बदलती दुनिया
बदलती इस दुनिया में
पल-पल रंग बदलते देखा
बाहर से सब अच्छे हैं
अंदर छल कपट और धोखा
दो वक्त रोटी से
क्यों खुश नही इंसान
अधिक की चाहत में
कहाँ खो रहा इंसान
कैसी रीत चली जग में
पैसा रिश्ता पैसा भगवान
पैसे-पैसे के खातिर
आज बिक रहा इंसान
निज स्वार्थ ने
अपनों से तोड़ा नाता है
भाई-भाई का शत्रु बना
महाभारत फिर दोहराता है
*******
महेश्वरी कनेरी
दो वक्त रोटी से
ReplyDeleteक्यों खुश नही इंसान
अधिक की चाहत में
कहाँ खो रहा इंसान
सही कहा...सबसे बड़ा धन संतोषधन ही गुम हो गया है.
बहुत सही कहा आंटी !
ReplyDeleteसादर
वैसे मेरे खयाल से दुनिया तो वही है लोग बदल गए है !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दुनिया मे रहना है तो ध्यान धरो प्यारे ... ब्लॉग बुलेटिन
महाभारत गवाह है..
ReplyDeleteबदल गयी है दुनिया, बदल गया इन्सान...
ReplyDeleteगहन भाव... आभार
दो वक्त रोटी से
ReplyDeleteक्यों खुश नही इंसान
अधिक की चाहत में
कहाँ खो रहा इंसान
....अधिक पाने की चाहत ने इंसानियत को कुचल दिया है..देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान....
चाँद न बदला सूरज न बदला न बदला रे आसमान,
ReplyDeleteकितना बदल गया इंसान,,,,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
सच कहा .......................
ReplyDeleteमहाभारत है मगर गीतोपदेश का पता नहीं......
सादर.
insan ki yahi kamjori use patan ke gart me dhakel rahi hai----------mahabharat swabhavik hai
ReplyDeleteसच सभी की सोच यही तक सिमट कर रह गयी है....
ReplyDeleteआदमी सिक्के को,
ReplyDeleteसिक्के आदमी को,
खोटा बनाते हैं,
वो एक दूसरे को
छोटा बनाते हैं,
आजकल सिक्के
टकसाल में नहीं
आदमी की हथेली
पर ढल रहे हैं
और बच्चे
मां की गोद में नहीं
सिक्के की परिधि
में पल रहे हैं।
बहुत सुंदर रचना
सुंदर भाव
यही स्वार्थ तो जीने नहीं दे रहा.. इतनी खूबसूरत सी ज़िन्दगी को हम पैसे इत्यादि इच्छाओं में तिल-तिल कर मारते जा रहे हैं..
ReplyDeleteइस पैसे की अंधी दौड ने इन्सान की इन्सानियत ही छीन ली है ।
ReplyDeleteइतिहास दोहराता है ....
ReplyDeleteमहाभारत फिर दोहराता है ....
इंसान हैं , इंसानी फितरत है ....
गलतियों को दोहराते रहना ....
बिल्कुल सच कहा है आपने ...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
ReplyDeleteआपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
मेरा एक ब्लॉग है
http://dineshpareek19.blogspot.in/
यथार्थवादी चित्रण...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteइंसानियत के इस क्षरण के दौर में पैसा ही भगवान है।
ReplyDeleteदो वक्त रोटी से
ReplyDeleteक्यों खुश नही इंसान
अधिक की चाहत में
कहाँ खो रहा इंसान......kya baat hai.....
आज दुर्योधन की सेना ज्यादा चालाक और शक्तिशाली हो गई है....
ReplyDeleteपांडवों में भी फूट... कृष्ण भी क्या करे....
सुंदर रचना.... सादर।
बहुत ही अच्छी कविता । मेरे नए पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमहाभारत की याद दिलाते और पैसा-पैसा करते हालात. बहुत बढ़िया कविता.
ReplyDeleteगहन चिंतन.. अच्छी कविता..
ReplyDelete