एक चिनगारी
सरदी से कँपकपाता मौसम
मुँह से निकलता धूआँ
जलने को अब क्या बचा
चन्द अरमान और चन्द सपने….?
उन्हें भी जला हाथ सेकते रहे
देखते ही देखते
सब सपने खाक हुये
जल कर सब राख हुए
कँपकपाहट फिर भी कम न हुई
बस था धूआँ ही धूआँ…
लेकिन …
अब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने
शायद अगले वर्ष काम आ जाए..
******
महेश्वरी कनेरी…
अब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने
ReplyDeleteशायद अगले वर्ष काम आ जाए..
बहुत ही बढ़िया आंटी।
सादर
अदभुत बहुत सुन्दर,,,
ReplyDeleteबधाई हो आपको
अब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने
ReplyDeleteशायद अगले वर्ष काम आ जाए... बिल्कुल... चिंगारी न हो तो परिवर्तन की आग लगेगी कैसे
अब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने
ReplyDeleteशायद अगले वर्ष काम आ जाए..
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteजाने कबसे राह देख रही थी आपकी रचना की...
सादर.
अब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने! :) bahut achchi lagi rachna!
ReplyDeleteबहुत खूब ....मन में दबी चिंगारी ने ...शब्दों का रूप ले लिया ...
ReplyDeleteन चाहतें मिटतीं हैं न हौसले पस्त होतें हैं बस आदमी एक दिन चुक जाता है ,आदमियत फिर भी नहीं चुकती .अच्छी रचना पढवाई आपने 'चिंगारी एक बाकी है शायद अगले बरस काम आये ...हम हों न हों चिंगारी तो रहे ...
ReplyDeleteवाह...बेजोड़ रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
काश बँधकर रहे ऊष्मा..
ReplyDeleteअब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने
ReplyDeleteशायद अगले वर्ष काम आ जाए..
******
....मन में दबी चिंगारी ने ...शब्दों का रूप ले लिया ...
इस पर मेरी टिप्पणी नहीं दिखाई दे रही ... डैश बोर्ड से कमेंट्स के स्पैम में देखिये
ReplyDeletesundar rachana.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeletewelcome to new post...वाह रे मंहगाई
सच्चाई का बोध कराती लाजवाब रचना ।
ReplyDeleteभाव गहरे हैं..शब्द सुनहरे हैं ..
ReplyDeleteमन को छु गयी
kalamdaan.blogspot.com
एक चिन्गारी सुलगती रहनी चाहिये ………जीने के लिये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द रचना |
ReplyDeleteइस चिंगारी को यूहीं दबाए रखिये.यह उर्जा का एक अदभूत स्रोत है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
चिंगारी बुझने ने पाए..बहुत बढ़िया
ReplyDeleteअब भी एक चिनगारी दबा रखी है मैंने
ReplyDeleteशायद अगले वर्ष काम आ जाए..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...बधाई!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमैंने आपकी ब्लॉग पर पहली टिपण्णी की थी ,वो तो दिख ही नहीं रही है ....
ReplyDeleteएक -न -एक चिंगारी तो शेष रहनी ही चाहिए ....अर्थपूर्ण रचना
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
Bahut Sundar rachna..
ReplyDeleteइस जीवन में जीने के लिए एक चिंगारी तो हमेशा बरकरार रहनी ही चाहिए....
ReplyDeleteअच्छी रचना ........
ReplyDeleteबधाई ...
मेरी नयी कविता तो नहीं उस जैसी पंक्तियाँ " जोश "पढने के लिए मेरे ब्लॉग पे आयें...
http://dilkikashmakash.blogspot.com/
इस चिंगारी को सुलगने दो ....
ReplyDeleteyahi dabi chingari jeene ka sabab hai...ye bachi rahe to behtar hai...varna aur kya rakha hai jindgi k paimane me.
ReplyDeleteपहली बार आपकी ब्लॉग पर आया ...
ReplyDeleteसच कहा आपने....मेरे अंदर की चिंगारी अभी जिंदा है ॥
मेरे भी ब्लॉग पर आकर मार्ग दर्शन करे
खूब , मन को उद्वेलित करते भाव.....
ReplyDeleteचिंगारी तो बहुत कुछ कर सकती है
ReplyDeleteबेहतरीन रचना पढवाने के लिए सादर आभार.
ReplyDeletejinda chingari se nikle bhav se nikli rachnaon ka swagat aur entjar rahega.
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "धर्मवीर भारती" पर आपका सादर आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteउम्मीद की यही चिंगारी शेष रह जाती है.उद्वेलित करती रचना.वाह !!!!
ReplyDeleteदबी हुई चिंगारी उचित समय पर शोला बन जाती है।
ReplyDeleteभावप्रवण कविता।