abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Friday 23 March 2012

माटी से मिली देह है


       माटी से मिली  देह है

  माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है
  क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

 मोह माया एक जाल है,तृष्णा है भटकाव है
 तोड़ दे इस बंधन को, आगे शीतल छांव है ।   

 मन की आँखे खोल जरा ,जीवन कब अपना है
 एक नाम ही साँचा है,बाकी  सब तो सपना है ।

 खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
 क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
******
महेश्वरी कनेरी




34 comments:

  1. माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

    बहुत खूब आंटी! एकदम सच्ची बात काही है आपने
    नव संवत की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    सादर

    ReplyDelete
  2. दीदी के दर्शन मिले, करता दर्शन-पाठ ।
    जो समझा खुशहाल वो, बाढ़े जीवन ठाठ ।


    बाढ़े जीवन ठाठ, सार गीता सा पाया ।
    माटी की कद-काठ, गर्व में किते भुलाया ।

    पञ्च तत्व का मेल, खेल है चार दिनों का ।
    हेल मेल अल्बेल, मिटाओ मेल मनों का ।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. पञ्च तत्व का मेल, खेल है चार दिनों का ।
      हेल मेल अल्बेल, मिटाओ मैल मनों का ।।

      Delete
  3. एक सुन्दर रचना और एक अटल सत्य भी. आभार !
    कबीर की रचना भीमसेन जोशी के स्वर में वर्षों पहले सुनी थी "......ये तन मुण्डना रे, मुण्डना रे, मुण्डना...." आज फिर वह कबीरवाणी याद आ गयी.

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत ही सुंदर भावों और शब्दों से सजायी है आपने अपनी यह रचना नव संवत कि शुभकामनायें....

    ReplyDelete
  5. माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।.....माटी के पुतले काहे को गुमान ?

    सुन्दर रचना है कबीर का फलसफा समझाती -दास कबीर जतन से ओढ़ी,ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ,झीनी रे झीनी ....

    कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai

    बुधवार, 21 मार्च 2012
    गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .

    ReplyDelete
  6. खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

    ये सारे ख्याल मन में आते रहते हैं...

    ReplyDelete
  7. खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

    ....काश, यह शास्वत सत्य लोग समझ पाते...बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...आभार

    ReplyDelete
  8. ये ही इस जीवन का सार हैं ...

    ReplyDelete
  9. खाली हाथ आये है और खाली हाथ ही जाना है लेकिन यह जानकर भी हम अपने हाथ हमेशा भरते रहना चाहते हैं--------बहुत ही सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  10. ek sateek rachna khali hath hi aaya khali haath hi jana hai
    yahi jeevan ka sach hai.behtreen abhivyakti.

    ReplyDelete
  11. मन की आँखे खोल जरा ,जीवन कब अपना है
    एक नाम ही साँचा है,बाकी सब तो सपना है ... jivan ka saar rakh diya

    ReplyDelete
  12. मोह माया एक जाल है,तृष्णा है भटकाव है
    तोड़ दे इस बंधन को, आगे शीतल छांव है ।

    Bahut Sunder...Sach to yahi hai...

    ReplyDelete
  13. सत्य को कहती सुंदर भावभिव्यक्ति

    नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें...

    ReplyDelete
  14. नव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /

    ReplyDelete
  15. जिससे उपजे,
    उसमें जाकर मिल जाना है,
    क्या अपना है,
    इस दुनिया में क्या पाना है?

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर...........

    सादर.

    ReplyDelete
  17. माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

    जीवन का अंतिम... गहन भाव...

    ReplyDelete
  18. इस ख़ूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
  19. अनमोल वचन.. अति सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  20. http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/5.html

    ReplyDelete
  21. माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
    अनुपम भाव संयोजन लिए ...उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  22. सब यही रह जाना है ।

    बहुत सुंदर रचना....
    सादर।

    ReplyDelete
  23. उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  24. मन की आँखे खोल जरा ,जीवन कब अपना है
    एक नाम ही साँचा है,बाकी सब तो सपना है ।

    उम्दा प्रस्तुति महेश्वरी जी ... !!

    ReplyDelete
  25. सच इसे माटी में ही मिल जाना है।

    ReplyDelete
  26. खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।

    जीवन की यही सबसे बड़ी सच्चाई है।
    अच्छी रचना।

    ReplyDelete
  27. माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ...

    जीवन की सच्चाई को सरल सीधे शब्दों में लिख दिया आपने ... बहुत सुन्दर काव्य ...

    ReplyDelete
  28. नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
    आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
    मेरी एक नई मेरा बचपन
    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
    http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
    दिनेश पारीक

    ReplyDelete
  29. कल 27/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  30. आपने ने तो हकीकत को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है और उस पर अमल किए जाने की आवश्यकता भी है। किन्तु सराहना मे टिप्पणी लिखने वाले अमल करने को कितना तत्पर हैं?

    ReplyDelete
  31. खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
    क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है

    ...लेकिन सच तो यह है की इंसान की नियत का घड़ा नहीं भरता ..इश्वर ने कहा है ...मैंने इतना दिया है की सबका पेट भर सके ...लेकिन नियत ...उसका तो कोई पारावार नहीं .....!

    ReplyDelete
  32. बहुत बढ़िया प्रस्तुति !

    ReplyDelete