माँ के माथे की बिन्दी
गोल बड़ी सी बिन्दी
कान्ति बन, माथे पर
खिलती है बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
सजाती सवाँरती
पहचान बनाती बिन्दी
मान सम्मान
आस्था है बिन्दी
शीतल सहज सरल
कुछ कहती सी बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
थकान मिटा,उर्जा बन
मुस्काती
बिन्दी
पावन पवित्र सतित्व की
साक्षी
है बिन्दी
परंपरा संस्कारों का
आधार है बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
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महेश्वरी कनेरी
माथे की बिंदिया इतनी अर्थपूर्ण इतनी पावन पहले कभी नहीं लगी जितनी इस कविता को पढने के बाद लग रही है.
ReplyDeleteबिंदी के ऊपर इतनी सुंदर रचना पहली बार देखी ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : वह उपहार देने स्वर्ग से आता है
नई पोस्ट : कौन सी दस्तक
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-12-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1838 में दिया गया है
ReplyDeleteधन्यवाद
Aabhar...
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनारी !
पुरुष ,नारी ,दलित और शास्त्र
बहुत ही सुंदर ... बिंदी माथे पर खिलती है और पावन कर देती है ...
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति दीदी .... उम्दा रचना
ReplyDeleteमाँ के माथे की बिन्दी - गरिमामय शृंगार की दीप्ति ,वाह !
ReplyDeleteकल 28/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
Thanks yashvant
Deleteमाथे की बिंदी पर सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत कुछ कह जाती है माँ के माथे की बिंदी...बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteदिल छु गयी यह प्यारी रचना , आभार आपका !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteनव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं!!
मान सम्मान
ReplyDeleteआस्था है बिन्दी
शीतल सहज सरल
कुछ कहती सी बिन्दी
माँ के माथे की बिन्दी
क्या खूबसूरत शब्द हैं आपके !!