कलम से मैंने अपनी
दर्द के सारे बंधन तोड़ दिए
देखो ! ये सैलाब बन बहने लगा है
अब देखना है.
.कितने बह कर निकल जाते हैं
और कितने किनारे लग कर रुक जाते हैं
जो रुक जाते हैं,वो मेरे अपने हैं
अपनों से मिला हुआ
इसी लिए वो रुक जाते है ..शायद
अब, उन्हें फिर से संभाल कर रखना होगा
क्यों कि जीने के लिए कुछ दर्द तो चाहिए ही न…
*******************
महेश्वरी कनेरी
जीने के दर्द की दरकार ????
ReplyDeleteशायद हां...
एक गाना याद आया..
क्या ख़ाक मज़ा था जीने में..जब दर्द नहीं था सीने में...
बहुत प्यारी रचना है दी...
सादर
अनु
ओह , जो दर्द रुक जाये वो अपना ... बहुत खूबसूरती से उकेरा दर्द के भाव को
ReplyDeleteअपने अपने हिस्से के आसमान, बादल और आँसू।
ReplyDeleteसच कहा आपने, जीने के लिये कुछ दर्द भी जरूरी है.
ReplyDeleteदर्द नहीं तो जीने में मजा क्या ???
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
:-)
बहुत बढ़िया रचना |
ReplyDeleteशुभकामनायें दीदी ||
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteमेरी ओर से आपको एवं आपके परिवार के सदस्यों को श्री गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर सब को शुभ कामनाएं और प्रार्थना करता हूँ कि गणपति सब के मनोरथ सिद्ध करें एवं सबको बुद्धि, विद्या ओर बल प्रदान कर आप की चिंताएं दूर करें.....आप सबका सवाई सिंह आगरा
ReplyDelete`*•.¸¸.•*´¨`*•.¸¸.•*´
ॐ गं गं गं गणपतये नमः !
गणेश चतुर्थी मंगलमय हो !
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दर्द न हो तो जीना बेमानी है ...ख़ुशी की अनुभूति दर्द से जुड़ी होती है.दर्द न हो तो भगवान् विस्मृत हो जाएँ और बिना भगवान् !!!
ReplyDeleteदर्द समय - समय पर सबकी खोज़ खबर लेता रहता है ... इसका होना बहुत जरूरी है जिंदगी में ...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति
आभार
यही तो जीने की धरोहर हैं।
ReplyDeleteदर्द साथ कहना जरूरी अहि ... क्योंकि ये अक्सर दवा भी बन जाता है ... जीने का बहाना भी तो जरूरी है ...
ReplyDeleteजिंदगी जीने के लिये,कुछ तो दर्द चाहिए ,,,,,आपने सच कहा,,,
ReplyDeleteRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
बहुत ही बढ़िया आंटी!
ReplyDeleteसादर
अब, उन्हें फिर से संभाल कर रखना होगा
ReplyDeleteक्यों कि जीने के लिए कुछ दर्द तो चाहिए ही न…
सही कहा आपने जीने के लिए गम या दर्द या कह दें सुकून के लिए कुछ न कुछ तो चाहिए
जीने के लिए दर्द ! दर्द न हुआ खुशी हो गयी...गहरा व्यंग्य...
ReplyDeleteजीने के लिए कुछ दर्द तो चाहिए ही न…
ReplyDeleteदर्द दवा बन गया , अच्छा व्यंग . मेरे ब्लॉग 'अनुभूति " नया पोस्ट आपके इन्तेजार में हैं.
दर्द न भी संभाला तो खुद ब खुद आ जाएंगे...खुशी से उसकी दुश्मनी जो हैः)
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !!
जो रुक जाते हैं,वो मेरे अपने हैं
ReplyDeleteअपनों से मिला हुआ
इसी लिए वो रुक जाते है ..शायद
अब, उन्हें फिर से संभाल कर रखना होगा
क्यों कि जीने के लिए कुछ दर्द तो चाहिए ही न…
सच कहा आपने
जीने के लिए कुछ दर्द तो चाहिए ही न…
ReplyDeleteसुन्दर विचार. आप काव्यात्मक शैली में जो भी लिखती है, कविता बन जाती है. आभार!!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसहमत हूं
100% agree ...
ReplyDeletebahut achchi lagi....
ReplyDeleteदर्द इस जीवन का अटूट हिस्सा है ...
ReplyDeleteअपनापन के मायनों को तलाशती बहुत गहन पंक्तियाँ..
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
दर्द ही कभी जीवन बन जाता है...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletebilkul sahi kaha..jeene ke liye kuchh dard bhi jaroori hai
ReplyDeleteदर्द भी जरुरी है जीने के लिए, जीवन को समझने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteकभी दर्द भी सही मुकाम तक पहुचाने में मददगार होता है.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
दर्द के रिश्ते ही तो जीवन को सरल बना देते हैं महेश्वरी जी
ReplyDeleteइस सुंदर कविता के लिए बधाई -अदितिपूनम
बहुत ही अच्छी कविता |
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