माँ का आंचल
आज माँ का आंचल
डरा सा सहमा क्यों है ?
देकर जन्म बेटी को
पछताया
सा क्यों है ?
प्यार दिया, दुलार
दिया
दी ममता की छांव सघन
पर देन सके बेटी को
सुरक्षित एक आंगन
एक अनजाना सा डर
हर पल सांस अटकती है
जब भी
बेटी घर से
बाहर निकलती है
बेखौफ से घूम रहे हैं
ये
दरिन्दे कौन हैं ?
अस्मिता लुट रही
बेटी की
क्यों कानून यूं मौन हैं ?
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महेश्वरी कनेरी
आज की बेटी सुरक्षा मांगती है,प्यार और दुलारा मांगती है ...तभी ये डर दूर होगा
ReplyDeleteमाँ का आंचल
ReplyDeleteआज माँ का आंचल
डरा सा सहमा क्यों है ?
देकर जन्म बेटी को
पछताया सा क्यों है ?
मार्मिक अभिव्यक्ति....
सादर
बहुत मार्मिक प्रस्तुति...यही आशा है कि हालात बदलें...
ReplyDeleteअस्मिता लुट रही बेटी की
ReplyDeleteक्यों कानून यूं मौन हैं ?
सार्थक प्रश्न .......चिंतनीय हालात हैं ...क्या कहा जाये ...????
It's really very unfortunate to see the condition of women in our society.
ReplyDeleteदुखद परिस्थितियां हैं ..... सटीक संवेदनशील चित्रण
ReplyDeleteमाँ का हृदय तो बच्चों के हर संभावित कष्ट में धड़क जाता है।
ReplyDeleteहर माँ आज चिंतित है कब हमारी बेटियां सुरक्षित और स्वतंत्र हो पाएंगी .......बहुत सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteबहुत उम्दा संवेदनशील सटीक प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
ये बड़ा सवाल है...
ReplyDeleteऔर सब अनुत्तरित हैं...
हृदयस्पर्शी रचना
सादर
अनु
माँ से ऊपर दुनिया में कोई नहीं और माँ के आँचल की छाँव से आराम तलब जगह और कहीं नहीं |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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प्यार दिया, दुलार दिया
ReplyDeleteदी ममता की छांव सघन
पर देन सके बेटी को
सुरक्षित एक आंगन --------
आँगन तो सुरक्षित है पर दरिंदों की नजर लगी है
वर्तमान की गहन अनुभूति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
बहुत सुंदर संवेदनशील... प्रस्तुति
ReplyDeleteगहन सम्वेदानाओं से भरी रचना |
ReplyDeleteबढ़िया है |
आशा
!!
ReplyDeleteसामयिक परिवेश को रेखांकित करती सशक्त रचना....
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
Sach kaha kahan de pa rahe hain hum beti ko surakshit angan.
ReplyDeleteबेखौफ से घूम रहे हैं
ReplyDeleteये दरिन्दे कौन हैं ?
अस्मिता लुट रही बेटी की
क्यों कानून यूं मौन हैं ?
पता नहीं यह भय कब दूर होगा. सामयिक प्रस्तुति.
वर्तमान का प्रतिबिंब कविता में है। अंत में जाकर 'मौन' पर आकर कविता ठहरती और सबके सामने एक जलता सवाल छोडती है।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 29/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
धन्यवाद!यशवंत..
Deleteबस एक दर्द..दर्द..दर्द..
ReplyDeleteएक अनजाना सा डर
ReplyDeleteहर पल सांस अटकती है
जब भी बेटी घर से
बाहर निकलती है ,....
वर्तमान हालातों के मद्देनजर बहुत सटीक रचना ।
h दिगम्बर नासवा has left a new comment on my post "माँ का आंचल":
ReplyDeleteगहरे दुख की बात है ... ओर इसका जवाब समाज को छोड़ के किसी के पास नहीं ...
हर माँ के मन के डर को आपने सुन्दरता से प्रस्तुत किया .हर माँ चाहती है अपनी बेटी की सुरक्षा उन अनजान दरिंदों से.
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postजीवन संध्या
latest post परम्परा
सचमुच चिंतनीय स्थिति ...
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना
सादर!
एक अनजाना सा डर
ReplyDeleteहर पल सांस अटकती है
जब भी बेटी घर से
बाहर निकलती है
संवेदनशील रचना
bahut hi anishchit sa mahol bn raha hai ...kanun ke rakhwale apna ghar bharne me lage hain ....marmik prastuti ....
ReplyDeleteअपने ही घर में अपनों से सुरक्षा... बहुत कठिन सवाल है, मुश्किल है हल लेकिन असंभव नहीं...
ReplyDeleteमाँ का आँचल..
ReplyDeleteवर्तमान समय में माँ की संवेदनाओ को व्यक्त करती प्रस्तुति.
इसी का उत्तर तो ढूंढ रहे हैं हम सभी आज कल ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई महेश्वरी जी
ReplyDeleteउपासना सियाग has left a new comment on post "माँ का आंचल":
ReplyDeleteडर तो है लेकिन हिम्मत भी जगानी पड़ेगी ही ...बहुत बढ़िया जी
बेटी का जन्म और भय का जन्म - एक सा है
ReplyDeleteआज हर जुबां पर बस यही सवाल है .....मार्मिक प्रस्तुति
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ReplyDeleteसतीश सक्सेना has left a new comment on post "माँ का आंचल":
माँ अगर डरने लगी ,
समझो प्रलय नज़दीक है !
शुभकामनायें आपको !
वातमान हालातों पर सार्थक अभिव्यक्ति जब तक हमारे देश में बेटे और बेटी का अनुपात समान नहीं हो जाता और लोग के दिलों में कानून का डर नहीं आ जाता तब तक शायद इस समस्या का कोई निदान हो।
ReplyDeleteबहुत ही मर्म स्पर्शी एवं सामयिक रचना.
ReplyDeleteहालात बेकाबू होते जा रहे हैं ...यहाँ असं में ही नित न जाने कितनी घटनाएं सुनने में आ रही हैं .....
ReplyDeleteअब कलम से काम न चलेगा .....
हालातों के साये में माँ बस फिक्रमन्द है ..
ReplyDeleteमन को छूती पोस्ट
सादर
लोग बेटियों को सिर्फ घर की इज्ज़त क्यूँ समझते हैं देश की इज्ज़त क्यूँ नहीं समझते ?
ReplyDeleteएक अनजाना सा डर
हर पल सांस अटकती है
जब भी बेटी घर से
बाहर निकलती है
अपने ही घर में हमारी बेटियां असुरक्षित हैं |
शर्म की बात है मित्र पर है
http:/www.utkarshita.blogspot.com
http:/tumhareeyadein.blogspot.com
आज के जो हालात हैं उनसे डर तो लगता ही है ॥ सार्थक रचना
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