ये कैसी भूख है ?
किसी को फूट्पाथ में भी
गहरी नींद सोते देखा,
किसी को नरम गद्दों पर
करवट बदलते देखा ।
किसी को पेट में भूख लगती है
किसी की आँखों में भूख दिखती है।
किसी को रोटी की भूख ,
किसी को दौलत की ।
रोटी की भूख तो
खाकर मिट जाती है,
लेकिन दौलत की भूख ,
बढ़ती ही जाती है ।
किसी को चिथड़ो में भी
इज्जत छिपाते देखा ,
किसी को,चंद सिक्कों के लिए
सरे आम होते देखा ।
किसी को आन पर
मरते देखा
किसी का ईमान
बिकते देखा।
लोगों को तिल- तिल
मरते, और मारते देखा ।
मत पूछो यहाँ,
क्या-क्या देखा ?
हर पल इंसानों को,
कैसे-कैसे
भूख से जूझते देखा |
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मार्मिक ...... हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ
ReplyDeleteकिसी को चिथड़ो में भी
ReplyDeleteइज्जत छिपाते देखा ,
किसी को,चंद सिक्कों के लिए
सरे आम होते देखा
आज के समाज की मानसिकता का सही विश्लेषण,उत्तर विहीन प्रश्नों का एक अम्बार, निसहाय मानव, सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.... आपके ब्लाग पर पहली बार आना हुआ मलाल रहेगा ..
MAN KO JHIJHIND DIYA AAPNE. KYA KAHOON?
ReplyDelete............
ब्लॉdग समीक्षा की 13वीं कड़ी।
भारत का गौरवशाली अंतरिक्ष कार्यक्रम!
बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआज के परिप्रेक्ष्य में सार्थक रचना। आभार।
ReplyDeletesunder prastuti .aabhar .
ReplyDeleteaapki chinta jayaj hai , honi bhi chahiye ,
ReplyDeletedhanyavad .
एक संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteबहुत गहरी छाप छोडती रचना |बधाई |कभी मेरे ब्लॉग पर भी आएं |
ReplyDeleteआशा
bahut hi marmik abhibaykti...sach ko ujagar karti sambedansil rachna
ReplyDeleteबहुत सही और गहरी बात कही आपने.
ReplyDeleteसादर
लोगों को तिल- तिल
ReplyDeleteमरते, और मारते देखा ।
मत पूछो यहाँ,
क्या-क्या देखा ?
हर पल इंसानों को,
कैसे-कैसे
भूख से जूझते देखा |
..सच इस पेट के लिए इंसान क्या क्या नहीं कर जाता!
बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति के लिया आभार
Its our hunger for more and more that we forget what is important in our lives.Instead of concentrating on 'having more',lets focus on 'being more'...being more courageous,more campassionate,more loving, more giving...
ReplyDeleteमनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....... हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
दिल को छु गई ..............किसी को चंद सिक्को पर बिकते देखा ..........किसी का ईमान ...............बहुत खूब .................हृदय से आभार
ReplyDeleteआज के परिप्रेक्ष्य में सार्थक रचना। आभार।
ReplyDeleteसुंदर कविता आपको बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteकिसी को रोटी की भूख ,
ReplyDeleteकिसी को दौलत की ।
रोटी की भूख तो
खाकर मिट जाती है,
लेकिन दौलत की भूख ,
बढ़ती ही जाती है ।
बहुत सही कहा है आपने ...।
किसी को फूट्पाथ में भी
ReplyDeleteगहरी नींद सोते देखा,
किसी को नरम गद्दों पर
करवट बदलते देखा ।
.... नरम गद्दों पैर अक्सर आँखें नींद को तरसती हैं , नींद आँखों की भूख के पास नहीं आती - बहुत ही अच्छी रचना
apni jaruraton ke hisab se bhook ki paribhasha badal jati he! aapne bahut hi achhe dhang se is bat ko rakha!
ReplyDeletebadhai kabule!
बहुत संवेदनशील रचना..आज के यथार्थ को बहुत सटीकता से उकेरा है..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइस देश के करोड़ों लोग भूख से मरते हैं लेकिन परिश्रम नहीं करते। यदि ऐसे लोग थोड़ा भी कार्य करेंगे तो कम से कम भूख से तो नहीं मरेंगे। आपने चित्र अच्छा उकेरा है।
ReplyDeletebhawbhini......
ReplyDeleteसुंदर रचना और लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हर पल इंसानों को,
ReplyDeleteकैसे-कैसे
भूख से जूझते देखा |very nice post.
बेहद मर्मस्पर्शी रचना..
ReplyDeleteआपकी लेखनी को मेरा नमन..
सादर.
संवेदनशील अंतर्स्पर्शी रचना....
ReplyDeleteसादर.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
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