abhivainjana


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Sunday, 15 May 2011

ले चल उस पार

ले चल उस पार

        रे मन, मुझे ले चल उस पार
            जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए  |
                    पंख पसार फैली जहाँ चाँदनी हो
                    शिशिर में नरम धूप सा अहसास
                    पल- पल आशा, जहाँ गुनगुनाए
                    ले चल, ले चल मुझे उस पार
                    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
                               निश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
                               करती  लहरे जहाँ, निनाद
                               तट से अनुबंधित सदा वो चलती
                               ले चल, ले चल मुझे उस पार
                               जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
                  राग द्वेष के सघन वन उपजे
                  यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
                  मिले जहाँ प्यार और अपनापन
                  ले चल, ले चल मुझे उस पार
                  जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
                            रे मन, मुझे ले चल उस पार
                जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए  |
                       

32 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण!!!

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  2. सुंदर काव्य रचना.... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....

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  3. पन्त के बाद किसी ने प्रकृति को इस तरह उतारा है

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  4. राग द्वेष के सघन वन उपजे
    यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
    मिले जहाँ प्यार और अपनापन
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |

    बेहद सुन्दर पंक्तियाँ.इस राह पर चलने की किसे इच्छा नहीं होगी.

    सादर

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  5. बहुत ही खूबसूरत रचना...

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  6. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  7. प्रकृति का एक अनमोल उपहार .....

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  8. राग द्वेष के सघन वन उपजे
    यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
    मिले जहाँ प्यार और अपनापन
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    बहुत सुंदर

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  9. बहुत सुन्दर ...प्रकृति के साथ प्रेम का समावेश बहुत अच्छा लगा ...

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  10. मिले जहाँ प्यार और अपनापन
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए

    आशावाद और भरपूर उम्मीदों की सुन्दर घाटी में
    विचरण करते निर्मल भाव ...
    शिल्प और शैली का अनुपम प्रभाव ...
    अच्छी सोच
    अच्छा गीत

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  11. "राग द्वेष के सघन वन उपजे
    यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
    मिले जहाँ प्यार और अपनापन
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए"

    सच्चे मन की निश्चल कामना - प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  12. यह रचना बहुत प्यारी है

    देरी से आने के लिए माफ़ी चाहते है ...

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  13. hmm, Nice bLog I visit,, Love the cOntent,,

    visit Please,,

    http://el-janhreview.blogspot.com/

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  14. पहली बार पढ़ा आपको , आपकी रचना प्रभावित करने में सक्षम है ! शुभकामनायें !

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  15. गहरे भावभरे.

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  16. प्यारी कविता,

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  17. मिले जहां प्यार और अपनापन ,
    ले चल ले चल मुझे उस पार ...
    सुन्दर अभिव्यंजना शैली ।
    याद आ गईं पंक्तियाँ -
    ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे ....

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  18. BAHUT SUNDAR RACHNA KUDRAT KE BAHUT KAREEB

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  19. निश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
    करती लहरे जहाँ, निनाद
    तट से अनुबंधित सदा वो चलती
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए

    ...sunder rachna..
    good wishes

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  20. प्राकृतिक भावों को मन के भावों से साँझा करने का सुंदर प्रयास किया है आपने इस रचना के माध्यम से ....मन हमेशा प्रकृति की तरफ आकर्षित रहता है और प्रकृति मन को आकर्षित करती है ....आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए ...आसाह है आपका मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहेगा ..!

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  21. निश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
    करती लहरे जहाँ, निनाद
    तट से अनुबंधित सदा वो चलती
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए
    ...बहुत ही सुन्दर सुरम्य प्रस्तुति

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  22. राग द्वेष के सघन वन उपजे
    यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
    मिले जहाँ प्यार और अपनापन
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए ...

    प्रकृति और भावनाओं के अनूठे संगम से उपजी सुंदर कृति है ये रचना ....

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  23. बेहतरीन रचना

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  24. वाह! जी बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम!

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  25. बहुत भावपूर्ण रचना है| बधाई
    आशा

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  26. bahut sunder abhivyakti ...badhai..

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  27. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  28. मिले जहाँ प्यार और अपनापन
    ले चल, ले चल मुझे उस पार
    जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए.....

    सुन्दर रचना...
    सादर बधाई...

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  29. स्वच्छ सुन्दर प्रस्तुति.
    पढकर मन भावविभोर हो गया है.

    बहुत बहुत आभार जी.

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  30. सुकोमल, प्यारी और बेहतरीन रचना है .

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  31. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ

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