कभी तो गहन अनुभूति लिए तृप्त सी लगती है जिन्दगी
क्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ?
कभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी
क्यों कभी पानी के बुलबुले सी अस्तित्वहीन लगती है जिन्दगी ?
कभी तो अल्मस्त स्वच्छन्द नदी सी गुनगुनाती है जिन्दगी
क्यों कभी बादलों के बीच सहस्त्र बूँद सी छटपटाती है जिन्दगी ?
कभी तो बसंत में खिले फूलों की ताजगी लिए महकती है जिन्दगी
क्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??
बहुत सही प्रश्न किये हैं आपने.जिंदगी की परीक्षाओं में अगर सफल गो गए तो आत्मविश्वास बढ़ता है कुछ विराम भी लगता है नीरसता पर और विफल हो गए तो हाम कारणों को तलाशते हैं कोशिश करते हैं अगली बार वैसी परिस्थिति का मुकाबला करने की.
ReplyDeleteबहुत पसंद आई यह कविता.
सादर
जिंदगी का फलसफा. क्या क्या न दिखाए जिंदगी, क्या क्या न कराये जिंदगी. ...... हर घडी, हर पल विचार बदलता रहता है. और हम विचारों की लहरों में डूबते उतराते रहते हैं..... आपकी कविता काफी कुछ बयां करती है. आभार !
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteआपने सच लिखा है।
और यूँ ही बीत जाती है ज़िंदगी ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteक्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
ReplyDeleteक्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??
ठीक है लेने दो परीक्षा,
आप
पास होते रहें अच्छे अंको से
शुभकामनाएं ||
बड़ी उदास है ये ज़िन्दगी
ReplyDeleteबेमन से भटकती ये ज़िन्दगी
कुछ तलाशती...कुछ पा के खोने का दर्द
झेलती ये ज़िन्दगी ...
सच्चा साथ पाने को तरसती ये ज़िन्दगी....anu
बहुत बढ़िया ग़ज़ल!
ReplyDeleteसभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!
सच है कुछ ऐसी ही है ज़िन्दगी ......
ReplyDeleteक्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
ReplyDeleteक्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??
बहुत सम्वेदनशील रचना...सच में सम्पूर्ण जीवन ही एक परीक्षा है जिसका परिणाम अपने हाथ में नहीं है..बहुत भावपूर्ण रचना..
ये जिंदगी है .. यहाँ सब कुछ होता है .. ये हर इम्तिहान लेती है ...
ReplyDeleteहर बार की तरह इस बार भी अच्छी रचना। बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, कभी समय निकाल कर बाल साहित्य पर आयें।
ReplyDeleteक्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ?
ReplyDeleteकभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी
निशब्द करते शब्द .... सच जीवन कुछ ऐसे ही उतार चढ़ाव लिए होता है.....
क्यों कभी बादलों के बीच सहस्त्र बूँद सी छटपटाती है जिन्दगी ?
ReplyDeleteकभी तो बसंत में खिले फूलों की ताजगी लिए महकती है जिन्दगी
बहुत सुन्दर...अच्छी रचना...
यह धूप छाँही ज़िंदगी होती ही ऐसी है ! हर पल रंग बदलती है और हमें सुख दुःख और आस निराश के झूलों पर झुलाती रहती है ! बहुत खूबसूरत रचना ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteपरीक्षा लेती रहती है जिन्दगी और उत्तरपुस्तिका की प्रतीक्षा भी नहीं करती है।
ReplyDeleteजिंदगी की परतों को उभरना इतना आसन नहीं , बखूबी चित्रित किया है आपने ,सराहनीय है आपका प्रयास , बधाई जी /
ReplyDeleteक्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
ReplyDeleteक्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी……
बिल्कुल सच कहा है आपने इन पंक्तियों में ।
बस यही है ज़िन्दगी जिसके हर क्यूँ का जवाब नही मिलता ।
ReplyDeleteमेरे सभी साथियों को सुन्दर प्रतिक्रिया दर्शाने और मुझे उत्साहित करने के लिये बहुत- बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteसटीक सवाल
ReplyDeleteजवाब सिर्फ एक-ज़िन्दगी
आप भी आइये
नाज़
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ReplyDeleteज़िन्दगी के इतने रूप...क्या ख़ूब...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकभी मेरे भी ब्लॉग पर आइए
बहुत उम्दा!!!
ReplyDeleteसुख ओर दुःख मन के विकल्प हैं...बहुत ही सार्थक एवं प्रेरक रचना ..शुभकामनाएं !!!
ReplyDeleteज़िन्दगी की सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से आपने शब्दों में पिरोया है! लाजवाब और उम्दा रचना! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteजिंदगी के रंगों को बड़ी खूबसूरती से कविता में ढाला है ।इसके सफर में आई परीक्षाओं में तो खरा उतरना ही है वरना जीते जी मरण हो जाता है।
ReplyDeleteसुधा भार्गव
'मन चंगा तो कठौती में गंगा'के भाव को अभिव्यक्त कविता.
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक एवं प्रेरक रचना|
ReplyDeleteएक गाना है
ReplyDelete'जिंदगी एक सफर है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना'
एक और गाना है
'जिंदगी का सफर,है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं,कोई जाना नहीं '
आप भी कह रहीं हैं
'क्या है सब ? क्यों करती है भ्रमित, मुझे हर बार जिन्दगी
क्यों पग पग पर, इस तरह, हर बार परीक्षा लेती है जिन्दगी…………??'
जिंदगी के प्रश्न अनुत्तरित ही हैं,ऐसा लगता है.
'मदर इंडिया' का एक गाना मुझे बहुत अच्छा लगता है
'दुनिया में हम आयें हैं तो जीना ही पड़ेगा
जीवन एक जहर है तो पीना ही पड़ेगा '
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
apke blog par aaker achha laga ..
ReplyDeleteक्यों कभी मुट्ठी में रेत सी फिसलती ,दिखती है जिन्दगी ?
ReplyDeleteकभी ढलती संध्या भी, भोर की किरन सी दिखती है जिन्दगी
n jane kitne roop leti hai zindagi...yahi to hai zindagi