अटूट बंधन
कल रात भर आसमान रोता रहा
धरती के कंधे पर सिर रख कर
इतना
फूट फूट कर रोया कि
धरती
का तन मन
सब भीग गया
पेड़ पौधे और पत्ते भी
इसके साक्षी बने
उसके दर्द का एक एक कतरा
कभी पेडो़ं से कभी पत्तों में से
टप-टप धरती पर गिरता रहा
धरती भी जतन से उन्हें
समेटती रही,सहेजती रही
और..
दर्द बाँट्ने की कोशिश करती रही
ताकि उसे कुछ राहत मिल जाए
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महेश्वरी कनेरी
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ......
ReplyDeleteआभार यशोदा जी आप का..
ReplyDeleteदर्द बाँटकर हल्का होता है और कभी-कभी सच्चा हमदर्द भी मिल जाता है । सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletedhara -gagan ka rishta atut hai , sambhal lete hain ek duje ko ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसादर
अनु
वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण !
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन के भाव ..
ReplyDeleteभावों का सुंदर संयोजन !
ReplyDeleteआसमान और धरती के बहाने जीवन की कथा व्यथा...
ReplyDeleteबढ़िया रचना सुन्दर शब्द पिरो कर बनाई है आपने |
ReplyDeleteअच्छी भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
waah bahut khoob
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। स्वयं शून्य
ReplyDeleteमार्मिक ,
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !!
एक दूसरे का दर्द बाँटना, समझना यही तो प्रकृति है
ReplyDeleteकाश ! हर मनुष्य यह समझ सके
सादर !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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