आखिरी कगार पर खड़ी
जिन्दगी कहती है मुझसे
"सब कुछ
तो सीख लिया तुमनें,पर
जीना न सीख पाई अभी "
माना की, जीना भी
एक कला है
पर हर कला में हर कोई पारंगत तो नहीं होता ..?
यही सोच-सोच , खुद को
समझा लेती थी मैं
कई बार खुद को तराशने की भी कोशिश की थी मैंने
पर ,हर बार वक्त के औज़ार
मुझे जंक में डूबे
हुए मिले
और कई बार तो उनकी धार
इतनी तेज और चमकदार होती
कि डर कर दुबक जाती थी मैं
इसी लिए कभी खुद
को तराश न पाई मैं
और नहीं आया जीना मुझे
तिल -तिल कर मरती
रही मैं
सिर्फ जीने के लिए ......
हां सिर्फ जीने के लिए.....मरती रही मैं ...मरती रही मैं
**********************
महेश्वरी कनेरी
bhavpoorn abhivyakti..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2013) के "मेरी विवशता" (चर्चा मंच-1240) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
और कई बार तो उनकी धार इतनी तेज और चमकदार होती
ReplyDeleteकि डर कर दुबक जाती थी मैं
इसी लिए कभी खुद को तराश न पाई मैं
और नहीं आया जीना मुझे
तिल -तिल कर मरती रही मैं
सिर्फ जीने के लिए ......
हां सिर्फ जीने के लिए.....मरती रही मैं ...मरती रही मैं
सटीक अभिव्यक्ति !!
जीवन के अंतिम पड़ाव के दर्द को लिए हुए लेखनी
ReplyDeletebhaavpoorn
ReplyDeleteअपने अन्दर झांकने पर यही प्रश्न आता है कि क्यों नहीं सीखा ?
ReplyDeleteमन के भावों को व्यक्त करती सुन्दर रचना..
ReplyDeleteहां सिर्फ जीने के लिए.....मरती रही मैं ...मरती रही मैं
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ...
सादर
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
तुषार राज रस्तोगी has left a new comment on post "नहीं आया जीना मुझे ...":
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट आज के (०९ मई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - ख़्वाब पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
अरुणा has left a new comment on your post "नहीं आया जीना मुझे ...":
ReplyDeleteजीना नहीं सीखा अंतिम पड़ाव तक .........बेहद सुन्दर
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 12/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
जब जीवन भार सम्हालना सीख जायेगी, चलना भी आ जायेगा।
ReplyDeleteवैसे तो आज के चलन देख के लगता है अगर इसी को जीना कहते हैं तो अगर नहीं सीखे तो अच्छा ही है ... जितना आसानी से नासमजी से जीवन कटे उतना ही अच्छा ...
ReplyDeletejisne marna seekh liya jeene ka adhikar usi ko hai ...bahut badhiya ....
ReplyDeleteजीने के लिए मारती रही ... बहुत भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteनहीं आया जीना मुझे .....बहुत ही भाव-प्रधान सोचने को मजबूर करती रचना
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर रचना !
ReplyDeleteआखिरी कगार पर खड़ी जिन्दगी कहती है मुझसे
ReplyDelete"सब कुछ तो सीख लिया तुमनें,पर
जीना न सीख पाई अभी "
आखिरी कगार पर खड़ी जिन्दगी कहती है मुझसे
ReplyDelete"सब कुछ तो सीख लिया तुमनें,पर
जीना न सीख पाई अभी "-----
भावपूर्ण सुंदर रचना
सादर
आग्रह है पढ़ें "अम्मा" मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत कम लोग होते हैं जो जीवन जीने की कला में पारंगत होते हैं...बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना।
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