रिटायर्डमेंट पार्टी ( कहानी )
सुबह जल्दी जल्दी काम निपटा कर जैसे ही चाय का गिलास लिए आँगन में बैठी ही
थी कि पडोस के शर्मा जी के घर से आवाज सुनाई देने लगी- “जल्दी
करो,शाम की तैयारी भी करनी है और पड़ोसियों को भी तो खबर देनी है..अरे सुनो
शाम को कौन सा सूट पहनोगे ? निकाल के तो रख दूँ” ।मैं सोच में पड़ गई आज इनके यहाँ क्या है जो इतनी तैयारी चल रही है ।थोड़ी ही
देर में देखा कि शर्मा जी बन ठन कर अपनी चमचमाती हुई गाडी में आफिस को निकल पड़े ।खैर
जो भी होगा देखा जाएगा सोचकर मैं भी अपने कामों में लग गई ।थोड़ी देर में देखा कि शर्मा
जी की पत्नी मुस्कुराते हुए हमारे घर आ पहुँची ,मैंने उन्हें
बैठने का इशारा किया और कुछ पूछने ही वाली थी कि वो झट से मेरे पैरों को छू कर बोली
माता जी आशीर्वाद दीजिए आज शर्मा जी रिटायर्ड हो रहें है । इसी खुशी में शाम को हमने
एक छोटी सी पार्टी रखी है होटल रीजेंट में आप भी बच्चों के संग जरूर आईएगा कहकर वो
चली गई ।
मैं सोचती रही शादि ब्याह
,मुंडन जन्म-दिन की पार्टी तो सुनी पर ये रिटायर्डमेंट
की पार्टी..? मेरी समझ में कुछ नहीं आया,शायद वक्त बदल गया है वक्त के साथ परिस्थितियाँ भी तो बदल जाती है ।जब नन्दू
के बापू रिटायर्ड होकर घर पहुँचे थे तो कितने उदास लग रहे थे, उनका चेहरा आज भी भुला नहीं पारही हूँ ।उस दिन तो चूल्हा जलाने का भी मन भी
नही हुआ था ।
रिटायर्ड होने से एक वर्ष पहले ही से वे चिंता में पड़ गए थे । एक बेटी की तो
जैसे तैसे ब्याह कर दी थी पर उसके कर्ज़ से अब तक उभरे नहीं थे कि दूसरी बेटी भी तैयार
खडी थी, मकान की मरम्मत का काम पड़ा हुआ था ।नन्दू की भी तो पढ़ाई
अभी पूरी नहीं हुई थी , इतना सारा खर्च और महंगाई भी इतनी,
दिन रात इसी चिंता में रहते, सिर्फ पेंशन से कैसे
गुजारा होगा । मैं उन्हें हिम्मत बँधाती रहती चिंता मत करो जी सब ठीक हो जाएगा।
रिटायर्डमेंट पर जो भी थोड़े बहुत
पैसे मिले उस में से कुछ मकान की मरम्मत में निकल गए,बाकी
छोटी बेटी की शादि में खर्च होगए ।दुबारा नौकरी करने के सिवा और कोई चारा भी तो न था
। काफी दौड़ भाग के बाद इन्हें एक छोटी सी फैक्ट्री में हिसाब किताब का काम मिल गया
।तनख्वा बहुत कम थी,काम बहुत अधिक था क्या करते मजबूरी थी
,कई बार तो काम घर पर लाकर रात भर जाग कर काम किया करते थे जिससे किसी
तरह जिन्दगी की गाडी ठीक से चलती रहे
एक दिन अचानक वे फैक्ट्री से जल्दी
घर वापस आगए ,पूछने पर कहने लगे बस थोड़ा चक्कर सा आगया था । थोड़ा
आराम करूँगा तो ठीक हो जाएगा ।मैनें उनके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ठीक है आराम करो मैं चाय लेके आती हूँ ।
चाय लेके जैसे ही मैं कमरे
में पहुँची ,मैंने धीरे से हिला कर कहा उठो कुछ खा पीलो तो जी
को अच्छा लगेगा ।बहुत हिलाने पर भी नही उठे तो मैं घबरा गई और जोर से नन्दू को आवाज
दे कर बुलाया । किसी तरह उन्हें अस्पताल लेगए वहाँ पता चला कि उन्हें अटैक पड़ गया था
।
इलाज के बाद जब ये ठीक होकर घर
आए तो मैंने उनसे कसम लेली अब नौकरी पर नहीं जाओगे । नन्दू की पढाई लगभग खत्म ही हो
चुकी थी,उसे कहीं न कही नौकरी मिल ही जाएगी ।
धीरे धीरे समय बीतता गया। ऐसा लगने
लगा था हमारे अच्छे दिन फिर करवट बदल कर वापस लौट रहें हैं । नन्दू को भी बैंक में
अच्छी नौकरी मिल गई थी , एक अच्छी सी लड़की देख कर उसकी शादि भी
कर दी । अब इनकी सेहत में भी काफी सुधार आ गया था ।
लेकिन खुशियों को हमारे घर अधिक
रास नहीं आया। एक रात नन्दू के बापू ऐसे सोये कि सुबह का सूरज देख ही नहीं पाए और उसी
दिन से मेरी जिन्दगी भी अंधेरों से घिर गई थी ।
आज पूरे पाँच वर्ष होगए इन्हें
गए हुए,ऐसा लगता है जैसे आज कि ही बात हो । जब भी घर में पालक
का साग बनता था,कहते थे सुनो पालक में थोड़ा पनीर भी डाल देना”,मैं झटक कर कहा करती,”नही ! कितनी
महँगी है पनीर, फिर आप के सेहत के लिए भीतो ठीक नही” ।आज भी इनकी ये आवाज मेरे कानों में अकसर गूँजा करती है ।
“दादी,दादी
ओ दादी ! उठो क्या सोच रही हो इतनी देर से ? शाम को पार्टी में भी तो जाना है मम्मी कह रही थी ,आप
भी चलोगी न हमारे संग?”
मैंने उसके गालों में प्यार से थपथपाते हुए कहा नही बेटा तुम लोग हो
आओ मेरा मन कुछ ठीक नही है ।
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महेश्वरी कनेरी
समय बदल रहा है..बदलते वक्त की तस्वीर प्रस्तुत करती सुंदर कहानी..
ReplyDeleteबेहद मार्मिक कहानी है ....मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteकुछ बातें ऐसे बाँध लेतीं हैं कि उन बंधनों से जुड़े रहने को जी करता है .....वह अतीत आज के वर्तमान
ReplyDeleteसे अधिक करीब ..अधिक प्रिय हो जाता है ...ख़ास तौर पर जब जीवन साथी से जुड़ा हो ....
दिल के करीब लगी कहानी
ReplyDeleteमार्मिक कहानी.अतीत की कुछ बातें मन को जकड़े रखती हैं.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी
धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत आभार आप का..
ReplyDeleteसुंदर रचना ।
ReplyDeletesamay ke sath soch aur samjh me badlav aaya hai ...marmik kahani ...
ReplyDeleteकुछ बातें मन पर ऐसी लिख जाती हैं कि भुलाए नहीं भूलतीं .समय और परिस्थितियाँ सब की भिन्न होती हैं उनके अनुसार ही निभाना पड़ता है.आपस में कह-सुन कर मन हलका कर लेना बहुत ज़रूरी है आपको कैसा लगता होगा समझ सकती हूँ . बस हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम -(ये तो आप कर ही रही हैं ).
ReplyDeleteक्षमा करें माहेश्वरी जी,
ReplyDeleteआपन लेखन का कमाल कि ,मैं सब भूल गई - कहानी एकदम सच लगने लगी .आप
चिर सौभाग्यमयी और प्रसन्न रहें ,यही हृदय से चाहती हूँ .
पुनः-पनः क्षमा याचना करती हूँ मैं.
रिटायर्मेंट ख़ुशी कैसे दे सकता है जिस पर पार्टी दी जाए , पहले मैं ऐसा ही सोचा करती थी मगर पिता रिटायर होने की उम्र से दो वर्ष पहले ही गुजर गए तब समझ आया कि सही सलामत रिटायर होना भी एक नेमत है !
ReplyDeleteहालाँकि कहानी की मार्मिक व्यथा ने जी दुखाया , रिटायर होने से पहले अर्थ की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए !
जब प्रवृत्ति मुँह बाये खड़ी है, निवृत्ति कचोटने लगती है।
ReplyDeleteएक अलग तजुर्बा देती कहानी।
ReplyDeleteरिटायर्ड लाइफ को जीवन यात्रा का एक ज़रूरी हिस्सा समझता हूँ। बस इसी में खुश रहता हूँ।
आह! हृदयस्पर्शी..
ReplyDeleteहर जीवन की अपनी अलग कहानी है। वैसे, समय भी बादल रहा है।
ReplyDeleteatulniy-****
ReplyDeleteबहुत मार्मिक कहानी. शायद इसे मैंने कुछ दिनों पहले हरिभूमि या दैनिक भास्कर में पढ़ा था.
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