माटी से मिली देह है
माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है
क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
मोह माया एक जाल है,तृष्णा है भटकाव है
तोड़ दे इस बंधन को, आगे शीतल छांव है ।
मन की आँखे खोल जरा ,जीवन कब अपना है
एक नाम ही साँचा है,बाकी सब तो सपना है ।
खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
क्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
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महेश्वरी कनेरी
माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
बहुत खूब आंटी! एकदम सच्ची बात काही है आपने
नव संवत की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
दीदी के दर्शन मिले, करता दर्शन-पाठ ।
ReplyDeleteजो समझा खुशहाल वो, बाढ़े जीवन ठाठ ।
बाढ़े जीवन ठाठ, सार गीता सा पाया ।
माटी की कद-काठ, गर्व में किते भुलाया ।
पञ्च तत्व का मेल, खेल है चार दिनों का ।
हेल मेल अल्बेल, मिटाओ मेल मनों का ।।
पञ्च तत्व का मेल, खेल है चार दिनों का ।
Deleteहेल मेल अल्बेल, मिटाओ मैल मनों का ।।
एक सुन्दर रचना और एक अटल सत्य भी. आभार !
ReplyDeleteकबीर की रचना भीमसेन जोशी के स्वर में वर्षों पहले सुनी थी "......ये तन मुण्डना रे, मुण्डना रे, मुण्डना...." आज फिर वह कबीरवाणी याद आ गयी.
वाह बहुत ही सुंदर भावों और शब्दों से सजायी है आपने अपनी यह रचना नव संवत कि शुभकामनायें....
ReplyDeleteमाटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।.....माटी के पुतले काहे को गुमान ?
सुन्दर रचना है कबीर का फलसफा समझाती -दास कबीर जतन से ओढ़ी,ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ,झीनी रे झीनी ....
कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 21 मार्च 2012
गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
ये सारे ख्याल मन में आते रहते हैं...
खाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
....काश, यह शास्वत सत्य लोग समझ पाते...बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...आभार
ये ही इस जीवन का सार हैं ...
ReplyDeleteखाली हाथ आये है और खाली हाथ ही जाना है लेकिन यह जानकर भी हम अपने हाथ हमेशा भरते रहना चाहते हैं--------बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteek sateek rachna khali hath hi aaya khali haath hi jana hai
ReplyDeleteyahi jeevan ka sach hai.behtreen abhivyakti.
मन की आँखे खोल जरा ,जीवन कब अपना है
ReplyDeleteएक नाम ही साँचा है,बाकी सब तो सपना है ... jivan ka saar rakh diya
मोह माया एक जाल है,तृष्णा है भटकाव है
ReplyDeleteतोड़ दे इस बंधन को, आगे शीतल छांव है ।
Bahut Sunder...Sach to yahi hai...
सत्य को कहती सुंदर भावभिव्यक्ति
ReplyDeleteनव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें...
नव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteजिससे उपजे,
ReplyDeleteउसमें जाकर मिल जाना है,
क्या अपना है,
इस दुनिया में क्या पाना है?
बहुत सुन्दर...........
ReplyDeleteसादर.
माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
जीवन का अंतिम... गहन भाव...
इस ख़ूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteअनमोल वचन.. अति सुन्दर रचना.
ReplyDeletebehad santulit panktiyaan...
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/5.html
ReplyDeleteमाटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है ।
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
अनुपम भाव संयोजन लिए ...उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
सब यही रह जाना है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना....
सादर।
उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमन की आँखे खोल जरा ,जीवन कब अपना है
ReplyDeleteएक नाम ही साँचा है,बाकी सब तो सपना है ।
उम्दा प्रस्तुति महेश्वरी जी ... !!
सच इसे माटी में ही मिल जाना है।
ReplyDeleteखाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ।
जीवन की यही सबसे बड़ी सच्चाई है।
अच्छी रचना।
माटी से मिली देह है,माटी में मिल जाना है
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है ...
जीवन की सच्चाई को सरल सीधे शब्दों में लिख दिया आपने ... बहुत सुन्दर काव्य ...
नवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
ReplyDeleteआप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
कल 27/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आपने ने तो हकीकत को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है और उस पर अमल किए जाने की आवश्यकता भी है। किन्तु सराहना मे टिप्पणी लिखने वाले अमल करने को कितना तत्पर हैं?
ReplyDeleteखाली हाथ तू आया है, खाली हाथ ही जाना है
ReplyDeleteक्या तेरा क्या मेरा ,सब यही रह जाना है
...लेकिन सच तो यह है की इंसान की नियत का घड़ा नहीं भरता ..इश्वर ने कहा है ...मैंने इतना दिया है की सबका पेट भर सके ...लेकिन नियत ...उसका तो कोई पारावार नहीं .....!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
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