abhivainjana


Click here for Myspace Layouts

Followers

Saturday 25 June 2011

हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी………

“सारे दुख मेरे भाग्य में ही क्यों ? मेरे साथ् ही येसा क्यों होता है ?” यही सब नकारात्मक सोच हमारे विकास  की राह में बाधा  उत्पन्न करती हैं । सोच का मन से  बहुत गहरा संबंध है अगर हमारा मन प्रसन्न है तो सब कुछ अच्छा लगता है , अगर मन दुखी और परेशान है तो पूरा संसार बेगाना सा लगता है ,कुछ भी अच्छा नहीं लगता है । प्रस्तुत पंक्तियों में इसी भाव को 
उजागर करने की कोशिश की है ।“

हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी

क्यों कभी इतनी हैरान परेशान सी लगती है जिन्दगी   ?
कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी

क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी   ?
कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी

क्यों कभी पानी के बुलबुले सी अस्तित्वहीन लगती है जिन्दगी  ?
कभी तो अल्मस्त स्वच्छन्द नदी सी गुनगुनाती है जिन्दगी

क्यों कभी बादलों के बीच सहस्त्र बूँद सी छटपटाती है जिन्दगी  ?  
कभी तो बसंत में खिले फूलों की ताजगी लिए महकती है जिन्दगी

क्या है सब ?  क्यों करती है  भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??



33 comments:

  1. बहुत सही प्रश्न किये हैं आपने.जिंदगी की परीक्षाओं में अगर सफल गो गए तो आत्मविश्वास बढ़ता है कुछ विराम भी लगता है नीरसता पर और विफल हो गए तो हाम कारणों को तलाशते हैं कोशिश करते हैं अगली बार वैसी परिस्थिति का मुकाबला करने की.
    बहुत पसंद आई यह कविता.

    सादर

    ReplyDelete
  2. जिंदगी का फलसफा. क्या क्या न दिखाए जिंदगी, क्या क्या न कराये जिंदगी. ...... हर घडी, हर पल विचार बदलता रहता है. और हम विचारों की लहरों में डूबते उतराते रहते हैं..... आपकी कविता काफी कुछ बयां करती है. आभार !

    ReplyDelete
  3. नमस्कार,
    आपने सच लिखा है।

    ReplyDelete
  4. और यूँ ही बीत जाती है ज़िंदगी ...बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. क्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
    क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??

    ठीक है लेने दो परीक्षा,

    आप
    पास होते रहें अच्छे अंको से

    शुभकामनाएं ||

    ReplyDelete
  7. बड़ी उदास है ये ज़िन्दगी
    बेमन से भटकती ये ज़िन्दगी
    कुछ तलाशती...कुछ पा के खोने का दर्द
    झेलती ये ज़िन्दगी ...
    सच्चा साथ पाने को तरसती ये ज़िन्दगी....anu

    ReplyDelete
  8. बहुत बढ़िया ग़ज़ल!
    सभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!

    ReplyDelete
  9. सच है कुछ ऐसी ही है ज़िन्दगी ......

    ReplyDelete
  10. क्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
    क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??

    बहुत सम्वेदनशील रचना...सच में सम्पूर्ण जीवन ही एक परीक्षा है जिसका परिणाम अपने हाथ में नहीं है..बहुत भावपूर्ण रचना..

    ReplyDelete
  11. ये जिंदगी है .. यहाँ सब कुछ होता है .. ये हर इम्तिहान लेती है ...

    ReplyDelete
  12. हर बार की तरह इस बार भी अच्छी रचना। बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  13. बहुत सुन्दर, कभी समय निकाल कर बाल साहित्य पर आयें।

    ReplyDelete
  14. क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ?
    कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी

    निशब्द करते शब्द .... सच जीवन कुछ ऐसे ही उतार चढ़ाव लिए होता है.....

    ReplyDelete
  15. क्यों कभी बादलों के बीच सहस्त्र बूँद सी छटपटाती है जिन्दगी ?
    कभी तो बसंत में खिले फूलों की ताजगी लिए महकती है जिन्दगी


    बहुत सुन्दर...अच्छी रचना...

    ReplyDelete
  16. यह धूप छाँही ज़िंदगी होती ही ऐसी है ! हर पल रंग बदलती है और हमें सुख दुःख और आस निराश के झूलों पर झुलाती रहती है ! बहुत खूबसूरत रचना ! बधाई स्वीकार करें !

    ReplyDelete
  17. परीक्षा लेती रहती है जिन्दगी और उत्तरपुस्तिका की प्रतीक्षा भी नहीं करती है।

    ReplyDelete
  18. जिंदगी की परतों को उभरना इतना आसन नहीं , बखूबी चित्रित किया है आपने ,सराहनीय है आपका प्रयास , बधाई जी /

    ReplyDelete
  19. क्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
    क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी……

    बिल्‍कुल सच कहा है आपने इन पंक्तियों में ।

    ReplyDelete
  20. बस यही है ज़िन्दगी जिसके हर क्यूँ का जवाब नही मिलता ।

    ReplyDelete
  21. मेरे सभी साथियों को सुन्दर प्रतिक्रिया दर्शाने और मुझे उत्साहित करने के लिये बहुत- बहुत धन्यवाद...

    ReplyDelete
  22. सटीक सवाल
    जवाब सिर्फ एक-ज़िन्दगी

    आप भी आइये

    नाज़

    ReplyDelete
  23. ज़िन्दगी के इतने रूप...क्या ख़ूब...बहुत सुन्दर

    कभी मेरे भी ब्लॉग पर आइए

    ReplyDelete
  24. बहुत उम्दा!!!

    ReplyDelete
  25. सुख ओर दुःख मन के विकल्प हैं...बहुत ही सार्थक एवं प्रेरक रचना ..शुभकामनाएं !!!

    ReplyDelete
  26. ज़िन्दगी की सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से आपने शब्दों में पिरोया है! लाजवाब और उम्दा रचना! शानदार प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  27. जिंदगी के रंगों को बड़ी खूबसूरती से कविता में ढाला है ।इसके सफर में आई परीक्षाओं में तो खरा उतरना ही है वरना जीते जी मरण हो जाता है।
    सुधा भार्गव

    ReplyDelete
  28. 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'के भाव को अभिव्यक्त कविता.

    ReplyDelete
  29. बहुत ही सार्थक एवं प्रेरक रचना|

    ReplyDelete
  30. एक गाना है
    'जिंदगी एक सफर है सुहाना
    यहाँ कल क्या हो किसने जाना'
    एक और गाना है
    'जिंदगी का सफर,है ये कैसा सफर
    कोई समझा नहीं,कोई जाना नहीं '
    आप भी कह रहीं हैं
    'क्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
    क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??'
    जिंदगी के प्रश्न अनुत्तरित ही हैं,ऐसा लगता है.
    'मदर इंडिया' का एक गाना मुझे बहुत अच्छा लगता है
    'दुनिया में हम आयें हैं तो जीना ही पड़ेगा
    जीवन एक जहर है तो पीना ही पड़ेगा '

    आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    ReplyDelete
  31. apke blog par aaker achha laga ..

    ReplyDelete
  32. क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ?
    कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी
    n jane kitne roop leti hai zindagi...yahi to hai zindagi

    ReplyDelete