मेरा शहर देहरादून
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विकास के नाम पर ये
क्या होगया है
देखो ! मेरा शहर कही
खो गया है
हरी भरी वादियों में
खिलता था दून कभी
आज हवा ने भी रुख बदल
लिया है
कभी सड़कों के दोनों
किना्रो पर
सजा करती थी पेड़ो की
सघन कतारें
आज उदास पड़ी हैं सड़के,
अपनी सूनी बांह पसारे
अब न बाग बचे न बगीचे
बस कुछ पेड़ सहमे से
खड़े हुए है
कब आजाए उनकी भी बारी
अब तो यहाँ मौसम भी
बदल गया है
कभी चिड़ियों के कलरव
से, दून जगा करता था
आज मोटरों के शोर ने
नींद ही उड़ा दी है
कभी पैदल चल कर ही
हाट-बजार किया करते थे
आज दो कदम भी चलना
दुश्वार होगया है
महा नगरों की कुरीतियो
और शहरीकरण की इस
अंधी दौड़ ने मेरे दून
की आत्मा को ही कुचल डाला है
हर तरफ शोर और अजनवी
चेहरो की भीड़
इंसानों का नही, मुखौटो
का शहर बन गया है
बासमती और लीची शान
हुआ करती थी दून की कभी
आज मौसम की तरह ये
भी कही खो गये हैं
बस बची है तो कुछ यादें
और एक घण्टा घर
जिसने दून को आज भी
जीवित रखा हुआ है…
************
महेश्वरी कनेरी
महेस्वरीजी ,बहुत अच्छा वर्णन किया है आपने .कभी मैं भी दूँ घाटियों का आनंद लिया करता था .दून स्कूल से आगे कैंट एरिया एवं राजपुर रोड खुबसूरत क्षेत्र में आते थे अब उनकी भी सुन्दरता कम हो गई है.
ReplyDeleteबासमती और लीची शान हुआ करती थी दून की कभी
ReplyDeleteआज मौसम की तरह ये भी कही खो गये हैं
बस बची है तो कुछ यादें और एक घण्टा घर
जिसने दून को आज भी जीवित रखा हुआ है….
दर्द की अभिव्यक्ति दिल को छू गई ....
सादर !!
महा नगरों की कुरीतियो और शहरीकरण की इस
ReplyDeleteअंधी दौड़ ने मेरे दून की आत्मा को ही कुचल डाला है
हर तरफ शोर और अजनवी चेहरो की भीड़
इंसानों का नही, मुखौटो का शहर बन गया है
बहुत ही बढिया ... लिखा है
मन को छूते रचना के भाव
सादर
निसंदेह हम ही हैं जो विनाश क कारण बनेंगे ,आभार सार्थक बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeleteदुःख होता है यह सब देखकर!
ReplyDeleteप्रकृति पर विकास पसरा जा रहा है।
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on my post "मेरा शहर देहरादून":
ReplyDeleteआप देहरादून से हैं ? सच यह शहर कहीं खो गया है ... बाग बगीचे सब गायब हो गए हैं .... मौसम भी बादल गया है ... अब तो कम ही जाना होता है देहरादून पर बहुत गहरा नाता है वहाँ से । पलटन बाज़ार की सूरत नहीं बदली होगी ...क्यों कि वहाँ तो जगह ही नहीं है कुछ बदलाव कर सके ...
बहुत ही बढ़िया आंटी
ReplyDeleteसादर
विकाश के नाम पर प्रकृति को उजाड़ा जा रहा है,,,,
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,
recent post: वजूद,
सुन्दर,उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteविकास के नाम पर ये क्या होगया है
ReplyDeleteदेखो ! मेरा शहर कही खो गया है
सच है, लगता ही नहीं कि यही वही देहरादून है
सच आज केवल देहरादून ही नहीं लगभग हर शहर का यही हाल है और हर शहर यही गा रहा है कि "जाने कहाँ गए वो दिन कहते तेरी याद में पलकों को हम बिछायेंगे" ...देहारादून का सचेत विवरण दर्शाती सार्थक पोस्ट....
ReplyDeleteअति सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteहर तरफ शोर और अजनवी चेहरो की भीड़
ReplyDeleteइंसानों का नही, मुखौटो का शहर बन गया है
बासमती और लीची शान हुआ करती थी दून की कभी
आज मौसम की तरह ये भी कही खो गये हैं
बस बची है तो कुछ यादें और एक घण्टा घर
जिसने दून को आज भी जीवित रखा हुआ है…
परिवर्तन का असर है
संदीप पवाँर (Jatdevta has left a new comment on post "मेरा शहर देहरादून":
ReplyDeleteमुझे बीस साल पहले का याद है जब माजरा से आगे देहरादून शुरु होता था आज देखो लगता है कि आशा रोड़ी चैक पोस्ट से शुरु होने वाला है।
बहुत सुन्दर शब्द।
सच शहरों का पूरा आकृति विज्ञान ही बदल गया है आबो हवा विकृत है .बहुत उम्दा रिपोर्ताज .
ReplyDeleteram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
veerubhai1947.blogspot.i
बुधवार, 19 दिसम्बर 2012
शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,
हम धीरे-धीरे प्रकृति से दूर जा रहे हैं!
ReplyDeleteआज उदास पड़ी हैं सड़के,
ReplyDeleteअपनी सूनी बांह पसारे
अब न बाग बचे न बगीचे
बस कुछ पेड़ सहमे से खड़े हुए है
कब आजाए उनकी भी बारी
माहेश्वरी जी, कमोबेश यह सभी शहरों की कहानी है..विकास के नाम पर हम क्या खो रहे हैं हम अभी उसका आकलन ही नहीं कर पा रहे..
अब कंकरीट के जंगल जो पैदा हो गए है ...
ReplyDeleteअपने शहर के लिए चिंता व्यक्त करती एक सुंदर रचना।।।
ReplyDeleteलगभग हर शहर की दर्द है यह कविता !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ..
सादर !
हर शहर की यही कहानी है...बहुत सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteयह केवल दून की ही नही हमारे बचपन के हर सहर हर कस्बे की कथा है ।
ReplyDeleteअपने शहर को लेके चिंतित होना स्वाभाविक है - बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteविकास के नाम पर परिवर्तन हो रहा है,,,,
ReplyDeleterecent post : नववर्ष की बधाई
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
विकास के नाम पर ये क्या हो गया है
देखो ! मेरा शहर कही खो गया है
कमोबेश हर शहर का यही हाल है
आदरणीया महेश्वरी कनेरी जी !
अच्छी रचना है साधुवाद !
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन हो , यही कामना है …
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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उम्मीदों पे उतरे खरे सारे तंत्र, समाज में आये ऐसा बदलाव.
ReplyDeleteनए साल के पहले दिन से हमारा हो इस तरफ सार्थक प्रयत्न.
शुभकामनाओं के साथ...
bahut sahi mam..
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