झुक कर आसमां जब
धरती के कंधे पर
सर रख देता
है
हौले से तब धरती
थपथपा कर
उसे थाम लेती है
अनोखा मिलन…
पहाड़ों की गोद से
निकल
चट्टानों
को चीर,बेसुध सी नदी
दौड़ती हुई सागर की
बांहो में
सिमट जाती है
अनोखा प्रेम…….
भोर की किरणों के
आते ही
कलियाँ खिल उठतीं हैं
फूल मुस्काने लगते हैं
पेडों पर नई
कोंपलें
फूटने लगतीं हैं
अनोखा लगाव……
माँ की छाती से
चिपक
तृप्त हो मुस्का के
जब वो पहली बार
“माँ” कहता है..तब माँ
धन्य होजाती
है
अनोखा अहसास….
महेश्वरी कनेरी
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइसीलिये तो जीवन सुन्दर है !
ReplyDeleteआभार राजीव जी।
ReplyDeleteअति सुन्दर .....
ReplyDeleteसंबंधों का सुंदर विवरण. सुंदर रचना.
ReplyDeleteसंबंधों की प्रगाढ़ता का सुन्दर चिंत्रण देखने को मिला .. . बहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteअनोखा है यह भाव भी..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeletebahut hi sundar chitra aur rachna...
ReplyDeleteसब अनोखा... बहुत सुन्दर भाव व चित्र. बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावभरी चित्रमय रचना है !
ReplyDeleteसबसे बड़ा सुख और तृप्ति . . . . . .
ReplyDeletebhavpurn- utam***
ReplyDeleteAwesome creation !!! :D
ReplyDeleteसुन्दर चिंत्रण देखने को मिला .
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती
बहुत सुन्दर चित्रण । संग्रहनीय रचना । सादर आभार।
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