१
लोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है,
फिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है ।
२
ये मतलब की दुनिया है, बेमतलब प्यार नही मिलता है,
मतलब का बाजा़र सजा है, बस दर्द ही दर्द बिकता है ।
३
कई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
पास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है ।
४
खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
खुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
५
चाहो तो चेहरे पर कई चेहरे, नकाब सजालो,
लेकिन भीतर इंसानियत को कभी न मरने दो।
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महेश्वरी कनेरी
आदरणीय महेश्वरी कनेरी जी
ReplyDeleteनमस्कार !!!
बहुत सुन्दर और सार्थक बातें, हार्दिक बधाई
रिश्ते रिसियाते रहे, हिरदय हाट बिकाय ।
ReplyDeleteपरिचित बेगाने हुए, ख़ुशी ढूंढने जाय ।
ख़ुशी ढूंढने जाय, नहीं अंतर-मन देखा।
धर्म कर्म व्यवसाय, बदल ब्रह्मा का लेखा ।
दीदी का उपदेश, सरल सा चलो समझते ।
दिल में रखे सहेज, कीमती पावन रिश्ते ।।
खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
ReplyDeleteखुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
Sunder Baat Kahi Apne...
वाह ... बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteखुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?........
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक बातें, हार्दिक बधाई
सच है
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियां है
एक से बढकर एक सार्थक संदेश देती क्षणिकायें।
ReplyDeleteअरे हमारा कमेंट फिर गायब..........
ReplyDeleteमहेश्वरी जी खोज लाइए प्लीस...
:-(
सादर.
प्रभावी क्षणिकायें।
ReplyDeleteचेहरों की भीड़ में कुछ भी असली नहीं
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और बेहतरीन प्रस्तुति है..
ReplyDeleterishton ke chehare aese ho hote haen.sundar rachana .aabhr meri nai post par aapke vichar saadar aamantrit haen.dhanyavad.
ReplyDeleteकौन है अपना कौन पराया ....बस मुखौटे में छिपा है सब ...
ReplyDeleteलोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है,
ReplyDeleteफिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है
सच को बयां करती क्षणिकाएं
बहुत शानदार अभिव्यक्ति!सत्य का दर्शन करा गई...
ReplyDeleteलोगों को पहले हाथ जोड़ कर, रिश्ते जोड़ते देखा है,
ReplyDeleteफिर दिल जीतकर उनका, विश्वास तोड़ते देखा है ।
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
कितनी सच्ची बातें.... सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर।
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteहाँ - सच है आपकी बातें |
ReplyDeleteखुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
ReplyDeleteखुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
खरी बात... सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आभार
बहुत सुन्दर और सार्थक क्षणिकाएं...
ReplyDeleteकई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
ReplyDeleteपास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है
sunder bhav
rachana
aaderneeya kaneri jee...bahut hee sarthak sandesh diya hai aapne is rachna ke madhyam se ...sadar badhayee ..main bhee aapko amantrit kar raha hoon apne blog par..
ReplyDeleteखुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
ReplyDeleteखुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
बहुत अच्छी क्षणिकाएं।
विचारणीय और अनुकरणीय।
बेहतरीन क्षणिकाएँ हैं आंटी!
ReplyDeleteसादर
आपको रामनवमी और मूर्खदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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कल 02/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
खुशी की चाह में लोगों को,दर-दर भटकते देखा है,
ReplyDeleteखुशी तो अपने अंदर ही है,कभी झांक के देखा है ?
सुन्दर विचार कणिकाएं .
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी ,जिसको भी देखना ,कई बार देखना .
सुन्दर और सार्थक क्षणिकाएं.
ReplyDeleteकई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
ReplyDeleteपास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है ...
इंसान की फितरत ही ऐसे होती है ... चहरे पे चेहरे लगाते रहते हैं ...
बहुत लाजवाब ...
एक से बढकर एक विचारणीय क्षणिकाएं.
ReplyDeleteवाह ! ! ! ! ! बहुत खूब सुंदर क्षणिकाएं ,बेहतरीन प्रस्तुति,....
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
बहत सुन्दर ...सीधे सच्चे भाव ...सीधी सच्ची बातें !
ReplyDeleteकई बार भीड़ में कुछ चेहरे ,अपने से लगते हैं,
ReplyDeleteपास जाने पर वही , इतने बेगाने क्यों दिखते है ।
जीवन का सच ...बहुत सुन्दर !
चाहो तो चेहरे पर कई चेहरे, नकाब सजालो,
ReplyDeleteलेकिन भीतर इंसानियत को कभी न मरने दो।
माहेश्वरी जी ..सुन्दर सीख देती रचना ..ये समाज अब ऐसा ही हो गया है ....
जय श्री राधे
भ्रमर 5
बातें सच्ची हैं!
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