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Thursday, 26 June 2014

खिलखिलाती रही



कतरा कतरा बन

जि़न्दगी गिरती रही

समेट उन्हें,मै 

यादों में सहेजती रही

अनमना मन मुझसे

क्या मांगे,पता नहीं

पर हर घड़ी धूप सी

मैं ढलती रही

रात, उदासी की चादर

उढा़ने को आतुर बहुत

पर मैं तो

चाँद में ही अपनी

खुशी तलाशती रही

और चाँदनी सी 

खिलखिलाती रही

********

महेश्वरी कनेरी

25 comments:

  1. हमेशा खिलखिलाती ही रहियेगा दीदी
    सादर
    अच्छी लगी रचना

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  2. येही जीवन है, बस बढ़ते जाना चाहे कोई भी परिस्थिति हो:) बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  3. बहुत ही सुन्दर.... शुभकामनाएं

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  4. सुंदर भाव..धूप से ढलना और चाँदनी से खिलखिलाना सीख लें तो बस और क्या ?

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  5. dher sari khushiyan ham sab ko mile yahi to hamari chahat hai..........sundar bhav....

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  6. अनुभूतियों और भावनाओं का सुंदर समवेश इस खूबसूरत प्रस्तुति में

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नायब सूबेदार बाना सिंह और २६ जून - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. आभार राजेन्द्र जी आप का

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  9. गुणात्मक भाव लिए बहुत सुन्दर रचना !
    उम्मीदों की डोली !

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  10. अच्छी रचना

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  11. और चाँदनी सी हर दम
    खिलखिलाती रही...सुंदर भाव

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  12. सुन्दर रचना।

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  13. जीवन खिलखिलाने को ही तो है ,सुन्दर रचना

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  14. सुंदर कोमल अभिव्यक्ति ! मंगलकामनाएं आपको !!

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  15. महेश्वरी जी ,यही तो मानव मन है कि उदासी व विसंगतियों से अलग एक शान्त मीठी सी दुनिया बसाना चाहता है । वह अँधेरों से परे चाँदनी में रमना चाहता है यह बात अलग है कि यह चाहत अक्सर पूरी नही होती । ऐसे ही भावों से सजी यह अच्छी कविता है ।

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  16. जीवन में सुख दुःख में समान रूप से खिलखिलाते रहना ही जीवन की सफलता है...बहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी सुन्दर अभियक्ति...

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  17. सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - १३ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  18. सुन्दर रचना

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