abhivainjana


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Friday, 12 October 2012

और मैं रिश्ते बोती रही


मैं तो रिश्ते बोती रही
पर ये कंटक कहाँ से उगते गए..
मेरे मन स्थिति से विपरीत
ये मेरे फूल से अहसासों को छलनी करते रहे
और मैं रिश्ते बोती रही
स्नेह का खाद डाल
प्यार से सिंचित करती रही
रोज़ दुलारती सवाँरती
पर ये गलत फहमी के फूल कहाँ से उग आए
 दिनों दिन जो बढ़ते ही गए
और मैं रिश्ते बोती रही
एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही
प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
और मैं रिश्ते बोती रही
****************
महेश्वरी कनेरी

41 comments:

  1. प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
    और मैं रिश्ते बोती रही

    आहत मन...निश्छल हृदय रिश्ते बोने में ही विश्वास रखता है
    सादर

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  2. एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
    जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती

    सच है अहम ही रिश्तों की मधुरता को नष्ट करने वाला विष है..दिल को छूने वाली रचना !

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  3. बड़ा असहाय महसूस करता है मन......
    मन की व्यथा कोई न समझे.......

    बहुत भावपूर्ण रचना दी..

    सादर
    अनु

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  4. प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
    और मैं रिश्ते बोती रही
    वाह ! बहुत खूब दीदी !!
    सादर!!
    हम सब ,एक जैसे ,
    एक जगह इक्ठा क्यूँ हुए :))

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  5. फूलों के साथ खर पतवार और कांटे सभी जन्म लेते हैं .... बहुत खूबसूरती से लिखा है ....

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  6. waah aaj ka sach byaan kar diya aapne ....aham sab rishton ko khokhla kar deta hai ..sundar rachna

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  7. प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
    और मैं रिश्ते बोती रही

    यही विडम्बना है हम रिश्ते बोने मे मशगूल रहते हैं और उधर लहूलुहान होते रहते हैं………सुन्दर प्रस्तुति

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  8. संगीता आंटी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ। सार्थक प्रस्तुति आभार

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  9. रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
    और मैं रिश्ते बोती रही
    मन को छूते शब्‍द

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  10. बहुत सुंदर रचना
    सुंदर भाव, क्या कहने

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  11. कभी न कभी तो फूल निकलेंगे।

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  12. कभी न कभी तो ये बीज अंकुरित होगा ..और वृक्ष भी बनेगा ...

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  13. बहुत सुंदर रचना...........एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
    जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही

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  14. रिश्तो की बगिया कैक्टस से बची रहे।

    कविता में प्रतीकों का सुंदर प्रयोग।

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  15. प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
    और मैं रिश्ते बोती रही
    jeevan ka yahi to sach hai

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  16. मैं तो रिश्ते बोती रही
    पर ये कंटक कहाँ से उगते गए..
    मेरे मन स्थिति से विपरीत

    यही तो त्रासदी है.

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  17. गहरी अभिव्यक्ति..... मन की वेदना लिए

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  18. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति -हार तो मानना ही नहीं है

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  19. मन का हर कोना सदा ही रिश्तों में मधुरता ही घोलता है कुछ परिस्थितियां ही ऐसी बन जाती है कि कोई बात मन को आहत कर देती है प्यारी सी पोस्ट मन को छू गई |

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  20. एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
    जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही

    वास्तविक स्थिति का वर्णन किया आपने ...फिर भी रिश्ते बोते रहने के जज्बा प्रणाम योग्य है

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  21. काटो बिन माया मोह लिए
    इन कांटो से दुख पाओगे !
    घर में जहरीले वृक्ष लिए
    क्यों लोग मनाते दीवाली !

    मंगल कामनाएं आपके लिए !

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  22. मैं तो रिश्ते बोती रही
    पर ये कंटक कहाँ से उगते गए..
    मेरे मन स्थिति से विपरीत

    ....एक कटु सत्य...बहुत मर्मस्पर्शी रचना...

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  23. आज के रिश्तों का कड़वा सच

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  24. फूल के पास काँटे का होना भी रिश्ता ही कहलाता है. संबंधों के दूसरे पक्ष को उकेरती सुंदर कविता.

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  25. एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
    जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही.

    सच्चाई को स्वीकार करने का ईमानदार प्रयत्न. गहन अभिव्यक्ति.

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  26. रश्मि प्रभा..as left a new comment on my post "और मैं रिश्ते बोती रही":

    रिश्तों के बीज हों या फूलों के या अनाज के
    समय समय पर हवा,धूप ,कीटाणु नाशक दवा की ज़रूरत होती है - न कीड़े लगने में देर लगती है,न सड़ने गलने में ....

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  27. बहुत प्रभावशाली गहन अभिव्यक्ति ह्रदय को चीर देते हैं ये कांटे जो अपेक्षित फूलों की जगह उग आते हैं रिश्तों के अच्छे बीज बोने के बावजूद भी बर्दाश्त से बाहर हो जाते हैं

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  28. दोष ना बीज का होता है
    ना होता है किसान का
    कभी यूं भी हवा और पानी
    रंग बदल देते हैं ऎसे ही !

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  29. Virendra Kumar Sharma has left a new comment on my post "और मैं रिश्ते बोती रही":

    गलतफहमी का कैक्टस बिना खाद पानी के भी बढ़ता है बस एक बार इसका अंकुर रिश्तों में फूट भर जाए ,फिर देखिये कितने गुल खिलाये .बढ़िया प्रस्तुति है .

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  30. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन has left a new comment on my post "और मैं रिश्ते बोती रही":

    रिश्ते अक्सर वनवे ट्रैफ़िक होते हैं।

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  31. This comment has been removed by the author.

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  32. काँटों के बीच जन्में रिश्ते महफूज़ तो हैं |
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
    आशा

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  33. मनः स्थिति को उकेरती बेहतरीन कविता



    सादर

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  34. रिश्तों के फूल के साथ काँटे उगते ही हैं... बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.

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  35. रिश्ते बोये,पाये खार
    कैसा है, तेरा संसार
    अहसासों को छलनी करती
    कैसी तीखी चली बयार
    स्नेह खाद से हुई पल्लवित
    गलतफहमियाँ,खरपतवार
    एक अहम् का बीज अंकुरित
    खड़ी हो गई, बीच दीवार


    बेहतरीन भावपूर्ण गहरी रचना के लिए आभार

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  36. और मैं रिश्ते बोती रही........भावपूर्ण रचना
    स: परिवार नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार कीजियेगा.

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  37. कांटो से फूलों को चुन लो ....
    शुभकामनाएँ!

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  38. जब कभी रिश्ते अबूझ पहेली बन कर सामने आते हैं तो मन यूँ ही उदास हो उठता है ...और फिर एक टीस मन में उभर आती हैं ....मनोभावों की सार्थक अभिव्यक्ति ..

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  39. sach me, inn rishto ke bich bahut kuchh aisa dikhta hai, jo dil dukhata hai...!
    behtareen..

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  40. हम रिश्ते बोते है,प्यार बोते है और
    कांटे उगे तो बहुत तकलीफ होती है...
    संवेदनशील अभिव्यक्ति...
    :-)

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  41. हर रिश्ते की अपनी अलग ही परिभाषा होती है ....

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