abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Sunday 20 April 2014

कह मुकरियाँ

                 कह- मुकरीएक बहुत ही पुरातन और लुप्तप्रायकाव्य विधा हैहज़रत अमीर खुसरो द्वारा   विकसित इस विधा पर भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी स्तरीय काव्य-सृजन किया है.. "कह-मुकरीअर्थात ’कह कर मुकर जाना’ ! ये अत्यंत लालित्यपूर्ण और चुलबुली सी लोकविधा है
 वास्तव में इस विधा में दो सखियों के बीच का संवाद निहित होता हैजहाँ एक सखी अपने प्रियतम को याद करते हुए कुछ कहती हैजिसपर दूसरी सखी बूझती हुई पूछती है कि क्या   वह अपने साजन की बात कर रही है तो पहली सखी बड़ी चालाकी से इनकार कर (अपने इशारों से मुकर कर किसी अन्य सामान्य सी चीज़ की तरफ इशारा कर देती है. 
 मैं भी इस विधा को सीखने और जानने का प्रयास कर रही हूँ  मेरा यह पहला प्रयास है

कह मुकरियाँ

(१)

प्रेम बूँद वो भर कर लाते

तपित मन की प्यास बुझाते

मन मयूर है उस पर पागल

क्या सखि साजन्, ना सखि बादल

(२)

दूर खड़ा वो मुझको ताके

कभी कभी खिड़की से झाँके

प्यारा सा वो निर्लज बंदा

क्या सखि साजन,ना सखि चंदा

(३)

आशा की नव किरण जगाता

स्फूर्ति नई भर कर लाता

देख उसे शुरु हो दिन मेरा

क्या सखि साजन्, ना सखि सवेरा

(४)


काँटो के संग मिल मुस्काता


खुशबू से वो जग भर जाता


रंग रंग उसका लाजवाब

क्या सखि साजन्, ना सखि गुलाब

(५)


नैनों में वो बसता मेरे

उस बिन सब श्रृंगार अधूरे

शीतल जैसे गंगा का जल

का सखि साजन ? ना सखि काजल

(६)

संग संग चलते वो मेरे

झूम झूम कदमों को घेरे

दीवाना मुझ पर है कायल

का सखि साजन ? ना सखि पायल

(७)


मंद मंद चलता मुस्काता

सुरभित वो सब जग कर जाता

आने से खिल जाता है मन

का सखि साजन ? ना सखि पवन

(८)


अमूल्य पर, अजब है नाता

यही धरा का जीवन दाता

इसकी महिमा गाते ज्ञानी

का सखि साजन ? ना सखि पानी

(९)

तपित हिये जब मेरा तरसे

नेह बूँद बन झर झर बरसे

देख चातक सा मन है हर्षा

का सखि साजन ? ना सखि वर्षा

**************

महेश्वरी कनेरी

17 comments:

  1. सभी कहमुकरियाँ लाजवाब हैं दी...खासकर चंदा और पायल !!

    ReplyDelete
  2. bahut sundar -sundar kah mukriyan ..

    ReplyDelete
  3. बहोत सुन्दर ...आनंद आ गया महेश्वरीजी

    ReplyDelete
  4. एक से बढ़कर एक.... बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-04-2014) को "गल्तियों से आपके पाठक रूठ जायेंगे" (चर्चा मंच-1589) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  6. आभार शास्त्री जी आप का..

    ReplyDelete
  7. बढ़िया रचना व लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
    नवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) -भाग - ८
    बीता प्रकाशन - जिंदगी हँसने गाने के लिए है पल - दो पल !

    ReplyDelete
  8. एक से बढ़कर एक... महेश्वरीजी

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर मुकरियाँ , पर आज के हिंदी साहित्य में अब मुकरियाँ पढ़ने को नहीं मिलती.

    ReplyDelete
  10. वाह बहुत सुन्दर तालमेल

    एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''इंसानियत''

    ReplyDelete
  11. वाह बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  12. सभी कह मुकरियाँ बहुत लाजवाब है. ऐसे रचनाएं पढी हूँ मगर यह नहीं जानती थी कि इस विधा का कोई ख़ास नाम है. बहुत सुन्दर, बधाई.

    ReplyDelete
  13. नैनों में बस्ता हुआ है ये..बधाई..

    ReplyDelete
  14. सभी बहुत सुन्दर और रोचक...

    ReplyDelete
  15. वाह ! बहुत सुन्दर ...
    एक से बढ़कर एक सुन्दर मुकरियाँ ,

    ReplyDelete
  16. बड़ी ही सहजता से आपने बताया

    ReplyDelete