अनुज सागर
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यूँ मौन तपस्वी से
निश्छल अविचल ,हे अनुज सागर
क्यों ठहरे-ठहरे से शान्त पड़े हो
प्रकृति के प्रतिबिंब तुम
मूक ह्रदय से करते अभिनंदन
चंचल चाँदनी खेले उर में
किरणें करती जब आलिंगन
जब मस्त पवन छू कर निकले
तुम सिहर-सिहर खामोश रह जाते
क्यों उछाल नहीं भरते
गहन ह्रदय में क्या तुम्हारे ..तुम जानो
कलुषित मन मेरा जब भी अकुलाए
पास तुम्हारे मैं आ जाती
देख छबी अपनी ही तुम में
सम्मोहित सी होकर
मन शान्त हो जाता
*************
*महेश्वरी कनेरी
प्रकृति से सुंदर संलाप...
ReplyDeleteप्रकृति का सुंदर प्रस्तुतिकरण!! सादर ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर .... रचना भी और चित्र भी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुतिकरण !!
ReplyDeleteसादर ...
अभिव्यंजना को आपने शब्द और चित्र के माध्यम से व्यक्त कर मन को प्रेम सिक्त कर दिया आरोपण को भाव दिया बधाई
ReplyDeleteप्रकृति के कार्यकलाप का एहसास का सुन्दर चित्रण !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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मर्मस्पर्शी चित्रण......
ReplyDeleteबहुत सुंदर और गहन भाव
ReplyDeleteधन्यवाद..दिलबाग जी..आभार
ReplyDeleteगहरी झील, गहरी भावना।
ReplyDeletebahut sundar rachna............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी शब्द चित्र...
ReplyDeleteगूढ़ गहन भावों की प्रतीकात्मक प्रस्तुति..........
ReplyDeleteसागर की शांत लहरें कभी कभी गहरा दर्द छिपाए रखती हैं अपने अंदर ....
ReplyDeleteगहन अर्थ लिए सार्थक अभिव्यक्ति ...
कलुषित मन मेरा जब भी अकुलाए
ReplyDeleteपास तुम्हारे मैं आ जाती
देख छबी अपनी ही तुम में
सम्मोहित सी होकर
मन शान्त हो जाता
मन के भावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं महेश्वरी जी हार्दिक बधाई
सागर की स्शंत लहरें अपने अंदर गहरा दर्द छुपाए होती हैं शाद इसलिए जब हम दुखी है और सागर किनारे जाते है तो मन शांत हो जाता है क्यूंकि दूसरे का दर्द देखने बाद ही यह एहसास होता है कि उसके दर्द के आगे हमारा दर्द तो कुछ भी नहीं या फिर जब दो दुखी मन मिलते हैं तब भी मन अक्सर शांति महसूस करने लगता है। बहुत सुंदर एवं सार्थक गहन भाव अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteप्रकृति के प्रतिबिंब तुम
ReplyDeleteमूक ह्रदय से करते अभिनंदन....bahut acchh pankti bahut kuchh sikha deti hamen ....
बहुत ही बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
आशा बिष्ट has left a new comment on post "अनुज सागर..":
ReplyDeleteवाह जितने भाव मन मे पढ़ते वक्त उमड रहे थे उन्हें व्यक्त करना मुस्किल है
सुन्दर प्रस्तुति
कोमल अनुभूति..
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteअति सुन्दर काव्य कृति..
ReplyDeleteदेख छबी अपनी ही तुम में
ReplyDeleteसम्मोहित सी होकर
मन शान्त हो जाता
भावमय करते शब्द ...
सतह के ऊपर कुछ और, सतह के नीचे कुछ और गहन गंभीर ......बहुत सुंदर अभिव्यक्ति महेश्वरी जी....सुंदर भाव..सुंदर रचना ...
ReplyDeleteसागर का मानवीकरण दिल को छु रहा है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
गहन ह्रदय में क्या तुम्हारे ..तुम जानो
ReplyDeleteकलुषित मन मेरा जब भी अकुलाए
पास तुम्हारे मैं आ जाती-------
मन की भावुक अभिव्यक्ति
सुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
Sometimes we too become lifeless and need to be awakened just like the sea.
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