन गया
सुन्दर भाव व्यंजना।
सुन्दर बिम्ब से सजी रचना |
ReplyDeleteसच! खुद को ही याद दिलाना पड़ता है कि हम मशीन नहीं हैं..
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण एवँ भीगी-भीगी सी कोमल रचना ! प्राकृतिक हरियाली से सुसज्जित मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू से गमकते गाँवों की जगह पथरीले शहरों ने ले ली है जो सचमुच बहुत ही कष्टप्रद है ! बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletebahuton ke dil ke dard ko roop de diya ......aapne ......
ReplyDeleteशहर लीलते जा रहे हैं गावों और कसबों को और साथ ही शहरों की मशीनी जिंदगी हावी हो रही है कोमल भावनाओं पर। सुंदर लगी ये प्रस्तुति।
ReplyDeleteसचमुच … पत्थर की दुनिया में सब पथरा गया है … मार्मिक रचना
ReplyDeleteप्यार के इस लहलहाते खेत को
ReplyDeleteपकने से पहले ही उजाड़ दिया
और वहाँ एक शहर बसा लिया------------
गाँव का सच,भोगे हुए प्रेम का सच, जमीन का सच जहां खेती नहीं
बाजार बन रहें हैं-----
आदरणीया वर्तमान का मार्मिक सच लिखा है आपने
उत्कृष्ट
सादर
गांव से पत्थर के शहर तक की सफ़रकी खुबसूरत अभिव्यक्ति .....
ReplyDeletebahut khoobsoorat.. :)
ReplyDeleteसुन्दरता व सादगी से सजा आपका लेख हमें आकर्षित करता है अपने पुराने बीते की तरफ
ReplyDeleteनयी पोस्ट = हिंदी टाइपिंग साफ्टवेयर डाउनलोड करें
sundar bhav se bhari rachna .....
ReplyDeleteगांवों में फैलता शहर
ReplyDeleteवैसा ही जैसे शाम की खूबसूरती पर धीरे धीरे अँधेरा पर्दा दाल रहा हो
सादर !
संवेदन शील मन कि भाषा अक्सर लोग कहाँ समझ पाते हैं ..
ReplyDeleteमंगलकामनाएं !
वाह...उत्तम लेखन ...दीपावली की शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनाएं !
बहुत सुन्दर.. आप को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteभावपूर्ण कोमल रचना ..........दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (11) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
ReplyDeleteशुभकामनाएं.
गाँवों के शहरीकरण का मर्मस्पर्शी चित्रण
ReplyDeleteखुबसूरत
ReplyDeleteआजकल के इस शहरीकरण युग में गावों पीछे ही छूटे जा रहे है
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