abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Friday 27 December 2013

रिश्तों की ताप


                रिश्तों की ताप

बर्फ सी ठंडी हथेली में, सूरज का ताप चाहिए

फिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए


बाँध सर पे कफन, कुछ करने की चाह चाहिए

मर कर भी मिट सके, ऐसे बेपरवाह चाहिए।


पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए

चीख कर दर्द बोल उठे,अहसासों की ऐसी थाप चाहिए


मन में उमड़ते भावों को,शब्दों का विस्तार चाहिए

शब्द भाव बन छलक उठे,ऐसे शब्दों का सार चाहिए


चीर कर छाती चट्टानों की,नदी की सी प्रवाह चाहिए

अंजाम जो भी हो बस, बढ़ते रहने की चाह चाहिए


      *********

       महेश्वरी कनेरी

27 comments:

  1. बहुत सुन्दर......
    पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए

    चीख कर दर्द बोल उठे,अहसासों की ऐसी थाप चाहिए
    बेहतरीन रचना...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  2. लम्बे अंतराल पर टूटी चुप्पी बहुत सुंदर तरीके से :)

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्दर रचना ................हमेशा सकारात्मक सोंच ही हमारी ताकत बनती है ............

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    ReplyDelete
  5. फिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए ।
    ***
    सुन्दर!

    ReplyDelete
  6. गहन अभिव्यक्ति.... सच कहती पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (28-12-13) को "जिन पे असर नहीं होता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1475 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आप का शास्त्री जी..

      Delete
  8. पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए
    संवेदन शून्य होते जा रहे हैं हम।

    ReplyDelete
  9. माशाल्लाह … सुभानाल्लाह ....
    मदमस्त हो गई मैं तो
    २०१३ की बेहतरीन रचनाओं में से एक

    ReplyDelete
  10. चीर कर छाती चट्टानों की,नदी की सी प्रवाह चाहिए

    अंजाम जो भी हो बस, बढ़ते रहने की चाह चाहिए ।
    माहेश्वरी जी, जोश भरती हुई सुंदर रचना
    सम्भवतः नदी का सा प्रवाह होना चाहिए, इसी तरह अहसासों का ताप...

    ReplyDelete
  11. बर्फ सी ठंडी हथेली में, सूरज का ताप चाहिए

    फिर बँध जाए मुट्ठी, ऐसे जज्बात चाहिए ।
    शुरू से आखिर तक हर पंक्ति में जोश है जज्वात है ...लाजवाब
    नई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
    नई पोस्ट ईशु का जन्म !

    ReplyDelete
  12. सकारात्मक सोच लिए बहुत ही बेहतरीन गजल ...
    :-)

    ReplyDelete
  13. सिलसिलेवार जीने के लिए फिर वही पुरानी आँच चाहिए

    ReplyDelete
  14. धन्यवाद यशवन्त..

    ReplyDelete
  15. बहुत ही सुंदर भाव,,,,,,,,,,

    ReplyDelete
  16. आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (27 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

    ReplyDelete
  17. बाँध सर पे कफन, कुछ करने की चाह चाहिए

    मर कर भी मिट न सके, ऐसे बेपरवाह चाहिए।
    वाह बहुत खूब सुन्दर रचना ..

    ReplyDelete
  18. जीवन जीने के लिए शायद यही भाव चाहिए ...बेहतरीन भाव संयोजन।

    ReplyDelete
  19. पथरा गई संवेदनाएं जहाँ , रिश्तों की ताप चाहिए

    चीख कर दर्द बोल उठे,अहसासों की ऐसी थाप चाहिए-------

    bahut khub vartmaan ka sach

    ReplyDelete
  20. बहुत गहन और सुन्दर |

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर....

    ReplyDelete
  22. मन के भावों का विस्तार कविता की अभिव्यक्ति में दिख रहा है.
    अच्छी लगी यह रचना .

    ReplyDelete
  23. बहुत बढ़िया भावपूर्ण प्रस्तुति...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है

    ReplyDelete
  24. बहुत ही सुंदर.... बेहतरीन रचना ...
    नए साल के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ ......

    ReplyDelete