ले चल उस पार
रे मन, मुझे ले चल उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
पंख पसार फैली जहाँ चाँदनी हो
शिशिर में नरम धूप सा अहसास
पल- पल आशा, जहाँ गुनगुनाए
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
निश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
करती लहरे जहाँ, निनाद
तट से अनुबंधित सदा वो चलती
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
राग द्वेष के सघन वन उपजे
यहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
मिले जहाँ प्यार और अपनापन
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
रे मन, मुझे ले चल उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
बहुत सुन्दर भावपूर्ण!!!
ReplyDeleteसुंदर काव्य रचना.... बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteपन्त के बाद किसी ने प्रकृति को इस तरह उतारा है
ReplyDeleteराग द्वेष के सघन वन उपजे
ReplyDeleteयहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
मिले जहाँ प्यार और अपनापन
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए |
बेहद सुन्दर पंक्तियाँ.इस राह पर चलने की किसे इच्छा नहीं होगी.
सादर
बहुत ही खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteप्रकृति का एक अनमोल उपहार .....
ReplyDeleteराग द्वेष के सघन वन उपजे
ReplyDeleteयहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
मिले जहाँ प्यार और अपनापन
ले चल, ले चल मुझे उस पार
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर ...प्रकृति के साथ प्रेम का समावेश बहुत अच्छा लगा ...
ReplyDeleteमिले जहाँ प्यार और अपनापन
ReplyDeleteले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए
आशावाद और भरपूर उम्मीदों की सुन्दर घाटी में
विचरण करते निर्मल भाव ...
शिल्प और शैली का अनुपम प्रभाव ...
अच्छी सोच
अच्छा गीत
"राग द्वेष के सघन वन उपजे
ReplyDeleteयहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
मिले जहाँ प्यार और अपनापन
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए"
सच्चे मन की निश्चल कामना - प्रशंसनीय प्रस्तुति
यह रचना बहुत प्यारी है
ReplyDeleteदेरी से आने के लिए माफ़ी चाहते है ...
hmm, Nice bLog I visit,, Love the cOntent,,
ReplyDeletevisit Please,,
http://el-janhreview.blogspot.com/
पहली बार पढ़ा आपको , आपकी रचना प्रभावित करने में सक्षम है ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteगहरे भावभरे.
ReplyDeleteप्यारी कविता,
ReplyDeleteमिले जहां प्यार और अपनापन ,
ReplyDeleteले चल ले चल मुझे उस पार ...
सुन्दर अभिव्यंजना शैली ।
याद आ गईं पंक्तियाँ -
ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे ....
BAHUT SUNDAR RACHNA KUDRAT KE BAHUT KAREEB
ReplyDeleteनिश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
ReplyDeleteकरती लहरे जहाँ, निनाद
तट से अनुबंधित सदा वो चलती
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए
...sunder rachna..
good wishes
khubsurat abhivyakti..
ReplyDeleteप्राकृतिक भावों को मन के भावों से साँझा करने का सुंदर प्रयास किया है आपने इस रचना के माध्यम से ....मन हमेशा प्रकृति की तरफ आकर्षित रहता है और प्रकृति मन को आकर्षित करती है ....आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए ...आसाह है आपका मार्गदर्शन यूँ ही मिलता रहेगा ..!
ReplyDeleteनिश्चित ,निर्भय ,मिटती उभरती
ReplyDeleteकरती लहरे जहाँ, निनाद
तट से अनुबंधित सदा वो चलती
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए
...बहुत ही सुन्दर सुरम्य प्रस्तुति
राग द्वेष के सघन वन उपजे
ReplyDeleteयहाँ प्रेम, प्यार सब अकुलाये
मिले जहाँ प्यार और अपनापन
ले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए ...
प्रकृति और भावनाओं के अनूठे संगम से उपजी सुंदर कृति है ये रचना ....
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteवाह! जी बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना है| बधाई
ReplyDeleteआशा
bahut sunder abhivyakti ...badhai..
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteमिले जहाँ प्यार और अपनापन
ReplyDeleteले चल, ले चल मुझे उस पार
जहाँ स्वच्छंद प्रकृति राग सुनाए.....
सुन्दर रचना...
सादर बधाई...
स्वच्छ सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर मन भावविभोर हो गया है.
बहुत बहुत आभार जी.
सुकोमल, प्यारी और बेहतरीन रचना है .
ReplyDeleteशायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ