abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Tuesday, 18 December 2012

मेरा शहर देहरादून

मेरा शहर देहरादून 


विकास के नाम पर ये क्या होगया है
देखो ! मेरा शहर कही खो गया है
हरी भरी वादियों में खिलता था दून कभी
आज हवा ने भी रुख बदल लिया है
कभी सड़कों के दोनों किना्रो पर
सजा करती थी पेड़ो की सघन कतारें
आज उदास पड़ी हैं सड़के,
अपनी सूनी बांह पसारे
अब न बाग बचे न  बगीचे
बस कुछ पेड़ सहमे से खड़े हुए है
कब आजाए उनकी भी बारी
अब तो यहाँ मौसम भी बदल गया है
कभी चिड़ियों के कलरव से, दून जगा करता था
आज मोटरों के शोर ने नींद ही उड़ा दी है    
कभी पैदल चल कर ही हाट-बजार किया करते थे
आज दो कदम भी चलना दुश्वार होगया है
महा नगरों की कुरीतियो और शहरीकरण की इस
अंधी दौड़ ने मेरे दून की आत्मा को ही कुचल डाला है
हर तरफ शोर और अजनवी चेहरो की भीड़
इंसानों का नही, मुखौटो का शहर बन गया है
बासमती और लीची शान हुआ करती थी दून की कभी
आज मौसम की तरह ये भी कही खो गये हैं
बस बची है तो कुछ यादें और एक घण्टा घर
जिसने दून को आज भी जीवित रखा हुआ है…
************
महेश्वरी कनेरी  

29 comments:

  1. महेस्वरीजी ,बहुत अच्छा वर्णन किया है आपने .कभी मैं भी दूँ घाटियों का आनंद लिया करता था .दून स्कूल से आगे कैंट एरिया एवं राजपुर रोड खुबसूरत क्षेत्र में आते थे अब उनकी भी सुन्दरता कम हो गई है.

    ReplyDelete
  2. बासमती और लीची शान हुआ करती थी दून की कभी
    आज मौसम की तरह ये भी कही खो गये हैं
    बस बची है तो कुछ यादें और एक घण्टा घर
    जिसने दून को आज भी जीवित रखा हुआ है….
    दर्द की अभिव्यक्ति दिल को छू गई ....
    सादर !!

    ReplyDelete
  3. महा नगरों की कुरीतियो और शहरीकरण की इस
    अंधी दौड़ ने मेरे दून की आत्मा को ही कुचल डाला है
    हर तरफ शोर और अजनवी चेहरो की भीड़
    इंसानों का नही, मुखौटो का शहर बन गया है
    बहुत ही बढिया ... लिखा है
    मन को छूते रचना के भाव
    सादर

    ReplyDelete
  4. निसंदेह हम ही हैं जो विनाश क कारण बनेंगे ,आभार सार्थक बेहतरीन पोस्ट

    ReplyDelete
  5. प्रकृति पर विकास पसरा जा रहा है।

    ReplyDelete
  6. संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on my post "मेरा शहर देहरादून":

    आप देहरादून से हैं ? सच यह शहर कहीं खो गया है ... बाग बगीचे सब गायब हो गए हैं .... मौसम भी बादल गया है ... अब तो कम ही जाना होता है देहरादून पर बहुत गहरा नाता है वहाँ से । पलटन बाज़ार की सूरत नहीं बदली होगी ...क्यों कि वहाँ तो जगह ही नहीं है कुछ बदलाव कर सके ...

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बढ़िया आंटी

    सादर

    ReplyDelete
  8. विकाश के नाम पर प्रकृति को उजाड़ा जा रहा है,,,,

    बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,

    recent post: वजूद,

    ReplyDelete
  9. सुन्दर,उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  10. विकास के नाम पर ये क्या होगया है
    देखो ! मेरा शहर कही खो गया है


    सच है, लगता ही नहीं कि यही वही देहरादून है

    ReplyDelete
  11. सच आज केवल देहरादून ही नहीं लगभग हर शहर का यही हाल है और हर शहर यही गा रहा है कि "जाने कहाँ गए वो दिन कहते तेरी याद में पलकों को हम बिछायेंगे" ...देहारादून का सचेत विवरण दर्शाती सार्थक पोस्ट....

    ReplyDelete
  12. अति सुन्दर लिखा है..

    ReplyDelete
  13. हर तरफ शोर और अजनवी चेहरो की भीड़
    इंसानों का नही, मुखौटो का शहर बन गया है
    बासमती और लीची शान हुआ करती थी दून की कभी
    आज मौसम की तरह ये भी कही खो गये हैं
    बस बची है तो कुछ यादें और एक घण्टा घर
    जिसने दून को आज भी जीवित रखा हुआ है…

    परिवर्तन का असर है

    ReplyDelete
  14. संदीप पवाँर (Jatdevta has left a new comment on post "मेरा शहर देहरादून":

    मुझे बीस साल पहले का याद है जब माजरा से आगे देहरादून शुरु होता था आज देखो लगता है कि आशा रोड़ी चैक पोस्ट से शुरु होने वाला है।


    बहुत सुन्दर शब्द।

    ReplyDelete
  15. सच शहरों का पूरा आकृति विज्ञान ही बदल गया है आबो हवा विकृत है .बहुत उम्दा रिपोर्ताज .

    ReplyDelete
  16. ram ram bhai
    मुखपृष्ठ
    veerubhai1947.blogspot.i
    बुधवार, 19 दिसम्बर 2012
    शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,

    ReplyDelete
  17. हम धीरे-धीरे प्रकृति से दूर जा रहे हैं!

    ReplyDelete
  18. आज उदास पड़ी हैं सड़के,
    अपनी सूनी बांह पसारे
    अब न बाग बचे न बगीचे
    बस कुछ पेड़ सहमे से खड़े हुए है
    कब आजाए उनकी भी बारी

    माहेश्वरी जी, कमोबेश यह सभी शहरों की कहानी है..विकास के नाम पर हम क्या खो रहे हैं हम अभी उसका आकलन ही नहीं कर पा रहे..

    ReplyDelete
  19. अब कंकरीट के जंगल जो पैदा हो गए है ...

    ReplyDelete
  20. अपने शहर के लिए चिंता व्यक्त करती एक सुंदर रचना।।।

    ReplyDelete
  21. लगभग हर शहर की दर्द है यह कविता !
    सुन्दर अभिव्यक्ति ..
    सादर !

    ReplyDelete
  22. हर शहर की यही कहानी है...बहुत सटीक प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  23. यह केवल दून की ही नही हमारे बचपन के हर सहर हर कस्बे की कथा है ।

    ReplyDelete
  24. अपने शहर को लेके चिंतित होना स्वाभाविक है - बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  25. विकास के नाम पर परिवर्तन हो रहा है,,,,

    recent post : नववर्ष की बधाई

    ReplyDelete


  26. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




    विकास के नाम पर ये क्या हो गया है
    देखो ! मेरा शहर कही खो गया है

    कमोबेश हर शहर का यही हाल है
    आदरणीया महेश्वरी कनेरी जी !

    अच्छी रचना है साधुवाद !

    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन हो , यही कामना है …
    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ◄▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼▲▼►

    ReplyDelete
  27. उम्मीदों पे उतरे खरे सारे तंत्र, समाज में आये ऐसा बदलाव.
    नए साल के पहले दिन से हमारा हो इस तरफ सार्थक प्रयत्न.

    शुभकामनाओं के साथ...

    ReplyDelete