रिश्तों
की ताप
बर्फ सी ठंडी हथेली
में, सूरज
का ताप चाहिए
फिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए
।
बाँध सर पे कफन, कुछ करने की
चाह चाहिए
मर कर भी मिट
न सके, ऐसे
बेपरवाह चाहिए।
पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए
चीख कर दर्द बोल
उठे,अहसासों की
ऐसी थाप चाहिए
मन में उमड़ते भावों
को,शब्दों
का विस्तार चाहिए
शब्द भाव बन छलक
उठे,ऐसे
शब्दों का सार
चाहिए
चीर कर छाती चट्टानों की,नदी की सी
प्रवाह चाहिए
अंजाम जो भी हो
बस, बढ़ते
रहने की चाह
चाहिए ।
*********
महेश्वरी कनेरी
बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteपथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए
चीख कर दर्द बोल उठे,अहसासों की ऐसी थाप चाहिए
बेहतरीन रचना...
सादर
अनु
bahut hee sundar abhivyakti:)
ReplyDeleteलम्बे अंतराल पर टूटी चुप्पी बहुत सुंदर तरीके से :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ................हमेशा सकारात्मक सोंच ही हमारी ताकत बनती है ............
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार
Deleteफिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए ।
ReplyDelete***
सुन्दर!
गहन अभिव्यक्ति.... सच कहती पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (28-12-13) को "जिन पे असर नहीं होता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1475 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आप का शास्त्री जी..
Deleteपथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए
ReplyDeleteसंवेदन शून्य होते जा रहे हैं हम।
माशाल्लाह … सुभानाल्लाह ....
ReplyDeleteमदमस्त हो गई मैं तो
२०१३ की बेहतरीन रचनाओं में से एक
चीर कर छाती चट्टानों की,नदी की सी प्रवाह चाहिए
ReplyDeleteअंजाम जो भी हो बस, बढ़ते रहने की चाह चाहिए ।
माहेश्वरी जी, जोश भरती हुई सुंदर रचना
सम्भवतः नदी का सा प्रवाह होना चाहिए, इसी तरह अहसासों का ताप...
बर्फ सी ठंडी हथेली में, सूरज का ताप चाहिए
ReplyDeleteफिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए ।
शुरू से आखिर तक हर पंक्ति में जोश है जज्वात है ...लाजवाब
नई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !
सकारात्मक सोच लिए बहुत ही बेहतरीन गजल ...
ReplyDelete:-)
सिलसिलेवार जीने के लिए फिर वही पुरानी आँच चाहिए
ReplyDeleteधन्यवाद यशवन्त..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव,,,,,,,,,,
ReplyDeleteआपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (27 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा
बाँध सर पे कफन, कुछ करने की चाह चाहिए
ReplyDeleteमर कर भी मिट न सके, ऐसे बेपरवाह चाहिए।
वाह बहुत खूब सुन्दर रचना ..
जीवन जीने के लिए शायद यही भाव चाहिए ...बेहतरीन भाव संयोजन।
ReplyDeleteपथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए
ReplyDeleteचीख कर दर्द बोल उठे,अहसासों की ऐसी थाप चाहिए-------
bahut khub vartmaan ka sach
बहुत गहन और सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteमन के भावों का विस्तार कविता की अभिव्यक्ति में दिख रहा है.
ReplyDeleteअच्छी लगी यह रचना .
बहुत बढ़िया भावपूर्ण प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है
बहुत ही सुंदर.... बेहतरीन रचना ...
ReplyDeleteनए साल के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ......