विदा कर दिया मैंने
कल मैंने,
सजा कर,
सँवार कर
पूरे रीति रिवाजों के
संग
अपनी कविता “सरस
अनुभूति” को
लोकार्पित
कर दिया….
ताकि बाहर की दुनिया
को
वो जान सके, समझ
सके
और अपनी पहचान बना
सके ।
बड़े नाजों से पाला
था
नेक संस्कारों में भी
ढाला था
और कब तक सहेजती
मैं
एक दिन तो जाना
ही था उसे
समाज के प्रति उठे
मनोभाव को
समाज को ही समर्पित कर
दिया
पर कभी सोचती हूँ ..
दुनिया की इस भीड़
में
कहीं खो न जाए
इसी लिए हिम्मत देती
रहती
“नाहक थपेड़ों
से मत घबराना
निर्मल झरने की तरह
निरंतर बहती रहना
जितना तपोगी उतना ही
निखरोगी
तुम्हें
और सबल ,सरस बनना है
ताकि जन-जन
के हदय में
अनवरत बह सको”
यही शुभकामनाओं के साथ
विदा कर दिया मैंने
अपनी लाडली “सरस
अनुभूति” को..
****************
महेश्वरी कनेरी
आपकी सरस अनुभूति को बधाई और शुभकामनायें!
ReplyDeleteलोकार्पण की बहुत बहुत बधाई दी.....
ReplyDeleteआपकी लाडली को बहुत स्नेह और सम्मान मिले ये कामना है......
सादर
अनु
लाडली “सरस अनुभूति” को हमारी ओर से बहुत बहुत शुभकामनायें ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..
आपकी यह रचना कल बुधवार (09-10-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 141 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteएक नजर मेरे अंगना में ...
''गुज़ारिश''
सादर
सरिता भाटिया
लोकार्पण की बहुत बहुत बधाई दीदी
ReplyDeleteलाडली “सरस अनुभूति” को हमारी ओर से बहुत बहुत शुभकामनायें
सादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (09-10-2013) होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी-चर्चा मंच 1393 में "मयंक का कोना" पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत बधाई -
ReplyDeleteऔर नवरात्रि की शुभकामनायें भी-
आभार दीदी-
सुंदर भाव ....बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteगुनगुनाहट लिए अप्रतिम रचना। सुन्दर मनभावन,जैसे सावन।
ReplyDeleteविदा कर दिया मैंने
विदा कर दिया मैंने
कल मैंने,
सजा कर, सँवार कर
पूरे रीति रिवाजों के संग
अपनी कविता “सरस अनुभूति” को
लोकार्पित कर दिया….
ताकि बाहर की दुनिया को
वो जान सके, समझ सके
और अपनी पहचान बना सके ।
बड़े नाजों से पाला था
नेक संस्कारों में भी ढाला था
और कब तक सहेजती मैं
एक दिन तो जाना ही था उसे
समाज के प्रति उठे मनोभाव को
समाज को ही समर्पित कर दिया
पर कभी सोचती हूँ ..
दुनिया की इस भीड़ में
कहीं खो न जाए
इसी लिए हिम्मत देती रहती
“नाहक थपेड़ों से मत घबराना
निर्मल झरने की तरह
निरंतर बहती रहना
जितना तपोगी उतना ही निखरोगी
तुम्हें और सबल ,सरस बनना है
ताकि जन-जन के हदय में
अनवरत बह सको”
यही शुभकामनाओं के साथ
विदा कर दिया मैंने
अपनी लाडली “सरस अनुभूति” को..
****************
महेश्वरी कनेरी
विदा कर दिया भावों को अनुभावों को सब जीवन के रागों को। बेहद सशक्त रचना
आपकी पुस्तक “सरस अनुभूति” के लोकार्पण के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाए ....!
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत-बहुत बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं
ReplyDeleteसादर
आपको ढेरों बधाई ओर शुभकामनायें ...
ReplyDeleteपहले तो बधाई स्वीकार करें । लोकार्पण पर भी इतनी बढ़िया कविता कह डाली आपने |
ReplyDeleteसरस अनुभूति के लोकार्पण पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें |
ReplyDeleteआशा
बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमंगलकामनाओं के साथ ...बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें |
ReplyDeleteढेरों शुभकामनायें और शत शत बधाइयाँ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाईयां और हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
शुभकामनायें सरस अनुभूति को ...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteसरस अनुभुति के लिए बहुत बहुत शुभकामना और बधाई !!
ReplyDeleteसरस अनुभूति हमेशा दुनिया में जगमगते रहे