पीपल (छन्द - गीतिका)
ऐतिहासिक वृक्ष पीपल, मौन वर्षो से खड़े
पारहे आश्रय सभी है ,गोद में छोटे बड़े
मौन तरुवर हो अडिग तुम , श्रृष्टि का वरदान हो
हे सकल जग प्राणदाता, सद् गुणों की खान हो
हो घरोहर पूर्वजों का ,पीढियों से मान है
पूजते नर और नारी,भक्ति आस्था ग्यान है
सर्वव्यापी सर्वदा हो चेतना बन बोलते
सर्वसौभाग्य
हे तरुवर, धर्म रस हो घोलते
*******
महेश्वरी कनेरी
मित्रों कुछ घरेलु व्यवस्था के कारण आज बहुत समय बाद ब्लांग पर आना हुआ ...माफी चाहुँगी... छंद विधा में यह मेरा प्रथम प्रयास है..उम्मीद है आप सभी मुझे प्रोत्साहित करेंगे.....आभार
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबढ़िया है :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteपीपल पर लेखन समय की आवश्यकता है। वाह ................
ReplyDeleteशायद इसलिए पुराणों में भी तीन वृक्ष लगाने का महत्व बताया गया है वटवृक्ष नीम और पीपल यूं भी पेड़ ही मानव जाती के लिए जीवन दाता है बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव लिए हैं पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आंटी !
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : बदलता तकनीक और हम
भाव एवं विधा दोनों सुन्दर हैं !
ReplyDeleteमैं
ईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? (भाग २ )
abhar aap kaa.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी। धन्यवाद।
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteसर्वव्यापी सर्वदा हो चेतना बन बोलते
ReplyDeleteसर्वसौभाग्य हे तरुवर, धर्म रस हो घोलते
अनुपम भाव संयोजन .... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
सादर
हो घरोहर पूर्वजों का ,पीढियों से मान है
ReplyDeleteपूजते नर और नारी,भक्ति आस्था ग्यान है..bhawon se bhara ......
वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
ReplyDeleteसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
भावों और शब्दों का ख़ूबसूरत संयोजन...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDelete