फिर छू गया दर्द कोई
हवा ये कैसी चली
यादों ने ली फिर अंगड़ाई
आँख मेरी भर आई
हवा ये कैसी चली……
सब्र का हर वो पल मेरा
कतरा-कतरा बन गिरता रहा
होठ हँसते रहे , आँख रोती रही
हवा ये कैसी चली….
हालात के लपटों में
झुलसते रहें अरमान सारे
जज्बात चिथड़े बन उड़े
जिन्दगी सिसकने लगी
हवा ये कैसी चली….
खामोशी ने होठ सी लिए
उदासी कहर बरसाने लगी
बेबस जिन्दगी माँगती रही
मुझसे मुस्काने का वादा
दर्द लिए मैं मुस्काती रही
हवा ये कैसी चली………
****************
महेश्वरी कनेरी
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया
वाह , अति सुंदर
ReplyDeleteचलती हैं ऐसी हवाएं..और भिगो जाती हैं अंतस...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
सादर
अनु
ऐसी हवाओं से बचकर रहना चाहिए..उसकी याद का स्वेटर पहनकर घर से निकलना चाहिए..
ReplyDeleteआजकल ऐसा ही दौर चल रहा है, बहुत ही गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हवाएँ चलती ही रहती हैं,यादें कभी करवटें लेती हैं-कभी अंगड़ाई तो कभी जकड़ लेती हैं शरीर को
ReplyDeleteअब हवा का रुख पलटना होगा .... मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteलाजवाब |
ReplyDeletebahut sundar bhavabhivyakti .krishn janam ashtmi kee hardik shubhkamanyen .
ReplyDeleteबेबस जिंदगी मांगती रही
ReplyDeleteमुझसे मुस्काने का वादा....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
हवा जैसी भी चली
ReplyDeleteठहरेगी नहीं
ठहरने की फितरत जो नहीं
बस थोड़े समय का इंतजार दीदी
फिर दूसरी हवा जरूर चलेगी
सादर प्रणाम
और
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteजिंदगी का दर्द झलकता है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आंटी।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteमन के भावो को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,
ReplyDeleteRECENT POST : पाँच( दोहे )
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteसुंदर !
आज हवा स्मृति ले आयी..सशक्त अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteधन्यवाद आप का हर्षवर्धन...
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना...श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना !!!
ReplyDeleteछूती है दिल को ये रचना ...
ReplyDeleteबेबस जिन्दगी माँगती रही
ReplyDeleteमुझसे मुस्काने का वादा
दर्द लिए मैं मुस्काती रही...
अक्सर गुज़ारना पड़ता है इस दुःख से ....सुन्दर रचना
शब्दों का कमाल का इस्तेमाल किया है..सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteखामोशी ने होठ सी लिए
ReplyDeleteउदासी कहर बरसाने लगी
बेबस जिन्दगी माँगती रही
मुझसे मुस्काने का वादा
दर्द लिए मैं मुस्काती रही
हवा ये कैसी चली………
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
माना के यादें करवटें बदलती ही रहती है लेकिन यह यादें चाहे जैसी भी हो इनके बिना भी जिया नहीं जा सकता क्यूंकि ज़िंदगी का दूसरा नाम ही बदलाव है कभी खुशी कभी ग़म जीना इसी का नाम है :)
ReplyDeleteहवा के रुख के अनुसार अपनी नाव में पाल लगाना हैं |सुंदर रचना |
ReplyDelete********नई पोस्ट-
“जिम्मेदारियाँ..................... हैं ! तेरी मेहरबानियाँ....."
आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 04.09.2013 को http://nirjhar-times.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 06.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ,हवा फिर बदलेगी
ReplyDeleteLatest post हे निराकार!
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bebasi ki intha tak........
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