ढूँढ़ रही मैं,
बीते वक्त के, उस कल को
छोड़ आई ,जहाँ पर
बचपन के उस पल को
हर दिन मैं बढ़ती जाती
उम्र की सीढ़ी चढ़ती जाती
और छूट रहा था बचपन पीछे
बचपन-बचपन कह पुकारती
पर पास कभी न वो आती
बस दूर खड़ी-खड़ी मुस्काती
जब मैं नन्हें हाथों से अपने
माँ की अँगुली थामे रहती
तब अकसर सोचा करती थी..
कब जल्दी बड़ी होजाऊँ
पर आज..
बडी होकर भी
मैं
वापस बचपन ढूँढ़ा करती हूँ
उम्र की ढलती इस संध्या में
यादों का दीया जला कर
मैं पगली ..
सुबह का अहसास संजोए रखती
हूँ
***********
महेश्वरी कनेरी
सच है बचपन फिर नहीं मिलता .... आशाएं यूँ ही बनी रहें ....शुभकामनायें आपको
ReplyDeleteबार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी ...अविस्मरणीय रहती हैं स्मृतियाँ बचपन की ....आज के दिन की अनेक शुभकामनायें आपको .....!!
ReplyDeleteसटीक शब्दों से मन के भाव ढाले हैं इस प्रस्तुति में -
ReplyDeleteआभार दीदी-
यादों का दिया जलाकर.... मैं पगली.... सुबह का अहसास संजोये रखती हूँ .... बचपन के कोमल भावों को बहुत ही सुंदर अहसास के साथ पिरोये हैं ....शुभकामनायें .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव......
ReplyDeleteआस का दीप जलता रहे...रोशन हो जीवन |
जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं......
सादर
अनु
बचपन कियाद दिलाती सुन्दर रचना । तस्वीर भी बहुत अच्छी है |
ReplyDeleteदिल के किसी कोने में वह आज भी जीवित है...जन्मदिन की शुभकामनायें !
ReplyDeleteसच बचपन में हमेशा बड़े होने की जल्दी रहती है और जब बड़े हो जाते हैं तो मन हर पल बचपन में लौटजाने को मचलता है। सुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबचपन की यादें ताज़ा करती भावपूर्ण रचना ... जनम दिन मुबारक ...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
जन्मदिन मुबारक हो। हम आपके सुंदर,स्वस्थ,सुखद,समृद्ध उज्ज्वल भविष्य एवं दीर्घायुष्य की मंगल कामना करते हैं.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आंटी।
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई दीदी
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
सादर
आदरणीया, जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं -----
ReplyDeleteबचपन की स्मृतियों को संजोती प्रभावशाली सुंदर रचना
सादर
bahut sundar ..........jamdin ki hardik shubhkamnaye................
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने हर व्यक्ति अपना बचपन तलाशना चाहता है
ReplyDeleteसच बचपन के दिन बच्चों के साथ बहुत याद आते हैं ...आजकल के और उस समय के बच्चों में बहुत अंतर है ..फिर भी बचपन सा जीना बहुत अच्छा लगता है ...लेकिन हो नहीं पाता यह सब तो मन में कहीं अफ़सोस के भाव देर सवेर चेहरे पर आ ही जाते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
पर आज..
ReplyDeleteबडी होकर भी मैं
वापस बचपन ढूँढ़ा करती हूँ.....
बहुत खूबसूरत और सार्थक रचना
jiwan ke adbhut kshano ki jiwant kahani kahati
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ।।
ReplyDeleteनई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
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बडी होकर भी मैं
ReplyDeleteवापस बचपन ढूँढ़ा करती हूँ
उम्र की ढलती इस संध्या में
यादों का दीया जला कर
मैं पगली ..
सुबह का अहसास संजोए रखती हूँ
........ बहुत ही बढिया ... जन्मदिन की अनंत शुभकामनाएं
सादर
ReplyDeleteये एहसास यूँही संजोय रखें और हम सभी पर आपका स्नेहाशीष चिरंतर बना रहे. आमीन।
सादर
मधुरेश
यादें .....एक अटूट हिस्सा जीवन का ...हमारी दोस्त ...हमारी हमदर्द
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteBahut hi sahi abivayakti....jab hum chotey hotey ahin to bass jaldi hee badey hona chahtey hain
ReplyDeleteशुभकामनाएं...शुभकामनाएं....शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसच में बचपन को हम कहाँ भूल पाते हैं ....बहुत प्रभावी भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteबडी होकर भी मैं
ReplyDeleteवापस बचपन ढूँढ़ा करती हूँ
उम्र की ढलती इस संध्या में
यादों का दीया जला कर
मैं पगली ..
सुबह का अहसास संजोए रखती हूँ
sahi kaha aesa hi hota hai kya pata kyu shayad jo chhut jata hai ham usko ho dhundhte hain
rachana
यादों के दीये की रोशनी में ज़िंदगी सुन्दर प्रतीत होती है. सुन्दर रचना...
ReplyDeleteवे यादें ही काफी हैं ..
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