मैं तो रिश्ते बोती
रही
पर ये कंटक कहाँ से
उगते गए..
मेरे मन स्थिति से विपरीत
ये मेरे फूल से अहसासों
को छलनी करते रहे
और मैं रिश्ते बोती
रही
स्नेह का खाद डाल
प्यार से सिंचित करती
रही
रोज़ दुलारती सवाँरती
पर ये गलत फहमी के
फूल कहाँ से उग आए
दिनों दिन जो बढ़ते
ही गए
और मैं रिश्ते बोती
रही
एक अहम के बीज से कितनी
दीवारें उग आई
जहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही
प्रेम प्यार सभी लहू
लुहान होते रहे
और मैं रिश्ते बोती
रही
****************
महेश्वरी कनेरी
प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
ReplyDeleteऔर मैं रिश्ते बोती रही
आहत मन...निश्छल हृदय रिश्ते बोने में ही विश्वास रखता है
सादर
एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
ReplyDeleteजहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती
सच है अहम ही रिश्तों की मधुरता को नष्ट करने वाला विष है..दिल को छूने वाली रचना !
बड़ा असहाय महसूस करता है मन......
ReplyDeleteमन की व्यथा कोई न समझे.......
बहुत भावपूर्ण रचना दी..
सादर
अनु
प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
ReplyDeleteऔर मैं रिश्ते बोती रही
वाह ! बहुत खूब दीदी !!
सादर!!
हम सब ,एक जैसे ,
एक जगह इक्ठा क्यूँ हुए :))
फूलों के साथ खर पतवार और कांटे सभी जन्म लेते हैं .... बहुत खूबसूरती से लिखा है ....
ReplyDeletewaah aaj ka sach byaan kar diya aapne ....aham sab rishton ko khokhla kar deta hai ..sundar rachna
ReplyDeleteप्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
ReplyDeleteऔर मैं रिश्ते बोती रही
यही विडम्बना है हम रिश्ते बोने मे मशगूल रहते हैं और उधर लहूलुहान होते रहते हैं………सुन्दर प्रस्तुति
संगीता आंटी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ। सार्थक प्रस्तुति आभार
ReplyDeleteरेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
ReplyDeleteऔर मैं रिश्ते बोती रही
मन को छूते शब्द
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर भाव, क्या कहने
कभी न कभी तो फूल निकलेंगे।
ReplyDeleteकभी न कभी तो ये बीज अंकुरित होगा ..और वृक्ष भी बनेगा ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...........एक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
ReplyDeleteजहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही
रिश्तो की बगिया कैक्टस से बची रहे।
ReplyDeleteकविता में प्रतीकों का सुंदर प्रयोग।
प्रेम प्यार सभी लहू लुहान होते रहे
ReplyDeleteऔर मैं रिश्ते बोती रही
jeevan ka yahi to sach hai
मैं तो रिश्ते बोती रही
ReplyDeleteपर ये कंटक कहाँ से उगते गए..
मेरे मन स्थिति से विपरीत
यही तो त्रासदी है.
गहरी अभिव्यक्ति..... मन की वेदना लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति -हार तो मानना ही नहीं है
ReplyDeleteमन का हर कोना सदा ही रिश्तों में मधुरता ही घोलता है कुछ परिस्थितियां ही ऐसी बन जाती है कि कोई बात मन को आहत कर देती है प्यारी सी पोस्ट मन को छू गई |
ReplyDeleteएक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
ReplyDeleteजहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही
वास्तविक स्थिति का वर्णन किया आपने ...फिर भी रिश्ते बोते रहने के जज्बा प्रणाम योग्य है
काटो बिन माया मोह लिए
ReplyDeleteइन कांटो से दुख पाओगे !
घर में जहरीले वृक्ष लिए
क्यों लोग मनाते दीवाली !
मंगल कामनाएं आपके लिए !
मैं तो रिश्ते बोती रही
ReplyDeleteपर ये कंटक कहाँ से उगते गए..
मेरे मन स्थिति से विपरीत
....एक कटु सत्य...बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
आज के रिश्तों का कड़वा सच
ReplyDeleteफूल के पास काँटे का होना भी रिश्ता ही कहलाता है. संबंधों के दूसरे पक्ष को उकेरती सुंदर कविता.
ReplyDeleteएक अहम के बीज से कितनी दीवारें उग आई
ReplyDeleteजहाँ आरोपों क़े कील से नफरत की खूँटियाँ गड़ती रही.
सच्चाई को स्वीकार करने का ईमानदार प्रयत्न. गहन अभिव्यक्ति.
रश्मि प्रभा..as left a new comment on my post "और मैं रिश्ते बोती रही":
ReplyDeleteरिश्तों के बीज हों या फूलों के या अनाज के
समय समय पर हवा,धूप ,कीटाणु नाशक दवा की ज़रूरत होती है - न कीड़े लगने में देर लगती है,न सड़ने गलने में ....
बहुत प्रभावशाली गहन अभिव्यक्ति ह्रदय को चीर देते हैं ये कांटे जो अपेक्षित फूलों की जगह उग आते हैं रिश्तों के अच्छे बीज बोने के बावजूद भी बर्दाश्त से बाहर हो जाते हैं
ReplyDeleteदोष ना बीज का होता है
ReplyDeleteना होता है किसान का
कभी यूं भी हवा और पानी
रंग बदल देते हैं ऎसे ही !
Virendra Kumar Sharma has left a new comment on my post "और मैं रिश्ते बोती रही":
ReplyDeleteगलतफहमी का कैक्टस बिना खाद पानी के भी बढ़ता है बस एक बार इसका अंकुर रिश्तों में फूट भर जाए ,फिर देखिये कितने गुल खिलाये .बढ़िया प्रस्तुति है .
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन has left a new comment on my post "और मैं रिश्ते बोती रही":
ReplyDeleteरिश्ते अक्सर वनवे ट्रैफ़िक होते हैं।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकाँटों के बीच जन्में रिश्ते महफूज़ तो हैं |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति |
आशा
मनः स्थिति को उकेरती बेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
रिश्तों के फूल के साथ काँटे उगते ही हैं... बहुत अच्छी रचना, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteरिश्ते बोये,पाये खार
ReplyDeleteकैसा है, तेरा संसार
अहसासों को छलनी करती
कैसी तीखी चली बयार
स्नेह खाद से हुई पल्लवित
गलतफहमियाँ,खरपतवार
एक अहम् का बीज अंकुरित
खड़ी हो गई, बीच दीवार
बेहतरीन भावपूर्ण गहरी रचना के लिए आभार
और मैं रिश्ते बोती रही........भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteस: परिवार नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार कीजियेगा.
कांटो से फूलों को चुन लो ....
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
जब कभी रिश्ते अबूझ पहेली बन कर सामने आते हैं तो मन यूँ ही उदास हो उठता है ...और फिर एक टीस मन में उभर आती हैं ....मनोभावों की सार्थक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeletesach me, inn rishto ke bich bahut kuchh aisa dikhta hai, jo dil dukhata hai...!
ReplyDeletebehtareen..
हम रिश्ते बोते है,प्यार बोते है और
ReplyDeleteकांटे उगे तो बहुत तकलीफ होती है...
संवेदनशील अभिव्यक्ति...
:-)
हर रिश्ते की अपनी अलग ही परिभाषा होती है ....
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