abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Monday, 9 December 2013

संस्मरण ....आमा ….


 बचपन में मैंने अपने दादा दादी और नाना नानी को तो नहीं देखा था ,पर हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग महिला जो अपने परिवार के साथ रहा करती थी उनका अकसर हमारे घर आना जाना हुआ करता था ।हम उन्हें आमा (नानी)कहा करते थे
   वे जब भी हमारे घर आती थी,माँ उन्हें बड़े प्यार से बिठा कर चाय नाश्ता दिया करती थी वे चाय नाश्ते के चुस्कियो के साथ-साथ अपनी हर छोटी-छोटी बातें ,हर दर्द हर दुख सुख माँ के साथ बाँटा करती थी। माँ भी उनकी हर बात बहुत ध्यान से सुनती और साथ ही उन्हें हिम्मत और तसल्ली भी देती रहती ।धीरे धीरे उनका हमारे घर पर आना जाना और अधिक होने लगा जिस दिन वो नहीं आती माँ को चिन्ता सी होजाती कहीं वे बीमार तो नहीं पड़ गई ? माँ की उनके लिए इतनी अधिक चिन्ता हम भाई बहनों को अच्छी नहीं लगती थी। हम सोचा करते थे उनका अपना भरा पूरा परिवार तो है बेटे बहू नाती पोते ,फिर माँ उनकी इतनी फिक्र क्यों किया करती है?
     समय बीतता रहा.उनका आना जाना उनकी गप शप और चाय नाश्ता यूँ ही चलता रहा ।जाड़ो के दिन शुरू होगए थे इधर कुछ दिनों से आमा भी हमारे घर नहीं पाई थी एक दिन माँ अचानक परेशान होकर कहने लगी तुम्हें पता है आमा बहुत बीमार है ..मैं उनसे मिलकर आरही हूँ कुछ दिनो से उन्होने कुछ भी नही खाया है ।मुझे देख कर कहने लगी मुझे तेरे हाथों की चाय पीनी है , चलो हटो-हटो मुझे उनके लिए चाय बनानी है माँ ने उनके लिए अदरक वाली चाय बनाई और सूजी का हल्वा जो उन्हें बहुत पसंद था  बड़े प्यार से सब पैक कर वहाँ लेगई और हम देखते ही रहे दूसरे दिन की सुबह उनके यहाँ कुछ शोर सा सुनाई दिया,माँ और मैं दौड़ कर वहाँ पहुँचे ,देखा आमा बेहोशी की हालत में पड़ी थी ,और घर वाले इर्द गिर्द हाथ बाँधे खड़े थे माँ ने उनके ठंड़े सूखे हुए हाथ को छूआ  माँ का स्पर्श पा कर मानो उनमें नई चेतना सी जाग गई हो उन्होंने अपनी पथराई हुई आँखे धीरे से खोली मानो कुछ कहना चाहती हो..मगर कह पाई बस आँखो से दो बूँद आँसू छलक पड़े और शायद ये आँसू बहुत कुछ कह भी गए  बस फिर हमेशा के लिए उन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली और शान्त हो गई हमेशा के लिए न कोई गिला न कोई शिकायत ..हमेशा के लिए ये सारे दुख दर्द यही छोड़कर कहीं दूर चली गई..
    उस वक्त हम उनकी बातें समझ नहीं पाते थे पर आज लगता है वो अपने भरे पूरे परिवार के बीच होते हुए भी खुद को कितनी अकेली महसूस करती होगी चाय नाश्ता तो सिर्फ एक बहाना था, वो तो प्यार  और अपने पन की भूखी थी शायद इसी लिए वो हमारे घर आया करती थी
                 ************
महेश्वरी कनेरी

21 comments:

  1. ये त्रासदी है और वृद्ध माँ का अपमान भी

    ReplyDelete
  2. चाय नाश्ता के बहाने स्नेह मिलता रहा, वही स्नेह अब अनुपस्थित है।

    ReplyDelete
  3. अफसोस कि ऐसे कई उदाहरण अब भी हमारे आस-पास मौजूद हैं।
    मर्मस्पर्शी संस्मरण ।

    सादर

    ReplyDelete
  4. वृद्धों को प्यार के आलावा और कुछ नही चाहिए...
    मर्मस्पर्शी घटना

    ReplyDelete
  5. बहुत कुछ ऐसा ही है
    किसी के लिये अच्छी यादें
    किसी के लिये बुरी !

    ReplyDelete
  6. मन को भिगो गया ये संस्मरण .. बड़े बुजुर्ग बस दो बातों के भूखे होते हैं .. कुछ प्यार के भूखे होते हैं बस ...

    ReplyDelete
  7. उन्हें प्यार की भूख थी पेट की नहीं ......मर्मस्पर्शी

    ReplyDelete
  8. मन भीगा गई यह रचना ....बहुत ही मर्मस्पर्शी संस्मरण ......

    ReplyDelete
  9. आपकी माँ को शत शत नमन
    किसी बुजुर्ग को दुसरे के घर पेट की भूख खिंच कर नहीं ले जाती दीदी
    बहुत साल पहले मेरे पडोस में भी एक ऐसी महिला रहती थीं
    इसलिए समझ सकती हूँ ........

    ReplyDelete
  10. आमा जैसे लोग हमें भी अपने आसपास मिल जायेंगे, काश हम भी माँ जैसी ममता लेकर उनके खालीपन को भर सकें

    ReplyDelete
  11. मन भर आता है ऐसे वाकये सुन कर......
    काश कि सबके मन अपने बड़ों के लिए स्नेह और आदर से भरें रहें
    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  12. आज के यथार्थ को चित्रित करती बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  13. सच सभी प्यार और अपनापन चाहते हैं लेकिन सबको यह नसीब हो सब किस्मत की बात है ..
    बहुत बढ़िया मर्मस्पर्शी संस्मरण ..

    ReplyDelete
  14. मार्मिक भावनाएं .....

    ReplyDelete
  15. मार्मिक व भावुक संस्मरण...

    ReplyDelete
  16. ये कई बरसों पुरानी बात है मगर आज जेन कितनी और आमा इसी अपनेपन को तरस रही हैं ...तरक्की का एक पहलू ये भी है

    ReplyDelete
  17. इसी दुनिया में हर तरह के लोग हैं. कोई अपनों को खो देता है तो कहीं गैरों से अपनापन पाता है. मार्मिक संस्मरण.

    ReplyDelete