तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ |
कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
या जीवन का परिहास लिखूँ
भीगी सी वो रात लिखूँ
या आँखों की बरसात लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
तुम्हें दूर कहूँ या पास कहूँ
प्यारा एक अहसास लिखूँ
अपनों के जज्बात लिखूँ
या सपनों की सैगात लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ
निश्छल मन का प्यार लिखूँ
सागर की गहराई भर लूँ
या अम्बर का विस्तार लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
भवँरों का गुंजन गान लिखूँ
या कलियों की मुस्कान लिखूँ
बहती बसंत बहार लिखूँ
या धरती का श्रंगार लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
*********
महेश्वरी कनेरी
बहुत सुन्दर कविता है आंटी जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो आपको
भवँरों का गुंजन गान लिखूँ
ReplyDeleteया कलियों की मुस्कान लिखूँ
बहती बसंत बहार लिखूँ
या धरती का श्रंगार लिखूँ
बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ हैं आंटी।
सादर
कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
ReplyDeleteया जीवन का परिहास लिखूँ
भीगी सी वो रात लिखूँ
या आँखों की बरसात लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
पूछते पूछते सब कुछ तो लिख दिया आपने... बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता...
लिखने बैठने पर , परिहास की बात हो तो , होठो पर हंसी.... :)
ReplyDeleteआँखों की बरसात ,कागज गीली करती.... :(
प्यारा अहसास लिखें , अपनों के जज्बात लिखें.... :)
बहुत ही प्यारी रचना..... :)
तुम्हें दूर कहूँ या पास कहूँ
ReplyDeleteप्यारा एक अहसास लिखूँ
अपनों के जज्बात लिखूँ
shandar panktiyan haen aabhar.aapka mere blog men aakar sujhav dene ke liye shukriya,sda svagat hae.
महेश्वरी जी, एक-एक शब्द सीधे दिल को छू रहे थे पढ़ते समय! इतना अच्छा!
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteतुम्हें दूर कहूँ या पास कहूँ
ReplyDeleteप्यारा एक अहसास लिखूँ
अपनों के जज्बात लिखूँ
या सपनों की सैगात लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
BAHUT HI SUNDAR AUR MARMIK RACHANA ......MAHESHWARI JI KUCHH TO LIKHANA HI PADATA HAI ....FIL HAL AK SANGRAHNEEY RACHANA...BADHAI KE SATH HI ABHAR.
यूँ ही जिंदगी को बेहिसाब लिखो ...
ReplyDeletejiwan ke utar chadav ke beech kitna kuch likhta chala jaata hai, pata kahan chalta hai..
ReplyDeleteManobhavon ki sundar prastuti..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जन्मदिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन!
jo bhee likho likho zaroor
ReplyDeleteman kee baat kaho zaroor
bahut umdaa
bahut sundar geet ...vaah.
ReplyDeleteबहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,अच्छी पंक्तियाँ .....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
बहुत खूबसूरत ! बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteइस कलम में जादू है , जीवन का स्पर्श है .... फिर जो लिखो जैसे लिखो
ReplyDeletelikh to dil ki jubaani
ReplyDeletesuna do koi purani kahani
कभी-कभी जब
ReplyDeleteयह दुविधा घेर लेती है।
तब मन कहता है,
बस मन की बात लिखूं।
खूबसूरत पंक्तियों के साथ ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....एक अपनी पुरानी रचना आपको समर्पित करती हूँ जो ऐसे ही भाव लिए थी...शायद आपको पसंद आये.
ReplyDelete"गीत"
तुझ पर क्या कोई गीत लिखूँ
संग लिखूँ या साथ लिखूँ
बीच डगर में छोड़ गए तुम
क्या अनचाही सौगात लिखूँ?
राग लिखूँ या गीत लिखूँ
गाये जो तुमने संग नहीं
फिर मूक सा क्या संगीत लिखूँ?
आग लिखूँ , अँगार लिखूँ
धुआं सा जो साँसों में भर गया
क्या ठंडी सी फिर राख लिखूँ ?
प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
तुम पर कैसे कोई गीत लिखूँ........
-विद्या
सादर.
वाह: बहुत खूब..एक खूबसूरत रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद विद्या जी..
Deleteबहुत खूबसूरत और प्रवाहमयी रचना .
ReplyDelete▬● बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...
ReplyDeleteदोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...
● Meri Lekhani, Mere Vichar..
.
सागर की गहराई भर लूँ
ReplyDeleteया अम्बर का विस्तार लिखूँ
साधु-साधु,
अतिसुन्दर,
मर्मस्पर्सी....
बेहद खूबसूरती से लिखी गयी भावपूर्ण रचना |
ReplyDelete'अब हार के कैसे जीत लिखूं 'बहुत प्यारी पंक्ति
कुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
ReplyDeleteया जीवन का परिहास लिखूँ
भीगी सी वो रात लिखूँ
या आँखों की बरसात लिखूँ
ati sundar !!!!!!!
सब लिखना है,
ReplyDeleteजीवन यह,
फैला जितना है।
बहुत सुन्दर भावों वाली रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteकल 25/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, ।। वक़्त इनका क़ायल है ... ।।
धन्यवाद!
दिल से कुछ भी कहिये और लिख दीजिये...... बहुत अच्छी लगी रचना.....
ReplyDeleteकुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
ReplyDeleteया जीवन का परिहास लिखूँ
भीगी सी वो रात लिखूँ
या आँखों की बरसात लिखूँ
तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ
अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
नीरज
विषयों का इतना बड़ा ख़ज़ाना और दूसरे की पसंद का ख़्याल. बहुत सुंदरता से वर्णन कर दिया है आपने.
ReplyDeleteयह द्वंद्व है जीवन का
ReplyDeleteकहो कैसे सभी लिखूँ!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deletebahut sundar rachna, badhai.
ReplyDeleteकुछ आस लिखूँ विश्वास लिखूँ
ReplyDeleteया जीवन का परिहास लिखूँ
भीगी सी वो रात लिखूँ...........
जो भी व्यक्त किया है.........पठनीय है...... संग्रहीय है
उत्कृष्ट रचना
बहुत सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट कविता |गणतन्त्र दिवस की बधाई |
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरे भाव।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद... वंदे मातरम्।
लिखते चलिये, जिंदगानी बाकी है..
ReplyDeleteअच्छी लगी कविता
सुंदर भावो से व्यक्त बहूत सुंदर प्यारी सी रचना है
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.
बहुत कमाल का लिखा है ... अटल बिहारी जी की शैली की याद आ गयी ...
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें !
ReplyDeleteaaमैं सोचती हूँ कुछ लिखूँ ,
ReplyDeleteपर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ |
वो कोनसे अल्फाज लूँ ,
जो आज की कविता लिखूँ |
हलचल सी कुछ मन में हुई ,
और शब्द भी सजने लगे |
गुमसुम सी इस कलम के ,
हाथ भी चलने लगे |
फिर भाव ने आकार कलम की ,
उँगलियाँ भी थांम ली |
तब ह्रदय ने शब्द चुन कर ,
पंग्तियाँ कुछ बाँध ली |
अब प्रश्न मन ही मन उठा ,
क्या काव्य की सरिता लिखूँ |
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
मैं सोचती हू अब लिखूँ ,
किस शब्द के संसार पर |
रूप पर श्रंगार पर या ,
दुःख के अम्बार पर |
गाँव की कविता लिखूँ ,
या गीत कुछ किसान के|
नीर की सुचिता लिखूँ ,
या खेत लिखूँ धान के |
टूटते नाते लिखूँ या ,
फूटते आँसू लिखूँ |
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .......
पल रहा तूफान है ,
और चल रहीं हैं आंधियां |
जल रही बारूद है,
और दूर तक हैं सिसकियाँ |
जाने कब चोराहा सुलगा ,
राख गलियां भी हुई |
गोद फिर उजड़ी कई और ,
माँग भी सूनी हुई |
मो़त का मंजर लिखूँ या ,
आग का दरिया लिखूँ |
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
सोच कर देखो जरा ,
क्यों मजहबों की जंग है |
एक् सा सबका पसीना ,
एक लहू का रंग है |
एक कतरा भी लहू का ,
तुम यहाँ गिरने न दो |
एक मोती भी किसी की ,
आँख से झरने न दो |
छोड़ दो सब नफरतें , क्या लिखू ...पर बहुत से बहुत लोगों ने काफी
और तोड़ दो इस जंग को | कुछ लिखा है ..इसी क्रम मैं .....aaमैं सोचती हूँ कुछ लिखूँ ,
पर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ |
वो कोनसे अल्फाज लूँ ,
जो आज की कविता लिखूँ |
हलचल सी कुछ मन में हुई ,
और शब्द भी सजने लगे |
गुमसुम सी इस कलम के ,
हाथ भी चलने लगे |
फिर भाव ने आकार कलम की ,
उँगलियाँ भी थांम ली |
तब ह्रदय ने शब्द चुन कर ,
पंग्तियाँ कुछ बाँध ली |
अब प्रश्न मन ही मन उठा ,
क्या काव्य की सरिता लिखूँ |
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
मैं सोचती हू अब लिखूँ ,
किस शब्द के संसार पर |
रूप पर श्रंगार पर या ,
दुःख के अम्बार पर |
गाँव की कविता लिखूँ ,
या गीत कुछ किसान के|
नीर की सुचिता लिखूँ ,
या खेत लिखूँ धान के |
टूटते नाते लिखूँ या ,
फूटते आँसू लिखूँ |
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .......
पल रहा तूफान है ,
और चल रहीं हैं आंधियां |
जल रही बारूद है,
और दूर तक हैं सिसकियाँ |
जाने कब चोराहा सुलगा ,
राख गलियां भी हुई |
गोद फिर उजड़ी कई और ,
माँग भी सूनी हुई |
मो़त का मंजर लिखूँ या ,
आग का दरिया लिखूँ |
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
सोच कर देखो जरा ,
क्यों मजहबों की जंग है |
एक् सा सबका पसीना ,
एक लहू का रंग है |
एक कतरा भी लहू का ,
तुम यहाँ गिरने न दो |
एक मोती भी किसी की ,
आँख से झरने न दो |
छोड़ दो सब नफरतें ,
और तोड़ दो इस जंग को |
प्यार से मिल बैठ कर ,
फिर प्यार की कविता लिखू|
ममता
प्यार से मिल बैठ कर ,
फिर प्यार की कविता लिखू|
ममता