abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Friday, 19 September 2014

अटूट बंधन









 अटूट बंधन

कल रात भर आसमान रोता रहा

धरती के कंधे पर सिर रख कर

 इतना फूट फूट कर रोया कि

 धरती का तन मन

सब भीग गया

पेड़ पौधे और पत्ते भी

इसके साक्षी बने

उसके दर्द का एक एक कतरा

कभी पेडो़ं से कभी पत्तों में से

टप-टप धरती पर गिरता रहा

धरती भी जतन से उन्हें

समेटती रही,सहेजती रही

और..

दर्द बाँट्ने की कोशिश करती रही

ताकि उसे कुछ राहत मिल जाए


**********************

महेश्वरी कनेरी

19 comments:

  1. सुन्दर भावाभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. आभार यशोदा जी आप का..

    ReplyDelete
  3. दर्द बाँटकर हल्का होता है और कभी-कभी सच्चा हमदर्द भी मिल जाता है । सुन्दर

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  5. dhara -gagan ka rishta atut hai , sambhal lete hain ek duje ko ...

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  7. वाह बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण !

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर मन के भाव ..

    ReplyDelete
  10. भावों का सुंदर संयोजन !

    ReplyDelete
  11. आसमान और धरती के बहाने जीवन की कथा व्यथा...

    ReplyDelete
  12. बढ़िया रचना सुन्दर शब्द पिरो कर बनाई है आपने |

    ReplyDelete
  13. अच्छी भावपूर्ण रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

    राज चौहान
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। स्वयं शून्य

    ReplyDelete
  15. मार्मिक ,
    मंगलकामनाएं आपको !!

    ReplyDelete
  16. एक दूसरे का दर्द बाँटना, समझना यही तो प्रकृति है
    काश ! हर मनुष्य यह समझ सके
    सादर !

    ReplyDelete
  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete